MP

धरी की धरी रह गई धरा सारी गगन मगन है रोने में…..चेहरा हो गया ऐसा न पोछने में न धोने में…

Author Picture
By Shivani RathorePublished On: June 6, 2024

*प्रखर वाणी* 

पंजे की गिरफ्त में कमल आ गया और खिलते खिलते मुरझा गया। चार सौ पार का फील गुड स्वयं भाजपा को ही खा गया। राहुल को हल्के में लेना और अखिलेश के पट्ठों को धोना भारी पड़ गया। बाबा के बुलडोजर पर साइकिल का पहिया चढ़ गया। फिर शुरू होगा तमाशा सत्ता की ललक को ललकार का। दल से दल दल हो जाएगा अब आगे बनने वाली सरकार का। दो तिहाई बहुमत का सपना चूर होकर पूर्ण बहुमत को तरस रहा है। परिणाम के बादलों की ओट से सीटों का मावठा बरस रहा है।

धरी की धरी रह गई धरा सारी गगन मगन है रोने में.....चेहरा हो गया ऐसा न पोछने में न धोने में...

राममन्दिर के निर्माण के बाद तो सोचा था पूरी अयोध्या हमारी होगी। सत्ता के ललाट पर चमकेगा सूरज फिर कुर्सी पर रामलला की किलकारी होगी। मगर नतीजा उलट हो गया उत्तरप्रदेश पूरे देश पर भारी रहा। कारण जो भी हो पर परिणाम फिर धर्म की बीमारी रहा। सपा पास हो गई और बसपा फेल प्रजातंत्र में चलता है कुछ इसी तरह से कुर्सी का खेल। फिर सेंव , मिच्चर , परमल , दाल , प्याज मिलाकर बनाएंगे सियासत की भेल।

पांच साल में पचास बार चलेगी अस्थाई सरकार की रेलमपेल। बहुमत के जादुई आंकड़े तक पहुँच पाना अब स्वतंत्र रूप से तो किसी भी दल के नसीब नहीं रहा। परिणामों का रुझान बता रहा है कि अब ईवीएम से मत पाने में कोई भी दल गरीब नहीं रहा। धरी की धरी रह गई धरा सारी गगन मगन है रोने में। मन का मलाल उलाल हो गया चेहरा मायूस है न पोछने में न धोने में। दशा देश की ऐसी हो गई मोदी के भरोसे पूरी पार्टी फिर पार्टी के भरोसे देश।

मतदाता भी सोचता रहा भाजपाइयों छप्पन इंच को कब तक करोगे केश। भारत का इतिहास गवाह है नेतृत्व एकल फेस पर जब जब आकर टीका है। तब तब अंगूरी हो गई सारी लता और अंगूर का स्वाद भी न खट्टा है न मीठा है बस फीका ही फीका है। चिंतन भी और चिंता भी भाजपा और उसके इर्द गिर्द रहने वालों में जरूरी है। इस चुनाव में तो जनता के फैसले को स्वीकार करना भाजपा की मजबूरी है।