भारतीय प्रबंधन संस्थान इंदौर (आईआईएम इंदौर) में 18वीं ऑल इंडिया कांफ्रेंस ऑफ चाइना स्टडीज़ (AICCS) का उद्घाटन हुआ। यह कांफ्रेंस इंस्टीट्यूट ऑफ चाइनीज़ स्टडीज़ (ICS), नई दिल्ली के सहयोग से आयोजित की जा रही है। तीन दिवसीय यह कांफ्रेंस विद्वानों, राजनयिकों, उद्योग जगत के विशेषज्ञों और नीति विशेषज्ञों को एक मंच पर ला रही है, ताकि वे वैश्वीकरण की बदलती दिशा और व्यापार, तकनीक एवं सतत विकास के क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव पर विचार-विमर्श कर सकें।
कांफ्रेंस का उद्घाटन आईआईएम इंदौर के निदेशक प्रो. हिमांशु राय ने किया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में राजदूत अशोक के. कंथा, भारत के पूर्व चीन राजदूत एवं विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन, नई दिल्ली के विशिष्ट फेलो; सुश्री अलका आचार्य, निदेशक, इंस्टीट्यूट ऑफ चाइनीज़ स्टडीज़, नई दिल्ली; प्रो. जी. वेंकट रमन, कांफ्रेंस के संयोजक एवं आईआईएम इंदौर के फैकल्टी; तथा श्री अरविंद येलरी, सह-संयोजक एवं जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के प्राध्यापक सहित कई विशिष्ट अतिथि उपस्थित थे।
अपने उद्घाटन संबोधन में प्रो. हिमांशु राय ने कहा कि आज के आपस में जुड़े हुए विश्व में भारत और चीन दो सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ हैं, जो व्यापार, तकनीक और सतत विकास पर होने वाली वैश्विक चर्चाओं के केंद्र में हैं। उन्होंने कहा, “दोनों देश नवाचार की लंबी परंपरा से प्रेरित हैं — भारत ने गणित, खगोलशास्त्र और चिकित्सा के क्षेत्र में योगदान दिया, जबकि चीन ने दिशा सूचक यंत्र (कंपास), कागज़ निर्माण और अभियांत्रिकी में नई ऊँचाइयाँ हासिल कीं। आज, ज्ञान और अनुसंधान पर यह साझा बल दोनों देशों को उभरती प्रौद्योगिकियों, नवीकरणीय ऊर्जा और वैश्विक बुनियादी ढांचे के विकास में प्रतिस्पर्धा और सहयोग, दोनों की संभावनाएँ देता है।”
प्रो. राय ने कहा, “हमारी मानव पूँजी का उपयोग करने, समाधानों को बड़े पैमाने पर लागू करने और बहु-विषयी नवाचार की क्षमता — यही हमारी साझा ताकत है, जो न केवल हमारे देशों, बल्कि पूरे विश्व के लिए लाभदायक हो सकती है।”
उन्होंने यह भी कहा कि भारत और चीन दोनों के पास शासन की गहरी परंपराएँ और सांस्कृतिक समृद्धि है। “दोनों सभ्यताओं में संगठित नौकरशाही, सिविल सेवा और शिक्षा प्रणालियों की लंबी परंपरा रही है, जो सामाजिक गतिशीलता और योग्यता आधारित अवसरों को बढ़ावा देती हैं। शिक्षा, अनुसंधान और वैश्विक संवाद के प्रति हमारी साझा प्रतिबद्धता हमें वैश्विक स्थिरता और सतत विकास में सार्थक योगदान देने के लिए मजबूत आधार प्रदान करती है।”
अपने मुख्य संबोधन में राजदूत अशोक कंथा ने चीन के उदय, नवाचार आधारित विकास और भू-राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि भारत को चीन के साथ व्यवहार में व्यावहारिकता अपनाते हुए अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को भी सुदृढ़ रखना चाहिए। उन्होंने 2020 के बाद से भारत-चीन संबंधों में आई गिरावट, सीमा स्थिरता की आवश्यकता, सावधानीपूर्वक आर्थिक और जन-आधारित संवाद पर बल दिया और पश्चिमी दृष्टिकोण पर अत्यधिक निर्भरता से सावधान रहने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि भारत को अपनी परिस्थितियों के अनुरूप स्वदेशी नीति ढांचे विकसित करने चाहिए, ताकि चुनौतियों और अवसरों का बेहतर सामना किया जा सके।
सुश्री अलका आचार्य ने कहा कि भारत के लिए चीन को गहराई से समझना अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने AICCS को एक अनूठा मंच बताया, जो अंतर्विषयी संवाद, युवा शोधकर्ताओं के लिए मार्गदर्शन और नीति तथा अनुसंधान के बीच सहयोग को बढ़ावा देता है। उन्होंने कहा, “संस्थागत सहयोग और संसाधनों के माध्यम से हमारा उद्देश्य चीन अध्ययन को विस्तार देना, विशेषज्ञता विकसित करना और सशक्त व सूचित विमर्श को प्रोत्साहित करना है।”
प्रो. जी. वेंकट रमन ने कहा कि चीन का उदय और उसका प्रभाव वैश्वीकरण, व्यापार, प्रौद्योगिकी और सतत विकास के लिए गहन रूप से प्रासंगिक है। उन्होंने कहा कि चीन की गति, पैमाने और आकांक्षाओं को समझना आवश्यक है, और AICCS जैसी कांफ्रेंस इन विषयों पर संवाद और सहयोग को सशक्त बनाती हैं।
अरविंद येलरी ने सभी निदेशकों, आयोजकों, वक्ताओं, प्रायोजकों और स्वयंसेवकों के प्रति आभार व्यक्त किया, जिन्होंने 18वीं AICCS को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने चीन अध्ययन में निरंतर अनुसंधान, संवाद और सहयोग की आवश्यकता पर बल दिया।
अगले दो दिनों में कांफ्रेंस में कई महत्वपूर्ण विषयों पर पैनल चर्चाएँ आयोजित की जाएँगी। इन चर्चाओं में ऐसे विविध मुद्दों पर विचार होगा, जो भारत-चीन संबंधों की गहराई और वैश्विक संदर्भ में उनकी भूमिका को समझने में मदद करेंगे। विषयों में शामिल हैं — चीन अध्ययन में वर्तमान प्रवृत्तियाँ और शोध, भारत और चीन के साथ व्यापार करने के भारतीय व्यवसायिक विशेषज्ञों के अनुभव, शुल्क युद्ध और व्यापारिक समझौते जैसे मुद्दों पर दोनों देशों के बीच सहयोग की संभावनाएँ, वैश्वीकरण के बदलते स्वरूप में व्यापार, प्रौद्योगिकी और सतत विकास की भूमिका, बहुध्रुवीय विश्व में चीन की स्थिति और प्रभाव, तथा चीन की तकनीकी प्रगति और उस पर लगे व्यापारिक प्रतिबंधों के निहितार्थ। इन सत्रों का उद्देश्य भारत और चीन के बीच आपसी समझ, संवाद और सहयोग को और गहराई देना है।
इन सत्रों का उद्देश्य भारत-चीन संबंधों के भविष्य को व्यापार, तकनीकी नवाचार, सतत विकास और भू-राजनीतिक पुनर्संतुलन के दृष्टिकोण से समझना है। अनुसंधान-आधारित संवाद को प्रोत्साहित करते हुए, 18वीं AICCS भारत की चीन के साथ बौद्धिक सहभागिता को सुदृढ़ करने और बदलती वैश्विक परिस्थितियों में नीति निर्माण में सार्थक योगदान देने का प्रयास करती है।









