बधाई हो दीनबंधु दीनानाथ

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राकेश अचल

दीनानाथ मंगेशकर खुश होंगे कि उनके नाम का पुरस्कार देश के दूसरे दीनबंधु नरेंद्र भाई मोदी को मिला है .दीनानाथ जी के नाम से ये पुरस्कार उनकी बेटी स्वर्गीय लता मंगेशकर द्वारा बनाये गए ट्रस्ट ने स्थापित किया है .ये पुरस्कार हर साल केवल एक ऐसे व्यक्ति को दिया जाना है जिसने राष्ट्र, उसके लोगों और समाज के लिए पथप्रदर्शक, शानदार और अनुकरणीय योगदान दिया है।इस लिहाज से इस पुरस्कार के लिए मोदी जी से बेहतर पात्र भला और कौन हो सकता था ?
शुरू में मुझे लगा कि ये पुरस्कार संगीत में योगदान के लिए देने का निर्णय हुआ होगा ,लेकिन मै गलत था,ये पुरस्कार स्थापित भले ही लता जी और उनके पिताजी की स्मृति में किया गया हो लेकिन इसका संगीत से कोई लेना देना नहीं है .इसका व्यापक उद्देश्य है . पुरस्कारों में भाई-भतीजावाद नहीं चलता ,फिर भी पहला पुरस्कार देते हुए ट्रष्ट ने भाई-भतीजावाद की अवहेलना नहीं की और इसके लिए लता दीदी की धर्म भाई नरेंद्र दामोदर दास मोदी को इसके लिए चुना .इसलिए ट्रष्ट और नरेंद्र दामोदर दास मोदी दोनों को हार्दिक बधाई .

इस देश में पुरस्कारों की बड़ी फजीहत इसीलिए है कि जिसके नाम से ये पुरस्कार दिए जाते हैं उससे कोई पूछ नहीं सकता कि ये पुरस्कार किसे दिया जाये या नहीं .पुरस्कार किसी के नाम होता है और देता कोई और है और लेता कोई और है .लता जी के नाम पर उनके जीते जी मध्यप्रदेश में सरकार ने पहला पुरस्कार देना शुरू किया था ,मुमकिन है कि अब अगला पुरस्कार किसी संगीतकार के बजाय किसी राजनेता को मिल जाये ,क्योंकि मास्टर दीनानाथ मंगेशकर स्मृति प्रतिष्ठान चैरिटेबल ट्रस्ट ने रास्ता दिखा दिया है .अब किसी पुरस्कार को पाने के लिए उससे जुडी विधा में पारंगत होना आवश्यक नहीं है .

पुरस्कार दरअसल एक तरह की सामाजिक स्वीकृत होते हैं ,मोदी जी ने राष्ट्र, और समाज के लिए निसंदेह पथप्रदर्शकके रूप में , शानदार और अनुकरणीय योगदान दिया है। उनका योगदान किस क्षेत्र में नहीं है ?इसलिए वे ही इस पुरस्कार के सही पात्र हैं. हमारे यहां बहुत कम ऐसे पुरस्कार है जो किसी सही व्यक्ति को दिए जाते हैं .इस पुरस्कार को लेकर दूसरे लोगों के सीने पर सांप लोट रहा होगा ,तो लोटता रहे .अगले साल मुमकिन है कि ये पुरस्कार उद्धव ठाकरे को या अमित शाह को मिल जाये .उन्हें धैर्य रखना चाहिए .

हमारे यहां साहित्य और पत्रकारिता में ढेरों पुरस्कार मिलते हैं ,अक्सर पुरस्कार देने से पहले पात्र-सुपात्र का चयन पूँछ उठाकर निरीक्षण से किया जाता है .बिना आवेदन के तो गिने चुने पुरस्कार मिलते हैं ,पदम् पुरस्कारों तक के लिए या तो आप खुद आवेदन करने या फिर कोई आपका नामांकन करे तब ये पुरस्कार मिलते हैं .अच्छी बात ये है कि लता-दीनानाथ परस्कार के लिए न किसी को आवेदन करना पड़ा और न किसी को नामांकन करना पड़ा.सब कुछ सर्वानुमति से हो गया .मुझे अंदेशा था कि ये पुरस्कार कहीं फ़िल्मी दुनिया के शंहशाह अमिताभ बच्चन को न मिल जाये क्योंकि उन्होंने दीनानाथ नाम का एक जोरदार डायलॉग बोला था ,लेकिन उन्हें कैसे मिलता उन्होंने समाज और राष्ट्र के पथप्रदर्शक के रूप में कौन सा काम किया है ?

