मंदसौर में किसान के गुस्से से निकली आग की लपटे, शिवराज सरकार के लिए बड़ा अलॉर्म !

Share on:

पुष्पेन्द्र वैद्य

देश की सियासत में हलचल मचाने वाला किसान आंदोलन अभी थमा ही था कि मध्यप्रदेश में एक के बाद एक किसानों का गुस्सा फूटने और लामबंद होने की खबरें मिल रही है। 6 जून 2017 को किसान आंदोलन के दौरान पुलिस फायरिंग में पाँच किसानों की मौत के बाद देश भर में जमकर बवाल मचा था। इस आंदोलन ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पैरों की ज़मीन खिसका दी थी। उसी मंदसौर में पैदा होने वाली लहसून को शिवराज सरकार प्रमोट करते हुए ‘एक जिला एक उत्पाद’ के ज़रिए देश दुनिया में एक नया ब्रांड देने की तैयारी कर रही है तो दूसरी तरफ यहाँ के लहसून उत्पादक किसान लहसून के दाम नहीं मिलने से आग बबूला हो रहे हैं। मंदसौर की मंडी में शनिवार को लहसून के आधे से भी कम दाम मिलने से नाराज एक किसान ने अपनी फसल में आग लगा दी। उज्जैन जिले से लहसून की फसल बेचने मंदसौर मंडी आए किसान शंकर के मुताबिक उसकी लहसून की लागत ढाई लाख रुपए थी और अब बेचने पर एक लाख रुपया ही मिल रहा है। इससे नाराज किसान शंकर ने मंडी में रखे अपने डेढ क्विंटल लहसून के ढेर मे आग लगा दी।

मंदसौर का किसान आंदोलन बीते विधानसभा चुनावों में भी सियासत की धूरी रहा। राहुल गाँधी ने मंदसौर आंदोलन के बाद चुनाव से ठीक पहले कर्ज माफी की घोषणा की। काँग्रेस इसे मुद्दा बनाने और कर्ज माफी की घोषणा में कामयाब हुई और सवा साल मध्यप्रदेश में अपना राज कायम किया। देश में किसान आंदोलन के बाद मंदसौर में एक किसान का वाजिब गुस्सा शिवराज सरकार के लिए बेहद अहम है। कांग्रेस ने इस ताजा घटनाक्रम को फिर हाथों हाथ ले लिया। कमलनाथ ने आज ही छिंदवाडा में मंदसौर के लहसून किसानों को उचित दाम नहीं मिलने का मुद्दा उठाया था। किसानों में अपनी फसलों के उचित दाम नहीं मिलने को लेकर बढती नाराजगी शिवराज सरकार के लिए गले की फाँस साबित हो सकती है। मंदसौर और पड़ोसी जिलों में लहसून का उत्पादन पूरे देश का 10 फीसदी है। अकेले मंदसौर के 955 गाँवों में 30 हज़ार से ज्यादा किसान 18 हज़ार हैक्टेयर में लहसून का उत्पादन करते हैं। यहाँ प्रतिवर्ष 1 लाख 82 हज़ार मैट्रिक टन लहसून का उत्पादन होता है।

कांग्रेस किसान प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष केदार सिरोही बताते हैं कि लहसून के वाजिब दाम नहीं मिलना किसानों के साथ बहुत बड़ा छलावा है। लहसून के दाम बढ़ते हैं तो उपभोक्ताओं के दिल जलते हैं और दाम नहीं मिलते हैं तो उत्पादक किसान अपनी फसलों को जलाते हैं। इन दोनों के बीच का सही रास्ता ही एमएसपी है। सरकार इसे लेकर पूरी तरह फैल साबित हुई है। एक साल किसान के घाटे का मतलब है पाँच सालों तक उसका कर्ज के कुचक्र में फंसे रहना। यही भारत के किसानों की आज की सबसे बड़ी विडंबना है।

शिवराज सिंह सरकार के लिए मंदसौर में हुआ आज का घटनाक्रम एक अलॉर्म है। जरुरत है लहसून के दाम और एमएसपी को अमल में लाने की।