मध्यप्रदेश में पिछले आठ महीनों में निर्मित 76 दवाएं मानकों पर खरी नहीं उतरी हैं। इनमें पैरासिटामोल की गोलियां, विभिन्न प्रकार के इंजेक्शन, ओआरएस, आंखों में डालने वाला ऑइंटमेंट, विटामिन और कैल्शियम की गोलियां, साथ ही फेसवॉश जैसी दवाइयां भी शामिल हैं। यह रिपोर्ट केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) ने जारी की है, जिसमें स्पष्ट किया गया है कि इन दवाओं की गुणवत्ता राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप नहीं पाई गई।
कौन-कौन से शहरों की कंपनियों की दवाएं अमानक
CDSCO की जांच में यह भी सामने आया है कि इंदौर, पीथमपुर, देवास, उज्जैन, भोपाल, रतलाम और ग्वालियर की दवा कंपनियों द्वारा निर्मित दवाएं NSQ (Not of Standard Quality) सूची में शामिल हुई हैं। यह दर्शाता है कि केवल बड़े शहरों की ही नहीं, बल्कि मध्यप्रदेश के कई औद्योगिक केंद्रों में दवा निर्माण की गुणवत्ता पर गंभीर सवाल उठते हैं।
27 कंपनियों की 76 दवाएं फेल
जनवरी से अगस्त 2025 के बीच CDSCO ने समय-समय पर देशभर से दवाओं के सैंपल लेकर जांच की। जांच के दौरान कुल 27 कंपनियों की 76 दवाएं मानकों पर खरी नहीं उतरी। इस दौरान सबसे ज्यादा ध्यान इंदौर स्थित राऊ में स्थित समकेम कंपनी पर गया, जहां की 19 दवाएं अमानक पाई गईं। वहीं, सांवेर रोड की सिंडिकेट फार्मा की आठ दवाएं भी NSQ सूची में शामिल हुईं। मल्टीनेशनल कंपनी सिप्ला के रतलाम प्लांट की एक दवा भी अमानक मिली।
इंजेक्शन और गोलियों में खामियां
जांच में यह भी सामने आया कि मध्यप्रदेश की कुछ कंपनियों द्वारा निर्मित इंजेक्शन वायल में कचरा मिला। इसके अलावा, गोलियों के घुलने का समय भी मानक के अनुरूप नहीं था। उदाहरण के लिए, पैरासिटामोल की गोलियां, जिन्हें 3-4 मिनट में घुल जाना चाहिए था, वे 7-8 मिनट में घुलीं। विटामिन-बी की गोलियों की स्ट्रीप इतनी नरम थी कि गोलियां पाउडर के रूप में निकल रही थीं। यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि कुछ कंपनियों में दवा निर्माण की गुणवत्ता पर गंभीर ध्यान नहीं दिया जा रहा।
गुणवत्ता और स्वास्थ्य के लिए खतरा
इन अमानक दवाओं के बाजार में आने से न केवल मरीजों का स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है, बल्कि दवा निर्माण और निगरानी के मानकों पर भी सवाल उठते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि दवा कंपनियों को कड़ाई से गुणवत्ता नियंत्रण अपनाना चाहिए और राज्य एवं केंद्रीय स्तर पर इस दिशा में लगातार निगरानी की जरूरत है।