दलित-आदिवासी-महिला राष्ट्रपति: भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग

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राजकुमार जैन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमेशा से सबको अचंभित कर देने वाले निर्णय लेते आए है। राष्ट्रपति पद के लिए एनडीए उम्मीदवार के रूप में द्रौपदी मुर्मू के नाम की घोषणा करके उन्होने फिर एक बार राजनीतीक पंडितों को हक्का बक्का कर दिया है। पिछले कई वर्षों से ‘सबका साथ सबका विकास’ भाजपा और मोदीजी का पसंदीदा सूत्र वाक्य रहा है। सबके विकास की इसी लीक पर चलते हुए उन्होने उड़ीसा की आदिवासी नेता और झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को एनडीए के राष्ट्रपति उम्मीदवार के रूप में प्रस्तुत कर एक बार फिर यह साबित किया है कि वो वह काम कर दिखाने का हौंसला रखते है जो पहले कभी किसी ने करने का साहस नहीं किया।

मुर्मू को राष्ट्रपति बनाने की भाजपा की राजनीति में कई निहितार्थ छुपे है। लोकनीति-सीएसडीएस के सर्वे मे खुलासा हुआ था कि 2019 के चुनाव में मे 72 प्रतिशत आदिवासियों ने अपने मताधिकार का उपयोग किया था, जो औसत राष्ट्रीय मतदान 62% से कहीं ज्यादा था। इसका मतलब यह निकाला जा सकता है कि आदिवासी समुदाय अब राजनीतिक रूप से जागरूक हो चला है और पूरी सक्रियता से चुनावी राजनीति में अपनी भागीदारी प्रदर्शित कर रहा है।

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इस समुदाय में उभरे इस राजनीतिक जोश का फायदा भाजपा को मिलता आ रहा है और आगे भी मिलता रहे इसीलिए मुर्मू की आदिवासी पहचान पर गंभीरता से विचार- मंथन करने के बाद ही भारतीय जनता पार्टी ने उनका नाम आगे बढ़ाया। पार्टी सधे कदमो से अपनी चाल चलते हुए प्रभावशाली तरीके से सभी वर्गों,सामाजिक समूहों और समुदायों के बीच अपने जनाधार को तेजी से बढ़ाने मे कामयाब हो रही है। भाजपा और मोदी की तीव्र गति से ली जा रही इस बढ़त से विरोधी हतप्रभ होने की हद तक आश्चर्यचकित है।

मोदी के सत्ता सम्हालने के बाद भाजपा ने समाज में हाशिये पर मौजूद पिछड़े वर्गों जैसे ओबीसी, दलित, महिलाओ और आदिवासियों को आगे बढ़ाने की दिशा में निरंतर प्रयास किए हैं। इन्ही प्रयासों के फलस्वरूप ये समूह अपने खोये हुए आत्मसम्मान, गौरव और गरिमा की पुनः प्राप्ति के लिए भाजपा की विचारधारा के साथ आ गए है। भाजपा ने देश को कलाम के रूप में एक मुस्लिम और कोविंद जैसा एक दलित राष्ट्रपति दिया है। और पार्टी अब एक आदिवासी गरीब महिला को राष्ट्रपति पद पर काबिज करवाने की पूर्ण तैयारी कर चुकी है।

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यह जबरजस्त सोशल इंजीनियरिंग भाजपा को एक तरफ समाज की सबसे निचली पायदान पर बैठे कमजोर और वंचित वर्ग के प्रतिनिधि के रूप में अपनी पहचान बनाने में मदद करेगी तो दूसरी ओर वैचारिक स्तर पर भी उच्चवर्गीय- कुलीन समाज में पार्टी की पैठ गहरी करेगी। नरेंद्र मोदी स्वयम को देश के प्रधानमंत्री की बजाय देशभक्ति और राष्ट्र विकास की भावना से ओतप्रोत प्रधान सेवक के रूप में पेश कर कुलीन-गरीब के उलझे हुए इस समीकरण के पलड़े को अपने पक्ष में झुकाने में कामयाब रहे हैं।

कल जब एनडीए की राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू नामांकन दाखिल करने पहुंची तो उनके साथ प्रधानमंत्री मोदी प्रस्तावक के रूप में और अनुमोदक के रूप में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के साथ ही गृह मंत्री अमित शाह समेत बीजेपी के तमाम बड़े नेता मौजूद रहे। भाजपा का यह व्यवहार सम्पूर्ण समाज को यह संदेश देता है कि भाजपा और मोदी सबके विकास के लिए कितने गंभीर है। द्रौपदी मुर्मू संथाल आदिवासी समाज से आती हैं और भारत की आजादी के 74 साल बाद यह पहला मौक़ा है, जब सत्ताधारी गठबंधन ने किसी आदिवासी को राष्ट्रपति पद का दावेदार बनाया है।

आदिवासी नेता होने के साथ ही वो एक गरीब परिवार से आनेवाली महिला भी है जिसने बेहद विषम परिस्थितियों का सामना करते हुए अपने संघर्ष का सफर तय किया है। राष्ट्रपति की इस महिमामयी कुर्सी के लिए भाजपा की यह पसंद इस बात का जीता जागता सबूत होगा कि अल्पसंख्यकों, महिलाओं, दलितों, वंचितों और गरीबों के लिए राष्ट्रपति भवन के द्वार खोलकर भाजपा ने राजशाही के प्रतीक रहे संस्थानों का लोकतंत्रीकरण किया है। वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल 24 जुलाई को समाप्त हो रहा है। आगामी राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव 18 जुलाई को होना है। इसके लिए नामांकन 29 जून तक भरा जा सकेगा और द्रौपदी मुर्मू के भारत की पंद्रहवीं राष्ट्रपति चुने जाने की घोषणा 21 जुलाई तक हो जाएगी।