घना जंगल, चुनिंदा नेता, सत्त्ता ओर संगठन का चिंतन मन्थन, बदलाव का नवनीत आएगा बाहर

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नितिनमोहन शर्मा

घना-घनघोर जंगल। चुनिदा नेता। सत्ता और संगठन का साथ। चिंतन मन्थन। मोबाईल भी बाहर। सब कार्यक्रम भी निरस्त। 10 घन्टे एक जैसे, एक साथ, एक जाजम। सरकार और संगठन के इस चिंतन मन्थन से नया “नवनीत” बाहर आएगा? ये सवाल बैठक खत्म होने के दूसरे दिन भी सत्ता के गलियारों से लेकर संगठन की चौखट तक गूंज रहा है। चुनिंदा मंत्रियों को बुलाने के इशारे को समझती प्रदेश की राजनीति इस बैठक के बाद शरद ऋतु की आहट के बावजूद गरम हो गई। राष्ट्रीय संगठन मंत्री बी एल सन्तोष ओर क्षेत्रीय संगठन मंत्री अजय जामवाल की मौजूदगी ने बैठक की अहमियत को कई गुना बढ़ा दिया है।

संगठन की इस क्लॉस में सरकार एक स्टूडेंट्स के भांति हाजिर हुई। चुनिंदा विद्यार्थियों वाली इस क्लॉस में शिवराज मॉनिटर की भांति शामिल हुए। उनसे सवाल जवाब भी उसी तर्ज पर हुए, जैसे किसी स्कूल कॉलेज की क्लासेस में पूछे जाते है। अब सत्ता के जवाब से संगठन की संतुष्टि का रिजल्ट आने में कुछ वक्त लगेगा। लेकिन खुलासा के सूत्र बता थे है कि दस घण्टे के इस चिंतन मन्थन के बाद नया “नवनीत” ( मक्खन ) निकलना तय है। ये नवनीत प्रदेश में संगठन स्तर पर असर करेगा।

सूत्रों की माने तो बैठक का फ़ोकस मिशन 2023 को फ़तह करने पर था। इसके लिए क्या क्या ओर कुछ नया किया जा सकता है, इस पर लम्बी बात हुई। चिंतन और चिंता में प्रदेश का आदिवासी वर्ग सामने आया। इस वर्ग की नाराजगी का खामियाजा भाजपा 2018 में प्रदेश की सत्ता से दूर होकर उठा चुकी है। नतीजतन इस बार आदिवासी सरकार और संगठन के एजेंडे पर है। इसके संकेत तो सरकार के सालभर से इसी वर्ग के बीच चल रहे कार्यक्रमों से पता चल रहा है।

राष्ट्रपति भी इसी वर्ग से बनाने के बाद ऐसा माना जा रहा था कि वे सबसे बड़ा कदम हो गया है अब इस वर्ग में ज्यादा तकलीफ़ नही आना है। लेकिन संगठन के पास जो फीडबैक पहुंचा है, उसने समय से पहले सत्ता और संगठन दोनो को चौकन्ना कर दिया है। प्रदेश में 48 सीटों पर इस वर्ग का सीधा दखल है। सत्ता का रास्ता जिस मालवा निमाड़ से जाता है, वहां भी इस वर्ग का बाहुल्य है। जयस की चुनोतियों से झुझती भाजपा के लिए समय रहते इस बेल्ट पर कुछ नया करने का दबाव बढ़ गया है। सुमेरसिंह सोलंकी, हर्ष चौहान को आगे बढ़ाकर भाजपा ने निमाड़ बेल्ट को अभी से साधना शुरू किया जरूर है लेकिन जयस ओर कांग्रेस की चुनोतियाँ कम नही हुई।

