किसी भी घर में जब किसी व्यक्ति की मौत होती है तो वो घर एक तरह से बर्बाद हो जाता है। इंदौर में बीते छह माह में 370 से ज्यादा लोगों की जान कोरोना के कारण जा चुकी है। इसमें कई लोग ऐसे थे जो कि अपने परिवारों का सहारा थे, उनके बगैर घर चलाना मुश्किल है। वे भी इस बीमारी में दुनिया से रूख्सत हो गए। उनके जाने के बाद उनके परिवार की स्थिति बेहद खराब है। ये अकेले एक व्यक्ति की नहीं एक परिवार की मौत के समान हालत है। भारत के संविधान के आधार में ये बात का ध्यान रखा गया था कि किसी भी बेगुनाह की मौत लापरवाही से न हो। लापरवाही से होने वाली मौतों के लिए जिम्मेदार को कड़ी से कड़ी सजा का प्रावधान भी रखा गया। लेकिन क्या इंदौर के मामले में इसका पालन हो पाएगा। क्योंकि इंदौर में कोरोना के फैलने को लेकर केंद्रीय दल की जो रिपोर्ट सामने आई है उसमें इंदौर के लिए जिम्मेदारों को ही लापरवाह बताया गया है। उनके कारण ही न सिर्फ शहर बल्कि प्रदेश में भी कोरोना फैलने की बात कही गई है। जिम्मेदारों के कारण फैली इस बीमारी और उसमें हुई मौत के लिए अब किसे जिम्मेदार माना जाए और किसे इसकी सजा दी जाए? केंद्र सरकार को, क्योंकि केंद्रीय स्वास्थ्य विभाग के दल ने ये रिपोर्ट गृहमंत्रालय को सौंपी थी। इस रिपोर्ट में लापरवाही बरती जाने की बात सपष्ट तौर पर लिखी होने के बाद भी केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इसे फैलाने में सहायक होने वालों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की। या फिर इन मौतों के लिए राज्य सरकार को जिम्मेदार माना जाए। क्योंकि अपनी ही पार्टी की केंद्र सरकार की रिपोर्ट को राज्य सरकार ने नकार ही दिया है, इसीलिए तो अभी तक इसमें जिम्मेदार बताए गए लोगों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। न ही इंदौर में कोरोना को रोकने के लिए अतिरिक्त कदम उठाए। उल्टा लोगों को मरने के लिए छोड़ सा ही दिया है। जिसके कारण रोजाना जहां मरीजों की संख्या बढ़ रही है, वहीं मौतों का आंकड़ा भी उपर की ओर जा रहा है। रिपोर्ट के सामने आने के बाद भी सरकारें धृतराष्ट्र बनकर जनता की बेबसी से होते चीरहरण को देखकर भी अनदेखा कर रही है। सरकारों के इस चौसर के खेल में कई परिवार बर्बाद हो चुके हैं, वहीं कई परिवार आर्थिक और मानसिक तौर पर लगातार बर्बाद हो रहे हैं, उनकी बदहवासी को रोकने के लिए कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही है। राज्य सरकार के साथ ही विपक्ष भी मौन बना हुआ है, आखिरकार क्यों जनता की बर्बादी को सब सहन कर रहे हैं। क्या सरकारों की बेबसी इसकदर है कि वे जनता को मरता देख सकते हैं, लेकिन जिन्हें जिम्मेदारी दी थी उनकी नाकामी पर उन्हें नहीं बदल सकते। क्या मजबूरी है जो सरकारों के हाथ बांधे हुए हैं। क्या मध्यप्रदेश के निवासियों को ये समझ लेना चाहिए कि सरकारों की नजर में उनकी औकात केवल वोट डालने तक ही सीमित है, क्या मतदाता महाप्रभू के जीवन के प्रति उनकी कोई जवाबदारी नहीं है। क्या सरकार को अपने कारिंदे जनता से ज्यादा आवश्यक लगते हैं। जनता की बात को सुनने के लिए क्या कोई है भी जो उन्हें इंसाफ दिला पाएगा और बर्बादी के इन मसीहाओं को उनके किए पर कोई सजा मिल पाएगी।
बाकलम- नितेश पाल