मध्यप्रदेश में स्थानीय निकाय चुनावों में अगले सप्ताह नामांकन प्रक्रिया जोर पकड़ने वाली है। उसके पहले पार्टियां अपने प्रत्याशी घोषित कर रही है। कांग्रेस ने तो महापौर प्रत्याशी घोषित भी कर दिए हैं। भाजपा के महापौर प्रत्याशियों के नाम सोमवार तक आ सकते हैं। प्रदेश में सबसे ज्यादा चर्चा में इंदौर नगर पालिक निगम के चुनाव हैं। यहां महापौर प्रत्याशी चयन को लेकर सरकार यानी मुख्यमंत्री व संगठन यानी प्रदेश अध्यक्ष के बीच में टकराव सीधा नजर आ रहा है।
इंदौर महापौर के भाजपा प्रत्याशी सूची में विधायक रमेश मेंदोला, पूर्व विधायक जीतू जिराती के बाद दो पूर्व विधायक गोपीकृष्ण नेमा और सुदर्शन गुप्ता को प्रभारी बनाकर रेस से बाहर किया गया। पूर्व महापौर मालिनी गौड़ के नाम की कहीं कोई चर्चा नहीं है। अब रेस में आगे दो वकील हैं। जो अभाविप से आते हैं। एक हैं मनोज द्विवेदी। दूसरे हैं पुष्पमित्र भार्गव। दोनों प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा और प्रदेश प्रभारी वी मुरलीधर राव के साथ लंबे समय से जुड़े हैं। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में दायित्व का कार्य कर चुके हैं।
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भार्गव इस समय अतिरिक्त महाधिवक्ता हैं। और मैं अपनी राजनीतिक अनुभव वाली सोच से उन्हें भविष्य का सांसद देखता हूं। मनोज द्विवेदी पूर्व अतिरिक्त अधिवक्ता हैं। स्वदेशी जागरण मंच, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कद्दावर कार्यकर्ता हैं। इन दोनों नामों में से कोई एक इंदौर के लिए महापौर पद का उम्मीदवार हो सकता है। एक और अच्छा नाम चर्चा में है पार्टी के नगर अध्यक्ष गौरव रणदिवे का। यह युवा साथी भी भविष्य की भाजपा का संकेत हैं। इन्हें मैं यहां से आगे विधायक और मंत्री बनता देखता हूं। डॉ. निशांत खरे का नाम भी सरकार के धड़े द्वारा चलाया गया। चलाया जा भी रहा है। जिला आपदा प्रबंधन समिति के अध्यक्ष के तौर पर आपने कोरोना की पहली, दूसरी लहर में काम किया। जहां तक मेरी जानकारी है कि इन्हें संघ ने अपने यहां के चिकित्सा प्रकोष्ठ के दायित्व से मुक्त कर दिया है।
लेकिन संगठन के नामों के आगे सरकार का एक नाम चलेगा क्या? क्या इंदौर में भाजपा प्रदेश संगठन की चलेगी। संगठन का प्रत्याशी जीतेगा। इंदौर का महापौर बनेगा तो जनता के साथ जो खेल चल रहा है वह बंद होगा। जनता और कार्यकर्ता दोनों अंदर ही अंदर कुलबुला रहे हैं। एक छटपटाहट है। शहर में वैसे भी चुनाव में ‘ब्राह्मण बनाम ब्राह्मण’ का नैरेटिव मीडिया सेट करना चाहता है। कांग्रेस ने ब्राह्मण प्रत्याशी घोषित भी किया है। संजय शुक्ला भाजपाई परिवार के हैं। और भाजपा के भोजन भजन तरीकों से विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं।
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भाजपा यदि कमजोर कैंडिडेट देगी तो जनता का असंतोष और कार्यकर्ताओं की अरुचि से मामला गंभीर हो सकता है। वैसे इंदौर में चुनाव भाजपा का आंतरिक चुनाव ही है। जो संघ संगठन बनाम सरकार होगा। जिस तरीके से कोरोना की दूसरी वेव मैनेज करने में जो कमियां, अनियमितताएं थी। संघ के नाम का जैसा उपयोग हुआ। इसकी सबको खबर है। तो इस बार 2022 के चुनाव 2023 के विधानसभा, 2024 के लोक सभा चुनाव की ड्रेस रिहर्सल ही हैं।
नोट: सन 2024 के लोक सभा चुनाव में इंदौर भोपाल ग्वालियर जबलपुर के चार सांसदों में दो या तीन बदलने की कवायद हो रही है। भोपाल ग्वालियर तो तय हैं।