आदिवासी प्रदेश अध्यक्ष की संभावना

भारत जोड़ो के रूप में प्रदेश की तरफ बढ़ती राहुल गांधी की यात्रा की चुनोती और कांग्रेस में आदिवासी कोटे से फिर कांतिलाल भूरिया के प्रदेश अध्यक्ष बनने की चल रही चर्चाओं के बीच भाजपा भी इसी वर्ग से प्रदेश अध्यक्ष बना सकती है। विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक रातापानी के जंगलों में इस बात पर गहराई से मन्थम हुआ है। प्रदेश की 48 से 50 विधानसभा सीटों पर हार जीत इसी वर्ग से तय होती है।

ऐसे में भाजपा मिशन 2023 के लिए ये दांव चलने की तैयारी में है। हालांकि मौजूदा अध्यक्ष वी डी शर्मा की सक्रियता ओर कार्यशैली ने कार्यकर्ताओं को चार्ज किया हुआ है लेकिन संगठन के सामने 2023 का विधनासभा ओर फिर 2024 का लोकसभा चुनाव है। “दिल्ली में द्रोपदी” की ताजपोशी भी इसी रणनीति का हिस्सा रही जिसमे कांग्रेस के हाथ से एक बड़ा मुद्दा हमेशा के लिए छीन लिया। अब सवाल ये की प्रदेश में कौन होगा वो आदिवासी नेता जिस पर संगठन दांव खेल सकता है?

सीएम की पसन्द- डा सुमेरसिंह..!!

भाजपा प्रदेश में अब तक एक भी आदिवासी वर्ग से पार्टी अध्यक्ष नही बना पाई है। अविभाजित मध्यप्रदेश के समय एक मर्तबा नंदकुमार साय प्रदेश अध्यक्ष बने थे। लेकिन वे छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व करते थे। छत्तीसगढ़ के गठन के बाद से नए मध्यप्रदेश में इस वर्ग से अब तक कोई प्रदेश अध्यक्ष नही बना है। ऐसे में बढ़ती सम्भावनाओ के बीच सूत्र बताते है कि सीएम शिवराज सिंह ने डॉ सुमेरसिंह सोलंकी पर अपना हाथ रखा है। सीएम का मानना सोलंकी के जरिये जयस ओर कांग्रेस से निपटा जा सकता है।

सोलंकी की गतिविधियों का क्षेत्र वो ही है, जहा से जयस ने अपनी ठोस जमीन तैयार की है। खंडवा खरगोन से लेकर अंजड़ बड़वानी कुक्षी मनावर ओर यहाँ से धार झाबुआ तक फैला वनवासी अंचल भाजपा के निशाने पर है। नतीजतन सीएम सुमेरसिंह सोलंकी को मुफ़ीद मानते है। भाजपा बीते विधानसभा चुनाव इसी पट्टी पर हारी थी जिसने उसे सत्ता से दूर कर दिया था।

विजयवर्गीय के लिए भी चल रहे भरसक प्रयास

सता संगठन के मिजाज को भांपने में एक्सपर्ट पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय भी भरसक प्रयास कर रहे है कि उनकी प्रदेश में इंट्री हो जाये और वो भी बतौर प्रदेश अध्यक्ष। उनकी लॉबिंग करने वाले नेताओं का तर्क है कि ये वक्त नही है प्रदेश में प्रयोग करने का। इस वक्त सबसे ज्यादा जरूरत कार्यकर्ताओं की नाराजगी कम कर उन्हें ऊर्जावान करना।

15 साल की सत्ता के बाद भी औसत कार्यकर्ता को सरकार से कुछ नही मिला। 15 – 17 साल से कुछ चुनिंदा नेता ही बारम्बार उपकृत हो रहे है। ये नाराज़गी आने वाले चुनाव में कही भारी न पड़ जाए। इसलिए ऐसे नेता के हाथ मे प्रदेश के सन्गठन की कमान दी जाए जो सबको सम्भाल ले और सबकी सुने भी। जिसे देखकर कार्यकर्ताओ में उत्साह पैदा हो। इस लिहाज से विजयवर्गीय को मुफ़ीद बताया जा रहा है।