नई दिल्ली। बीते रविवार उत्तराखंड के रैणी गांव में उस दिन की सुबह आई तो अपने साथ तबाही लेते आई थी। लगभग 10 बजे रहवासियों को एक जोरदार आवाज सुनाई दी। ऋषिगंगा में पानी का सैलाब और कीचड़ था जो काफी तेजी से उनकी तरफ बढ़ रहा था। वही धरम सिंह (50) नाम के एक ग्रामीण ने बताया कि, हम यह समझ पाते कि क्या हो रहा है, उससे पहले ही ऋषिगंगा के कीचड़ वाले पानी ने सारी चीजें तबाह कर दीं।
इस तबाही को जो लोग अपनी आँखों से देख रहे थे उन्हें 2013 में केदारनाथ ने हुई भयावह बाढ़ की याद दिला दी, जिसमें हजारों लोगों की जान चली गयी थी। वही जानकारी के अनुसार रविवार को कई लोगों के इस सैलाब में बह जाने की आशंका जताई जा रही है। उनमें नदी के आसपास काम कर रहे लोग भी शामिल हैं।
गांव के तीन बाशिंदे इस त्रासदी के बाद से लापता है। उनमें 75 वर्षीय अमृता देवी भी हैं जो ऋषि गंगा पर पुल के समीप अपने खेत में काम करने गयी थीं। अन्य वल्ली रानी के यशपाल हैं जो अपने मवेशी को चराने गये थे और रंजीत सिंह (25) है जो ऋषि गंगा पनबिजली परियोजना में काम करते थे।
नंदा देवी ग्लेशियर के टूटने के बाद यह हिमस्खलन आया। वही इस हिमस्खलन से वह परियोजना नष्ट हो गयी जो 2020 में ही शुरू हुई थी। बता दे कि, इस त्रासी से मुख्य सीमा मार्ग पर एक बड़ा पुल भी बह गया। जुवा ग्वान गांव के प्रदीप राणा ने बताया कि उसी गांव का संजय सिंह भी लापता है जो अपनी बकरियां चराने गया था। ऋषि गंगा और धौली गंगा के संगम से 20 मीटर की ऊंचाई पर बने कुछ मंदिर भी बह गये।
परियोजना के महाप्रबंधक (जीएम) ने कहा कि जलविद्युत परियोजना क्षेत्र की एक सुरंग में श्रमिकों एवं अन्य कर्मचारियों समेत करीब 30-35 फंसे लोगों को बचाने का अभियान सोमवार की सुबह फिर से शुरू किया जाएगा। देवभूमि उत्तराखंड में बीते दिन कुदरती आफत ने फिर अपना कहर बरपाया है। ग्लेशियर टूट जाने की वजह से चमोली में बड़ा नुकसान हुआ, जहां पानी के तेज बहाव में काफी कुछ बह गया। प्लांट से लेकर पुल और घर तक को इस हादसे में नुकसान हुआ है। अभी तक कुल 14 शव मिले हैं, जबकि 150 अधिक लोग गायब बताए जा रहे हैं।