शशिकांत गुप्ते का व्यंग्य
आस्थावान लोगों की मनोकामना पूरी हो गई।अब कोई भी रोक नहीं सकता।कोई टोक नहीं सकता है।आस्थावान लोगों ने रामजी की सच्ची कसम खाई थी।मंदिर वही बनाएंगे।मंदिर की अनुमानित लागत करोडों रुपयों की होगी।पवित्र कार्य के लिए दानवीरों के द्वारा मुक्तहस्त से दान दिया गया होगा,और दिया भी जाएगा। इस पर कुछ व्यंग्यकार कहेंगें,यह जो भी दान रूपी पैसा है यह निश्चित ही सफेद झक पैसा होगा या मंदिर में चढ़ाने के बाद सफेद हो जाएगा?यह व्यंग्यकार निश्चित ही नास्तिक होंगे।
आलोचना करने वाले तो यह भी कहेंगे कि,अपना देश, राम भरोसे भारत हो गया है।अच्छे और पवित्र काम की इसी तरह आलोचना होती रहती है।
मंदिर का स्वरूप दिव्य-भव्य होगा।त्रेतायुग में तो रघुकुल शिरोमणि, रघुकुल की रीत को निभाने की परंपरा का निर्वाह करने के लिए बाध्य थे।रघुलुक के लोगों को वचन की कीमत पर प्राण न्योछावर करने में भी कोई संकोच नहीं होता था।
वचन निभाने के लिए,मर्यादा पुरुषोत्तन को भी प्रारब्ध वश महल छोड़ कर पंचवटी की पर्ण कुटिया में निवास करना पड़ा था।कलयुग में रामजी की किस्मत चैत गई।निष्ठावान लोगों के सौजन्य से रामलला, दिव्य मूर्ती के रूप में भव्य मंदिर में विराजमान होंगे। मंदिर बनने की प्रक्रिया को देख एक लाल बावटे वाले बंगाली बाबू आलोचना ही करेंगे।यह लोग संख्या शास्त्री होते हैं।तुरन्त आंकड़े गिनवा देंगे। 2500 करोड़ राम मंदिर का बजट। कुंभ का बजट 3000 करोड़ विदेश दौरा 700 करोड़ ट्रम्प के आतिथ्य में 125 कोरोड।
क्या कोरोना महामारी के लिए पी. एम.केअर फंड,में लोगों से चंदा मांगना उचित है? ऐसा आरोप लगाने वालों से सवाल है?दुनिया के मजदूरों की चिंता करने वालों आपके बंगाल में बंगलियों से ज्यादा आज भी कंगालियों संख्या ज्यादा क्यों हैं?यह भी स्पष्ट रूप से बताओं।लाल बावटे वाले तो आलोचना करेंगे ही,यह लोग नास्तिक होते हैं, भगवान को नहीं मानते है।आलोचना करने वालों में बहुत से मुलायम लोग भी हैं।मोह माया में लिपटे भी हैं।इन लोगों का रवैया हमेशा ढुल मुल होता है।यह लोग जिधर बम उधर हम वाली मानसिकता को अपनाते हैं।
आलोचना करने वालों को आस्थावान लोगों की भावनाओं को समझना चाहिए। इस मुद्दे से देश के करोड़ों आस्थावान लोगों की भावनाएं जुड़ीं हैं। मंदिर बनाने के लिए रथ पर सवार होकर संघर्ष किया गया था।तादाद में लोगों ने प्राण न्योछावर किए थे।जब भी किसी की आस्था पर चोंट पहुँचती है तो वह स्वाभाविक रूप क्रोध में आ जाता है।क्रोध में मानव उत्तेजित होकर हिंसा कर बैठता है।यह सामान्य सी बात है।इस हिंसा में कुछ अति उत्साहित लोग अपनी जान गवां देते हैं।इसे पवित्र कार्य के लिए किया गया बलिदान ही समझना चाहिए।आलोचना नहीं करना चाहिए। आलोचना करने वाले तो यहाँ तक कहेंगे कि,मंदिर बनने से और किसी को रोजगार मिले या न मिले भिखारियों को रोजगार जरूर मिल जाएगा।दिव्यांग लोगों की कतार दिखाई देगी।
दानवीरों द्वारा इन बेबस बेकस लोगों को मुक्तहस्त से दान रूपी पैसा और भंडारा के आयोजन में अन्नदान भी प्राप्त होगा।यह पुण्य का काम है।इस तरह का कार्य सभी धार्मिक स्थानों पर होता है।इसलिए यह आलोचना का विषय नहीं है। मंदिर निर्माण के समर्थक द्वारा मंदिर निर्माताओं को एक सुझाव है। मंदिर परिसर में मन्नत मांगने के लिए धागा बांधने की व्यवस्था की जानी चाहिए।पंच रंगी धागा भक्तों को निःशुल्क मिलने की सुविधा होनी चाहिए। सभी कार सेवकों को बधाई। जय जय सिया राम। रामचन्द्र की जय। पुनःकसम पूरी होने पर सभी को बधाई।