सावन मास हिंदू पंचांग का सबसे पवित्र महीना माना जाता है, जो भगवान शिव की उपासना और भक्ति का सर्वोत्तम समय होता है। इस माह में शिवभक्त व्रत रखते हैं, शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं और भोलेनाथ का आशीर्वाद पाने के लिए विशेष पूजा-अर्चना करते हैं।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में कुछ ऐसे चमत्कारिक स्थल हैं, जहां आज भी भगवान शिव के पावन चरण चिन्ह साक्षात मौजूद हैं? ये निशान केवल श्रद्धा का विषय नहीं, बल्कि भगवान शिव के इस धरती पर आगमन के जीवंत प्रमाण माने जाते हैं। आइए जानते हैं उन तीन दिव्य मंदिरों के बारे में जो भक्तों को अद्भुत आध्यात्मिक अनुभव कराते हैं।
पहाड़ी मंदिर, रांची
झारखंड की राजधानी रांची के केंद्र में स्थित पहाड़ी मंदिर न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह देशभक्ति और आत्मिक ऊर्जा का प्रतीक भी है। यह मंदिर एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित है, जिसे स्थानीय लोग श्रद्धा से “पहाड़ी बाबा का मंदिर” कहते हैं। यहां एक खास पत्थर पर भगवान शिव के चरण चिन्ह उकेरे हुए हैं, जिन्हें देखने के लिए हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन आते हैं।
कहा जाता है कि भोलेनाथ ने यहां पर तपस्या की थी और उसी दौरान उनके चरण चिन्ह यहां अंकित हो गए थे। सावन के महीने में इस मंदिर में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है और विशेष रुद्राभिषेक व जल चढ़ाने की परंपरा निभाई जाती है। भक्त मानते हैं कि यहां दर्शन करने से उनकी मनोकामनाएं शीघ्र पूर्ण होती हैं।
जागेश्वर धाम, उत्तराखंड
उत्तराखंड के अल्मोड़ा ज़िले में स्थित जागेश्वर धाम को शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक स्वरूप माना जाता है। यहां 124 से अधिक छोटे-बड़े मंदिर एक साथ मौजूद हैं, जो इस स्थान की प्राचीनता और पवित्रता को दर्शाते हैं। पहाड़ों की गोद में बसा यह स्थान साधना और ध्यान के लिए अत्यंत उपयुक्त माना जाता है।
जागेश्वर धाम के एक विशेष मंदिर में आज भी एक पवित्र शिला पर शिव के चरण चिन्ह मौजूद हैं। स्थानीय मान्यता है कि शिव ने इस स्थान पर ध्यान लगाया था और उनके कदमों की छाप इस पत्थर पर आज भी सुरक्षित है। यहां के चरण चिन्हों का स्पर्श करने से मानसिक शांति मिलती है और जीवन की बाधाएं दूर होती हैं।
थिरुवेंगडू और थिरुवन्नामलाई, तमिलनाडु
तमिलनाडु शिवभक्ति का धाम माना जाता है और यहां स्थित थिरुवेंगडू मंदिर एक अद्भुत ऊर्जा केंद्र है। इसे ‘स्वेदाम्बर स्थान’ कहा जाता है और यहां भगवान शिव के रौद्र रूप ‘अघोर मूर्ति’ की पूजा होती है। मंदिर परिसर में एक विशाल चट्टान पर शिव के पैरों के निशान स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं, जो इस बात का संकेत हैं कि त्रिलोक के संतुलन हेतु शिव स्वयं यहां पधारे थे।
इसके अलावा, थिरुवन्नामलाई नामक स्थान, जो अरुणाचल पर्वत के निकट स्थित है, शिव के अग्नि लिंग स्वरूप का प्रमुख केंद्र है। यहां ‘गिरीप्रदक्षिणा’ की परंपरा है, जिसमें भक्त पर्वत के चारों ओर घूमते हुए पूजा करते हैं। इस यात्रा के दौरान कई जगहों पर शिव के पदचिन्ह दिखाई देते हैं। मान्यता है कि शिव ने इस क्षेत्र की परिक्रमा की थी और जहां-जहां उनके चरण पड़े, वहां ऊर्जा का संचार हो गया।