इंदौर(Indore News): विद्यार्थियोंको एक समृद्ध, व्यावहारिक और सामाजिक रूप से उन्मुख दृष्टिकोण प्रदान करने के लिए, आईआईएम इंदौर(IIM Indore) ने 2009 में रूरल इमर्शन प्रोग्राम (जिसे अब रूरल इंगेजमेंट प्रोग्राम-आरईपी के नाम से जाना जाता है) शुरू किया था। इस प्रोग्राम का उद्देश्य उभरते युवा प्रबंधकों और उद्यमियों को सरकार द्वारा गांवों में चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं का अध्ययन और उनके क्रियान्वयन और प्रभावशीलता का विश्लेषण करना और इसके प्रति संवेदनशील बनाना है।
आरईपी 2021 का ओरिएंटेशन प्रोग्राम आईआईएम इंदौर में 25 अक्टूबर, 2021 को हाइब्रिड मोड में आयोजित किया गया। कार्यक्रम का उद्घाटन आईआईएम इंदौर के निदेशक प्रो.हिमाँशु राय ने किया। प्रो. भवानी शंकर, आरईपी कोऑर्डिनेटर और फैकल्टी, आईआईएम इंदौर भी इस अवसर पर उपस्थित थे। इस वर्षप्रतिभागी स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा जारी किए गए कोविडदिशानिर्देशों के आधार पर, मध्य प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना के बाद स्वास्थ्य और स्वच्छता पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन करेंगे।
प्रो. राय ने अपने संबोधन में कहा कि पहले प्रतिभागी गांवों से बाहर रहते थे और ग्रामीणों के सामने आने वाली समस्याओं का विश्लेषण करते थे। ‘हमें अहसास हुआ कि देश के सबसे प्रतिभाशाली युवा, हमारे विद्यार्थी, इससे बहुत अधिक करने में कुशल और सक्षम हैं।इसीलिए,आईआईएम इंदौर के राष्ट्र निर्माण में योगदान देने के लिए हर कदम उठाने के दृष्टिकोण के अनुरूप, हमने आरआईपी को आरईपी में संशोधित करने का फैसला किया, और इसलिए, ग्रामीण क्षेत्रों की समस्याओं को समझने के लिए प्रतिभागी अब स्वयं भी गांवों में रहते हैं।
वे मुद्दों को हल करने के समाधान के साथ एक रिपोर्ट प्रस्तुत करते हैं’, उन्होंने कहा। वर्तमान कोरोनाकाल में, इस वर्ष प्रतिभागी ग्रामीणों के साथ टेलीफोनिक साक्षात्कार के माध्यम से अध्ययन करेंगे। यह उल्लेख करते हुए कि भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले 833 मिलियन से अधिक लोगों के पास स्वच्छ पेयजल, बिजली, शिक्षा या इंटरनेट जैसी प्राथमिक सुविधाओं तक पहुंच नहीं है, प्रो. राय ने कहा कि अब समय आ गया है कि हम यह समझें कि ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों की समस्याएं अलग हैं। ‘ऐसी बहुत सी चीज़ें जो हमें आसानी से उपलब्ध हैं, वे ग्रामीणों के लिए एक बड़ा विशेषाधिकार है।
हमें अन्य लोगों के लिए उनकी प्राथमिकताएं तय करना बंद कर देना चाहिए और इसके बजाइ उनके मुद्दों और परेशानियों को समझना चाहिए’, उन्होंने कहा। आरईपी एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम है क्योंकि यह न केवल प्रतिभागियों को जमीनी हकीकत को समझने में मदद करता है बल्कि उनकी सामाजिक चेतना, संवेदनशीलता और प्रबंधकीय और निर्णय लेने के कौशल को भी बढ़ाता है। उन्होंने प्रतिभागियों को बताया कि आरईपी की एक सप्ताह की यह यात्रा उन्हें यादें बनाने और ग्रामीण क्षेत्रों में समस्याओं को समझने में मदद करेगी, लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि इस कार्यक्रम के माध्यम से उन्हें जो संवेदनशीलता मिलेगी, वह जीवन भर उनके साथ रहेगी।
उन्होंने कहा, ‘यदि आप इस कार्यक्रम के दौरान एक भी व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं, तो आप एक संवेदनशील और दयालु इंसान के रूप में बहुत अच्छा काम कर रहे होंगे’। आरईपी के विषय में जानकारी देते हुए, प्रो. भवानी शंकर ने कहा कि आईआईएम इंदौर ने ग्रामीण लोगों के जीवन में बदलाव लाने के एक नेक विचार के साथ कई कदम उठाए हैं। ‘ग्रामीण परिदृश्य में बदलाव लाना एक कठिन कार्य है, हालांकि, प्रतिभागियों का इस एक सप्ताह के दौरान ग्रामीणों के साथ रचनात्मक जुड़ाव हो सकेगा। उन्होंने कहा कि वे महामारी के प्रभाव का पता लगाने और उससे उत्पन्न हुई समस्याओं से कैसे निपटें, इस पर काम करेंगे।
प्रतिभागियों को प्रो. शंकर और प्रो. अजीत फडनीस द्वारा मध्य प्रदेश के नागरिकों के बीच स्वास्थ्य और स्वच्छता व्यवहार पर सर्वेक्षण उपकरणों का विवरण और स्पष्टीकरण दिया गया। पीजीपी और पीजीपीएचआरएम के प्रथम वर्ष और आईपीएम के चौथे वर्ष के कुल 648 प्रतिभागी मध्य प्रदेश के 52 जिलों के 30,000 से अधिक ग्रामीणों के साथ टेलीफोन पर संवाद करेंगे। 6 छात्रों की दो टीमें एक जिले का अध्ययन करेंगी और प्रत्येक जिले के 600-700 नागरिकों के डेटाबेस पर काम करेंगी। इसमें नागरिकों द्वारा कोविडदिशा-निर्देशों का पालन करना, बाधाओं का सामना करना और उसके पीछे के कारणों को समझना और बाधाओं को दूर करने के लिए सिफारिशों को पेश करना शामिल है। प्रतिभागी 03 नवंबर, 2021 को रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगे।