ग़ाज़ीपुर (Ghazipur) से चलकर लखनऊ जाने वाले एक्सप्रेस वे के लोकार्पण ने मेरी 60 वर्षों पूर्व की यादों को ताज़ा कर दिया। बचपन में चौथी से लेकर सातवी कक्षा तक की शिक्षा मैने ग़ाज़ीपुर (UP) में पाई जहां उस समय मेरे पिताजी मजिस्ट्रेट के पद पर पदस्थ थे। लखनऊ (Lucknow) मेरा गृह जिला था इसलिए गर्मियों की छुट्टी में बड़े उत्साह के साथ ग़ाज़ीपुर से लखनऊ आना जाना होता था। उस समय सड़क मार्ग की तो कोई सोच भी नहीं सकता था। रेल भी सीधे नहीं जाती थी। ट्रेन से जाने के लिए ग़ाज़ीपुर से छोटी लाइन से औड़िहार जंक्शन जाना पड़ता था जहाँ से दूसरी गाड़ी बदलकर आगे जाना पड़ता था। उस समय रेल गाड़ी में चलने का अपना अलग रोमांच होता था। ट्रेन बदलकर दूसरी ट्रेन पकड़ना, घर से लाई आलू पूड़ी का भोजन, अपनी सुराही से पानी पीना और होल्डाल खोलकर बिस्तर लगाकर सोना आनन्द से पुलकित कर देता था।
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आज 60 वर्ष बाद ये दोनों शहर एक्सप्रेस वे से जुड़ गए हैं और आधुनिक SUV वाहन आदि से बहुत कम समय में सुविधाजनक तरीक़े से यह दूरी पूरी की जा सकती है। भारत के निर्धनतम क्षेत्रों में से एक इस पूर्वांचल क्षेत्र में यह 22500 करोड़ की लागत से बना 341 किमी का एक्सप्रेस वे संभवतः कुछ आर्थिक हलचल ला सके। अवसर मिलने पर मैं इस मार्ग पर चलना चाहूँगा जिससे पुराने दिनों की यादों को जीवंत किया जा सके।