शिवराज सरकार के घोटाले पर कांग्रेस ने किया पलटवार, सप्लाई हो गया करोड़ों का राशन

Suruchi
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मध्यप्रदेश की भारतीय जनता पार्टी की सरकार का मुख्य काम भ्रष्टाचार करना रह गया है। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान राज्य की पहचान घोटाला प्रदेश के रूप में बना रहे हैं। व्यापमं घोटाला, डंपर घोटाला, ई-टेंडर घोटाला के बाद अब प्रदेश में पोषण आहार परिवहन घोटाला सामने आया है। दरअसल मध्यप्रदेश के महालेखाकार ने 36 पन्नों की मीडिया में प्रकाशित एक गोपनीय रिपोर्ट में महिला बाल विकास विभाग में हुआ यह घोटाला उजागर किया है। रिपोर्ट के मुताबिक विभाग ने 2021 तक तक 4.05 मीट्रिक टन टेक होम राशन का वितरण किया और 1.35 करोड़ लाभार्थियों पर 2393.21 करोड रुपए खर्च किए।

रिपोर्ट में स्पष्ट बताया गया है कि जिन ट्रकों से राशन ट्रांसपोर्ट करने का दावा किया गया है, वे ट्रक थे ही नहीं और उनके नंबर मोटरसाइकिल, कार ऑटो रिक्शा और दूसरे छोटे वाहनों के निकले। इनमें से कोई नंबर ट्रक का पाया ही नहीं गया। इसी तरह बाडी, धार, मंडला, रीवा, सागर और शिवपुरी के छह प्लांटों ने बड़े पैमाने पर राशन की सप्लाई दर्शाई गई, जबकि जांच में पता चला कि इन प्लांट में राशन का स्टॉक ही नहीं था। कांग्रेस पार्टी ने इस विषय में प्रेसवार्ता आयोजित कर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से पूछा है कि क्या मुख्यमंत्री और घोटालों का चोली-दामन का साथ है? क्यों हर बार मुख्यमंत्री के विभाग में ही घोटाला होता है? इस घोटाले की जिम्मेदारी लेते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस्तीफा दें।

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महालेखाकार ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट कहा है की लाभार्थियों की पहचान, राशन के उत्पादन, परिवहन, वितरण और राशन की गुणवत्ता में बड़े पैमाने पर घोटाला और अनियमितता हुई है। इसलिए मध्य प्रदेश सरकार को एक स्वतंत्र एजेंसी से पूरे घोटाले की जांच करानी चाहिए और हर स्तर के अधिकारियों की जिम्मेदारी सुनिश्चित करनी चाहिए। रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन जिलों की जांच कर ली गई है उनके अलावा बाकी जिलों में भी इस बात की जांच की जानी चाहिए कि वहां घोटाला चल रहा है या नहीं। रिपोर्ट में इस तरह के घोटाले रोकने के लिए राशन वितरण प्रणाली के निगरानी के लिए कंप्यूटराइज्ड सिस्टम बनाने की सिफारिश की गई है।

इस रिपोर्ट में सामने आया है कि करोड़ों का कई किलो वजनी पोषण आहार का परिवहन मोटर साईकिल और ऑटो रिक्शा के द्वारा करना दिखाया गया है। वहीं यह भी पता चला है कि लाखों ऐसे बच्चे जो स्कूल नहीं जाते उनके नाम पर भी करोड़ों रूपयों का राशन बांट दिया गया। स्कूल शिक्षा विभाग ने ‘शाला त्यागी’ बालिकाओं की संख्या 9 हजार बतायी है, जबकि रिपोर्ट के अनुसार महिला बाल विकास विभाग ने 36 हजार ‘शाला त्यागी’ बालिकाओं तक पोषण आहार पहुंचाया है। जिसमें स्पष्ट तौर पर घोटाला दिखायी देता है।

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मध्यप्रदेश के महालेखाकार की रिपोर्ट के मुताबिक 2021 के लिए टेक होम राशन योजना के लगभग 24 प्रतिशत लाभार्थियों की जांच पर आधारित थे, इस योजना के तहत 49.58 लाख पंजीकृत बच्चों और महिलाओं को पोषण आहार दिया जाना था, इनमें 6 महीने से 3 साल की उम्र के 34.69 लाख बच्चे, 14.25 लाख गर्भवती महिलाएं और स्तनपान कराने वाली मां और 11-14 साल की लगभग 64 हजार बच्चियां शामिल थीं, जिन्होंने किसी कारणवश स्कूल छोड़ दिया है।

महालेखाकार की इस रिपोर्ट में भ्रष्टाचार के सीधे प्रमाण मौजूद है। रिपोर्ट कहती है कि जिन ट्रकों से इन संयंत्रों से पोषण आहार को गंतव्य स्थल तक पहुंचाने का जिक्र महिला बाल विकास विभाग ने किया है महालेखाकार कार्यालय द्वारा सत्यापन करने पर उनके वाहन नंबर दो पहिया वाहनों के निकले हैं। हमारा स्पष्ट मानना है कि करोड़ों रू. का कई किलो वजनी पोषण आहार का परिवहन मोटर साईकिल से किया जाना संभव नहीं है। विधानसभा में कांग्रेस विधायक सज्जन सिंह वर्मा के प्रश्न के जबाव में सरकार ने कहा कि कोरोना काल में पोषण आहार का घर-घर वितरण किया गया।

इस संबंध में जब वर्तमान नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह ने अपने गृह जिले भिंड में मौका मुआयना किया तो पता चला कि किसी को टेक होम राशन नहीं मिला। रिपोर्ट की जांच के दौरान पता चला कि प्रदेश के जिन छह संयंत्रों (बाड़ी, धार, मंडला, रीवा, सागर और शिवपुरी) से ‘टेक होम राशन’ की सप्लाई की बात कही गई है, उन दिनों इन संयंत्रों से दर्शाये गयी मात्रा में पोषण आहार (टेक होम राशन) का उत्पादन नहीं किया गया।

रिपोर्ट के अनुसार राशन निर्माण संयंत्रों ने निर्धारित और अनुमानित क्षमता से अधिक उत्पादन की जानकारी दी है जब कच्चे माल और बिजली की खपत की तुलना वास्तविक राशन उत्पादन से की गई तो पाया गया कि इसमें 58 करोड़ रू. की हेराफेरी की गई। रिपोर्ट में कहा गया 237 करोड़ का ऐसा राशन सप्लाई किया गया जो पोषक नहीं था। इसका मतलब है कि लाखों लोगों को घटिया राशन सप्लाई कर दिया गया। यह घोटाला सामने आने के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को अपने पद पर बने रहने का कोई अधिकार नहीं है। मुख्यमंत्री को अपने पद से इस्तीफा देना चाहिए और मामले की स्वतंत्र जांच होनी चाहिए। क्योंकि अगर मुख्यमंत्री अपने पद पर बने रहेंगे तो किसी भी एजेंसी के लिए स्वतंत्र जांच करना आसान नहीं होगा।