मध्यप्रदेश में जैसे मानसून आते आते भटक गया – आनंद शर्मा

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आनंद शर्मा

मध्यप्रदेश में जैसे मानसून आते आते भटक गया है , या जाने कहाँ अटक गया है । कब से सुन रहे हैं , पढ़ रहे हैं कि मानसून अब आ रहा है, तब आ रहा है, दो दिन बाद आ रहा है, फलां तारीख को आ रहा है पर मानसून मानो शेयर बाज़ार के सुधरने की आशाओं सा बीच में ही कहीं सूख गया है। भारत में मानसून वैसे भी रूठी नायिका के स्वभाव सा है , जिसका पूर्वानुमान लगाना बड़ा मुश्किल होता है और कई सारे तत्व इसे निर्धारित करते हैं। भारतीय मौसम विभाग के विशेषज्ञ कहते हैं कि भारत का दक्षिणी आधा भाग उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में स्थित है जबकि उत्तरी आधा भाग उप उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में स्थित है।

कुल मिलाकर भारत उष्णकटिबंधीय और उप उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र का मिश्र है , जिसके कारण भारतीय मौसम की घटनाओं में अनिश्चितता होती है । वहीं दूसरी ओर इंग्लैंड जैसे देश हैं जो अतिरिक्त-उष्णकटिबंधीय क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं , जिससे उनका मौसम फ़्रंटल सिस्टम द्वारा निर्धारित होता है , जो अधिक स्थिर और सटीक रूप से पूर्वानुमानित किया जा सकता है । शायद इसलिए ही ए.एल. बाशम ने अपनी किताब “द वंडर देट वाज़ इंडिया” की शुरुआत में ही लिखा है कि भारत एक ऐसा देश है , जहाँ वर्षा मानसून से होती है , जिसका आना बड़ा ही अनिश्चित सा होता है , इसलिए भारत के लोग बड़े भाग्यवादी या ईश्वरवादी होते हैं । इसी कारण से देश प्रदेश के अनेक भागों में अच्छी वर्षा के लिए अजीब अजीब टोटके भी किए जाते हैं , कहीं लोग मेंढक-मेंढकी का विवाह रचाते हैं , तो कहीं खेतों में दिगम्बर अवस्था में हल चलाने का उपक्रम होता है।

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उज्जैन के प्रसिद्ध महाकालेश्वर मंदिर समेत अनेक मंदिरों में वर्षा के लिए पर्जन्य वृष्टि अनुष्ठान किए जाते हैं , पर मैं तो व्यक्तिगत रूप से यही मानता हूँ कि यदि आपकी आस्था सच्ची हो तभी ये उपाय फलीभूत होते हैं । एक लघु कथा है कि एक ग्राम में बहुत दिनों तक वर्षा नहीं हुई , धरा सूख कर फटने लगी तो गाँव वालों ने निश्चय किया की आज शाम ग्राम के मंदिर में सभी गाँव वाले इकट्ठा हो वर्षा के लिए सामूहिक प्रार्थना करेंगे । शाम को जब सब मंदिर की ओर जाने लगे तो देखा ग्राम का एक निवासी जिसे सब पागल कहते थे , छाता लेकर चला आ रहा है।

गाँव के कुछ लोगों ने उसका मज़ाक़ उड़ाया कि पानी तो गिर नहीं रहा और तू छाता लेकर घूम रहा है । पागल बोला अरे तुम लोग सामूहिक प्रार्थना करने जा रहे थे तो मैंने सोचा पानी से बचने के लिए छाता ले चलूँ । तो ऐसी ही आशा के साथ कि शीघ्र मेघ बरसें , कुछ बारिश के गीत गुनगुनाते हैं , और इसके लिये माखन लाल चतुर्वेदी जी के वर्षा गीत से अच्छा क्या होगा ।

बदरिया थम-थमकर झर री ।
सागर पर मत भरे अभागन
गागर को भर री ।
बदरिया थम-थमकर झर री ।

एक-एक, दो-दो बूँदों में
बंधा सिन्धु का मेला,
सहस-सहस बन विहंस उठा है
यह बूँदों का रेला।
तू खोने से नहीं बावरी,
पाने से डर री ।
बदरिया थम-थमकर झर री ।

जग आये घनश्याम देख तो,
देख गगन पर आगी,
तूने बूंद, नींद खितिहर ने
साथ-साथ ही त्यागी।
रही कजलियों की कोमलता
झंझा को बर री ।
बदरिया थम-थमकर झर री ।