किसानों से की गई नरवाई न जलाने की अपील, बताए इससे खेत को होने वाले नुकसान

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इंदौर : वर्तमान में गेहूँ फसल की कटाई का कार्य अंतिम दौर में है। कटाई के बाद कुछ किसान गेहूँ के अवशेष (नरवाई) को जला देते है। नरवाई जलाने से पर्यावरण को भारी क्षति पहुँचती है, साथ ही खेत की मिट्टी के लाभदायक सूक्ष्म जीवाणु मर जाते हैं। भूमि गर्म हो जाने से उर्वरता घट जाती है। इसलिए किसानों से अपील की गई है कि गेहूँ की कटाई के बाद नरवाई न जलाएँ। नरवाई जलाना दण्डनीय अपराध है।

फसल के अवशेष जलाने से फैलने वाले प्रदूषण पर अंकुश, अग्नि दुर्घटनाएँ रोकने एवं जान-माल की रक्षा के उद्देश्य से नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के दिशा-निर्देशों के तहत कलेक्टर एवं जिला दण्डाधिकारी आशीष सिंह द्वारा पूर्व में ही आदेश जारी कर जिले में गेहूँ की नरवाई इत्यादि जलाने पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगाया जा चुका है।

आदेश का उल्लंघन करने पर भारतीय दण्ड विधान की धारा-188 के तहत कार्रवाई होगी। साथ ही किसी ने अवशेष जलाए तो उसे पर्यावरण मुआवजा भी अदा करना होगा। आदेश में स्पष्ट किया गया है कि दो एकड़ से कम भूमि धारक को 2500 रूपए प्रति घटना, दो एकड़ से अधिक व पाँच एकड़ से कम भूमि धारक को पाँच हजार रूपए प्रति घटना एवं पाँच एकड़ से अधिक भूमि धारक को 15 हजार रूपए प्रति घटना पर्यावरण मुआवजा देना होगा।

हार्वेस्टर मशीन संचालकों को हार्वेस्टर के साथ अनिवार्यत: स्ट्रारीपर (भूसा बनाने की मशीन) लगाकर कटाई करनी होगी। यदि कोई कृषक बिना स्ट्रारीपर के फसल काटने के लिये दबाब डालता है तो उसकी सूचना संबंधित पुलिस थाने, ग्राम पंचायत सचिव या ग्राम पंचायत निगरानी अधिकारी को देना होगी।

उप संचालक किसान कल्याण एवं कृषि विकास ने बताया कि नरवाई जलाने से भूमि में अम्लीयता बढती है, जिससे मृदा को अत्यधिक क्षति पहुँचती है । सूक्ष्म जीवाणुओं की सक्रियता घटने लगती है एवं भूमि की जलधारण क्षमता पर भी विपरीत प्रभाव पडता है । कम्बाईन हार्वेस्टर से कटाई के साथ ही भूसा बनाने की मशीन को प्रयुक्त कर यदि भूसा बनायेंगे तो पशुओं के लिए भूसा मिलेगा और फसल अवशेषों का बेहतर प्रबंधन हो सकेगा। साथ ही भूमि की उर्वरा शक्ति बनी रहेगी और पर्यावरण भी सुरक्षित होगा।