इंदौर (Indore News) : किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग द्वारा सोयाबीन की फसल हेतु आवश्यक सलाह दी गई है। किसानों से कहा गया है कि वे खेतों में जल भराव नहीं होने दे। जल भराव होने की स्थिति में जल निकासी की समूचित व्यवस्था करें। फसलों की लगातार निगरानी करे। कीट व्याधी दिखाई देने पर उसके उपचार की तुरंत व्यवस्था करें। खेत में जल भराव की स्थिति में सोयाबीन की फसल में जड़ सड़न (रूट रोट) रोग का प्रकोप हो सकता है। ऐसी दशा में किसान जिन क्षेत्र में जल भराव है, वहाँ पर जल निकासी का उचित प्रबंधन करें।
किसानों को सलाह दी गई है कि साथ ही जड़ सड़न के रोकथाम हेतु, टेबूकोनाझोल 625 एम.एल., टेबूकोनाझोल+सल्फर 1250 एम.एल., हैक्जाकोनाझोल 5 प्रतिशत ई.सी. 500 एम.एल. या पायरोक्लोस्ट्रीबिन 20 प्रतिशत डब्ल्यू.जी. 375-500 एम.एल. प्रति हेक्टर की दर से किसी भी एक रसायन का छिड़काव करें। पीला वायरस (यलो मोइजेक) रोग को फेलाने वाली सफेद मक्खी के प्रबंधन हेतु खेत में यलोस्ट्रीकी ट्रेप लगाये, यलो मोईजेक तीव्र गति से फैलने पर-थायोमिथाक्सम 25 डब्ल्यू.जी. 100 ग्राम प्रति 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
नर वयस्क कीट के लिये सोयाबीन की फसल में प्रकाश जाल (लाइट ट्रेप) लगाए, जिससे फसल को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों की स्थिति के बारे में जानकारी के साथ-साथ उनका प्रबंधन किया जा सकें। बीज उत्पादन के लिये उगाई जाने वाली सोयाबीन के फसलों में अन्य सोयाबीन की किस्मों के पौधे है, तो उन पौधों को निकाल दे, जिससे बीज की शुद्धता बनी रहें।
प्रांरभिक अवस्था में प्रकोप करने वाले कीट/इल्लियां जैसे-लीनसीड केटरपीलर, हरी अर्द्धकुण्डलक, गर्डल बीटल इल्लियों के रोकथाम हेतु निम्न कीटनाशक-क्वीनालफॉस 25 ई.सी. 1500 एम.एल., इन्डोक्साकार्ब 14.5 एस.सी.300 एम.एल. या फ्लुबेन्डीयामाईड 39.35 एस.सी. 150 एम.एल. प्रति हेक्टर की दर से किसी एक कीटनाशक दवाई का 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर उपयोग किया जा सकता है।