सावन का पहला मंगला गौरी व्रत आज, जानें- इसका महत्व और पूजन विधि

Author Picture
By Pallavi SharmaPublished On: July 19, 2022

सावन शुरू होते ही व्रतों का त्यौहार शुरू हो जाता है। श्रावण जिसे व्रत मास भी कहते हैं। इसी मास में “मंगला गौरी व्रत” भी धारण किया जाता है। इस दिन माता पार्वती की पूजा अर्चना की जाती है। तथा इन्हीं को आराध्य मानते हुए मंगला गौरी व्रत धारण किया जाता है। इस वर्ष मंगला गौरी व्रत 2022 सावन के माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि अर्थात मंगलवार 19 जुलाई 2022 को रखा जाएगा।

मान्यता है कि मंगला गौरी व्रत सुहागन स्त्रियां अपने अखंड सुहाग के लिए धारण करती है। सावन के दूसरे मंगलवार को व्रत धारण से ही इसका नाम मंगला और इस दिन माता पार्वती की पूजा की जाती है। इसलिए गौरी नाम से प्रचलित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस व्रत का खासा महत्व है।
मंगला गौरी व्रत-पूजन श्रावण माह के सभी मंगलवारों को किया जाता है। इस दिन गौरीजी की पूजा होती है। यह व्रत मंगलवार को किया जाता है, इसलिए इसे मंगला गौरी व्रत कहते हैं।

सावन का पहला मंगला गौरी व्रत आज, जानें- इसका महत्व और पूजन विधि

मंगला गौरी व्रत की पूजा विधि

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मंगला गौरी व्रत के दिन सभी पूजन सामग्री 16 की संख्या में होनी चाहिए। 16 मालाएं, इलायची, लॉन्ग, सुपारी, फल, पान, लड्डू, सुहाग की सामग्री तथा 16 चूड़ियां। इसके अलावा पूजा सामग्री में पांच प्रकार के सूखे मेवे तथा सात प्रकार के अन्न सम्मिलित करने चाहिए।

Also Read – मध्यप्रदेश में झमाझम बरसेंगे बदल, मौसम विभाग ने किया अलर्ट, जानिए आपके शहर का हाल

माता गौरी व्रत संपूर्ण कथा

धार्मिक कथाओं के अनुसार एक नगर सेठ था और उस सेठ का उस नगर में बहुत सम्मान था। सेठ धन-धान्य से परिपूर्ण था और सुखी जीवन जी रहा था। परंतु सेठ को सबसे बड़ा दुख था कि उसके कोई संतान नहीं थी। सेठ को संतान सुख नहीं होने की वजह से चिंता खाए जा रही थी।
एक दिन किसी विद्वान ने सेठ से कहा कि आपको माता गौरी की पूजा अर्चना करनी चाहिए। हो सकता है आपको पुत्र सुख की प्राप्ति हो। सेठ ने अपनी पत्नी के साथ माता गोरी का व्रत विधि विधान के साथ धारण किया। समय बीतता गया एक दिन माता गौरी ने सेठ को दर्शन दिए और कहा कि मैं आपकी भक्ति से प्रसन्न हूं आप क्या वरदान चाहते हैं। तब सेठ और सेठानी ने पुत्र प्राप्ति का वर माँगा। माता गौरी ने सेठ से कहा आपको पुत्र तो प्राप्त होगा। परंतु उसकी आयु 16 वर्ष से अधिक नहीं होगी। सेठ सेठानी चिंतित तो थी पर उन्होंने वरदान स्वीकार कर लिया।

कुछ समय बाद सेठानी गर्भ से थी और सेठ के घर एक पुत्र ने जन्म लिया। सेठ ने नामकरण के वक्त पुत्र का नाम चिरायु रखा। जैसे जैसे पुत्र बड़ा होने लगा सेठ और सेठानी की चिंता बढ़ने लगी। क्योंकि 16 वर्ष के बाद उन्हें अपना पुत्र खोना था। ऐसी चिंता में डूबे सेठ को एक विद्वान ने सलाह दी कि अगर आप अपने पुत्र की शादी ऐसी कन्या से कर दें जो माता गौरी की विधिवत पूजा करती है। तो आपका हो सकता है संकट टल जाए। आपकी चिंता खत्म हो जाए। सेठ ने ऐसा ही किया और एक गौरी माता भक्त के साथ चिरायु का विवाह कर दिया।

जैसे ही चिराई की उम्र 16 वर्ष हुई तो उसे कुछ नहीं हुआ। धीरे-धीरे वह बड़ा होता चला गया और उसकी पत्नी अर्थात गोरी भक्त हमेशा गौरी माता की पूजा अर्चना में व्यस्त रहा करती थी और उसे अखंड सौभाग्यवती भव का वरदान प्राप्त हो चुका था। अब सेठ और सेठानी पूर्णता चिंता मुक्त थे। ऐसे ही माता गौरी के चमत्कारों की कथाओं के चलते इनकी पूजा अर्चना की जाती है। जिससे व्रत धारण करने वाले जातक कभी भी खाली हाथ नहीं रहते।