आ अब लौट चलें – राजेश ज्वेल

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मुझे नहीं लगता कि मुख्तार शाह से बेहतर कोई और गायक मुकेश जी को इतनी सहजता से बखूबी गा सकता है… यूट्यूब पर हेमंत म्हाले की सुमधुर आर्केस्ट्रा के साथ मुख्तार शाह के गीतों को लगातार सुनता रहा हूं , लिहाज़ा अभी लाभ मण्डपम् में अदब की महफिल में एक श्रोता बतौर शामिल होने और मुख्तार भाई से मिलने का मौक़ा नहीं गंवाया.. वाकई मुख्तार भाई की मौजूदगी ने महफिल में जो समां बांधा, वो शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता.. चंचल चितवन..के आगाज के साथ जब उन्होंने अंतिम गीत आ अब लौट चलें.. के साथ महफिल को अंजाम पर पहुंचाया , तो जायज है मेरे साथ पूरे हॉल की प्यास अधूरी रहना ही थी…26 गीतों की इस सुर सरिता ने मौसमी खुशगवार शाम को बेमिसाल बना दिया..

7 बजे ही लाभ मण्डपम् के दरवाजे बंद हो गए थे क्योंकि अंदर हॉल की सारी कुर्सियां इंदौरी सुनकारों से भर गई थी… कई श्रोता अंदर प्रवेश के लिए संघर्ष भी करते रहे और फिर जो अंदर हॉल में आ गए थे , कुर्सियां न मिलने पर सीढिय़ों से लेकर नीचे फर्श और स्टेज के सामने बैठकर इस यादगार महफिल का लुत्फ उठाते रहे… वैसे तो इंदौर में गीत -संगीत के तमाम आयोजन होते ही रहते हैं… मगर जब गायक उम्दा हो और साजिंदे भी लाजवाब तो तुमको न भूल पाएंगे जैसे बरसों बरस जेहन में कैद रह जाने वाले आयोजन होते हैं…पोहे-जलेबी के प्रेमी इस शहर इंदौर में अच्छे सुनने वाले श्रोताओं की कभी कोई कमी नहीं रही है.. वैसे तो अशरफ गौरी और उनकी संचालक मंडली ने बड़ी संख्या में पास भी बांटे और श्रोता उतनी ही तादाद में या संभव है उससे ज्यादा भी पहुंचे…

अदब की इस महफिल की बेहतरीन एंकरिंग हम सब के अजीज़ संजय पटेल ने की… हालांकि जैसा तय था.. मजमा लूटने का हुनर मुख्तार भाई ने उम्मीद के मुताबिक़ ही कर दिखाया … स्वर्गीय मुकेश जी के वे तमाम सदाबगार नगमे जो कभी नहीं भुलाए जा सकते… उनमें से चुनिंदा नगमों की जो उन्होंने जो लयबद्ध प्रस्तुतियां दीं वे वाकई बेजोड़ रही… डुएट नगमों में उनका बखूबी साथ पुणे से आई गायिका रसिका गनु ने दिया तो इंदौर की शिफा अंसारी भी कमजोर नहीं पड़ीं… अभिजीत गौड़ और उनके साजिंदो के साथ स्वरांश पाठक की कोरस टीम ने भी गजब समां बांधा… निसंदेह मुख्तार भाई ने दिल लूटने वाले जादूगर की तरह इंदौरियों का दिल लूट लिया… उनके सम्मान में मोबाइल टॉर्च की रोशनी से जहा हॉल जगमग करता रहा तो जिंदगी और कुछ नहीं तेरी-मेरी कहानी है… जैसे अनमोल नगमों पर सारे श्रोता साथ गाते-गुनगुनाते रहे…

यह भी उल्लेखनीय है कि 2023 का यह साल स्वर्गीय मुकेश जी के 100 वें जन्मदिवस का भी साल है.. उनके जाने कहां गए वो दिन… से लेकर कहीं दूर जब दिन ढल जाए.. जैसे अमर गानों को भी मुख्तार शाह ने पूरी शिद्दत से पेश किया … ये भी सच है कि मुकेश जी सहित हमारे तमाम अमरत्व पा चुके गायक-गायिकाओं के नगमे अनेकों सिंगर गाते हैं मगर कुछ पर ही वो कालजयी आवाजें अधिक सूट करती है, उसमें मुकेश जी का पर्याय नि:संदेह मुख्तार शाह के अलावा दूसरा कोई और नहीं हो सकता… ऊपरवाले ने उन्हें ये नेमत बख्शी है…जियो… मुख्तार भाई… मुकेश जी की स्वर सरिता इसी तरह अविरल बहाते रहो… आमीन!