सच कहता हुं…शिवराज मौन, मुलाकातों के पीछे आखिर कौन!

Shivani Rathore
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– हरीश फतेहचन्दानी –

ये एमपी की राजनीति का वो भरत मिलाप है जो शास्त्रों से बिल्कुल अलग सियासत का नया सबक बन गया है, अक्सर मुख्यमंत्री की कुर्सी के पाये हिलाने वाले नेता पहले मेल-मिलाप करते हैं फिर अलाप में डूब जाते हैं। मगर, इस बार ये भरत मिलाप ‘शिव’ की गद्दी से ज्यादा चेहरा बदलने की चिंगारी फूंक रहा है। कुछ ऐसा इन मुलाकातों में छिपा है जिसकी खुशबू मेल-मिलाप तक ही नहीं बल्कि दिल्ली के दोनों राम-लक्ष्मण तक जा पहुंची है। भले ही मिलाप करने वाले ये राग अलापे कि जो पहले कई बार नहीं हुआ वो अब की बार हम करके दिखाएंगे लेकिन कौन जाने साहब ये ‘शिवराज’ हैं ‘शिव’राज जो इन मिलापों से नहीं हिलने वाले हैं।

वैसे इन मुलाकातों के यूँ तो कई मायने है कोई इसे कोरोनाकाल के बाद की सौजन्य भेंट करार दे रहा है तो कोई नेताओं के बीच हुई चाय पर चर्चा बता रहा है लेकिन असल में ये और कुछ नहीं बल्कि विघ्न संतोषी सोच का मिलाप सीन है। मिलाप भी ऐसा जिसमें शोर है, मीडिया के कैमरों से बचकर नहीं बल्कि सामने लग रहा जोर है। इस मिलाप की श्रृंखला में कैलाश विजयवर्गीय की ब्रेकफास्ट पॉलिटिक्स भी है और केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल के घर हुआ डिनर भी है जो गाहे-बगाहें पक रही खिचड़ी से राजनीतिक पंडितों को अवगत करा रहा है।

जबकि पोखरण का कभी किसी ज़माने में शिकार हुए प्रभात झा भी गवर्नर इन वेटिंग होकर भी इस टेबल पॉलिटिक्स को हवा दे रहे हैं, वहीं कुछ नेता पर्दे के पीछे से अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं। आपको ये भी बता दें कि ‘शिव’राज की चिंता पहले कभी नेताओं को इतनी नहीं हुई जितनी इन दिनों हो रही है और दिल्ली के शेरों के हवाले से हर कोई बस कुर्सी पर बैठे ‘शिव’ को हिलाने में जुटा है।

मगर मौजूदा राजनीतिक हालात परिवर्तन नहीं बल्कि आधारस्तम्भ और मजबूत करने की ओर इशारा कर रहे हैं ।कारण भी साफ है दिल्ली के राम-लक्ष्मण तो आने वाले समय में 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों पर नज़रें जमा रहे हैं और ‘शिव’राज के बजाय ‘योगी’युग पर केंद्रित हैं बावजूद इसके कई पुराने ख़्वाहिशदार अब भी मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने के लिए बहादुरी दिखा रहे हैं जो बिल्कुल वैसा ही प्रतीत होता है जैसे बरसात के मौसम में फसल उगाई बहरहाल, ये वक्त कुर्सी हिलाने का नहीं बल्कि कोरोना महामारी से जंग जीतने का है, ये वक्त सत्ता में पैर जमाने का नहीं बल्कि लॉकडाउन के चलते आर्थिक संघर्ष को मजबूर जनता को मलहम लगाने का है, जनाब ये वक्त मुख्यमंत्री बदलने का नहीं बल्कि नी%