प्रदेश कांग्रेस महामंत्री (मीडिया) के.के.मिश्रा ने पंचायत चुनाव कराने को लेकर अध्यादेश लाने वाली शिवराज सरकार द्वारा आज इसे न कराए जाने के राज्यपाल को भेजे गए कैबिनेट प्रस्ताव को प्रदेश के अभूतपूर्व मुख्यमंत्री,नेता प्रतिपक्ष श्री कमलनाथ की कुशाग्र रणनीति, राज्य की 57% ओबीसी आबादी की एकजुटता के आगे सरकार का आत्मसमर्पण निरूपित किया है। उन्होंने कहा कि सरकार के मुखिया श्री शिवराजसिंह चौहान, भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष श्री वीडी शर्मा सहित समूची सरकार व पार्टी जहां कांग्रेस के इस विषयक सामयिक रुख को एक सुविचारित रणनीति के तहत “महापाप” बता रही थी,अब उसमें ही उसे शामिल क्यों होना पड़ा?
मिश्रा ने कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243-ए व 243-डी में परिसीमन, आरक्षण व रोटेशन का प्रावधान स्पष्ट है,किन्तु राज्य सरकार के दबाव में राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा इन प्रावधानों की धज्जियां उड़ाई जा रही थी, जिसे लेकर असहमति के स्वर स्वाभाविक थे। माननीय सर्वोच्च अदालत द्वारा अनपेक्षित आदेश को लेकर सरकार के प्रतिष्ठित वकीलों की मौजूदगी / खामोशी आज भी प्रश्नचिन्ह है? बावजूद इसके अपने राजनैतिक अपराध का दोष राज्य सरकार व भाजपा ने एक साजिश के तहत कांग्रेस पर मढ़ने की नाकाम कोशिशें की,आखिरकार आज किये गए उसके “आत्मसमर्पण” ने सच्चाई को उजागर कर दिया है। अब यह भी स्पष्ट हो गया है ओबीसी विरोधी रचे गए इस तानेबाने में संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत की वह मंशा शामिल थी,जिसे उन्होंने 21 सित.2015 को अपनी ही विचारधारा के मुखपत्र “पांचजन्य” को दिए गए साक्षात्कार में आरक्षण का विरोध करते हुए कही थी!