पुरस्कारों को लेकर हमेशा से इस देश में राजनीति होती आयी है ,लता-दीनानाथ मंगेशकर पुरस्कार इसका अपवाद है .इस पहले पुरस्कार के लिए राजनीति का मौक़ा ही नहीं आया ,क्योंकि ट्रष्टियों ने पहले ही नाम तय कर तमाम गुंजाइशें समाप्त कर दीं .हमारे एक बेहद आदरणीय पंडित जसराज मरते दम तक ये राज नहीं समझ पाए थे कि उन्हें मध्यप्रदेश सरकार ने तानसेन सम्मान क्यों नहीं दिया ? मै खुद नहीं समझ पाया कि सरकारें उन लोगों को सम्मान कैसे और क्यों दे देतीं है जिनका राष्ट्र और समाज के बजाय केवल किसी एक परिवार और संगठन के लिए ही योगदान होता है ?

अब ये तो लता-दीनानाथ पुरस्कार है,. हमारे यहां तो भारत रत्न जैसे पुरस्कार भी कई लोगों ने अपने गले में खुद डाल लिए . अटल जी को भी भारत रत्न पुरस्कार तब मिला जब वे उसे पहचानने के काबिल नहीं थे .अब तो सम्मान कामकाज को देखकर मिलते ही नहीं हैं .अब राजनीतिक निष्ठाएं और विचारधाराएं ही सम्मानों /पुरस्कारों का आधार होती हैं .मेरे घर वाले अक्सर सम्मानों से मेरी दूरी को लेकर मुझे टोकते रहते हैं. उन्हें रंज होता है कि सरकार मेरी और देखती तक नहीं है और मेरे कनिष्ठों को चीन्ह-चीन्हकर पुरस्कार और सम्मान देती रहती है .मुझे तब घर वालों को समझाना पड़ता है कि मै अपने खेत की मूली हूँ ,उनके खेत की नहीं .सब अपने खेत की मूली का ख्याल रखते हैं .

हमारे एक अग्रज हैं उद्भ्रांत शर्मा जी ,सम्मानों और पुरस्कारों को लेकर बहुत साफ़-साफ़ बोलते हैं .मै ऐसे बहुत से लोगों को जानता हूँ जो सम्मान पाने कि लिए कुछ भी करने को तैयार होते हैं ,लेकिन हम आम लोगों में और ख़ास लोगों में बहुत फर्क होता है .ख़ास लोग सम्मान की कामना नहीं करते,सम्मान उनकी कामना करते हैं .जैसे लता -दीनानाथ मंगेशकर पुरस्कार ने मोदी जी की कामना की .निश्चित ही लता जी जहाँ भी होंगी अपने बनाये ट्रष्ट कि फैसले से खुश ही नहीं बल्कि गदगद होंगी .हम सब भी गदगद हैं .सम्मान होते ही मन को गदगद करने कि लिए हैं .

हमारे ग्वालियर शहर में पुराने शासक परिवार कि पास डेढ़ दर्जन से ज्यादा ट्रष्ट हैं लेकिन वे एक भी सम्मान नहीं देते,यदि देने लगें तो न जानें कितनों का मन गदगद हो जाये ,लेकिन ये ट्रष्ट सम्मानों कि लिए नहीं सामानों कि लिए बनाये गए लगते हैं ताकि सामान बचे रहें कराधान से .बहरहाल लता-दीनानाथ सम्मान कि बहाने से मैंने तमाम बातें कह डाली हैं ,जिनकी कोई जरूरत नहीं थी .लेकिन जब कोई प्रसंग आता है तो मुझसे रहा नहीं जाता हस्तक्षेप किये बिना.निसंदेह ये मेरी बुरी आदत है,लेकिन ‘ आखरी वक्त में क्या ख़ाक मुसलमां होंगे ? ‘ अब न पुरानी आदत मुझे छोड़ सकती है और मै पुरानी आदतों को छोड़ सकता हूँ .लता जी और उनके पिता जी की स्मृति में स्थापित ये सम्मान आगे भी सुपात्रों को ही मिलता रहे इस कामना कि साथ मोदी जी को एक बार फिर से बधाई .