क्या ऐसा था महाभारत काल का जीवन? मैनपुरी की खुदाई में मिले ऐतिहासिक सबूत, देखें तस्वीरें

मैनपुरी के किरथुआ गांव में 4000 साल पुरानी सभ्यता के अवशेष मिले हैं, जिनकी उम्र लगभग 1000-2000 ईसा पूर्व की है और यह क्षेत्र पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण है।

Abhishek Singh
Updated:

डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के इतिहास और संस्कृति विभाग ने मैनपुरी ज़िले की करहल तहसील स्थित किरथुआ गांव में लगभग 4000 साल पुरानी सभ्यता के अवशेषों का पता लगाया है। यहाँ खुदाई के दौरान प्राचीन ईंटें, मिट्टी के बर्तन, मूर्तियों के टुकड़े, खिलौने और करीब 50 से अधिक प्रकार की वस्तुएं बरामद हुई हैं। इसके साथ ही कुछ हड्डियां भी मिली हैं।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा की गई जांच में इन अवशेषों की उम्र ईसा पूर्व 1000 से 2000 वर्ष के बीच आंकी गई है। गौरतलब है कि मैनपुरी में इससे पहले भी करीब 4000 साल पुराने तांबे के हथियार मिल चुके हैं, जो इस क्षेत्र के ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व को सिद्ध करते हैं।

ग्रामीणों की खुदाई से उजागर हुआ अतीत

किरथुआ खेड़ा गांव में करीब 15 से 20 मीटर ऊंचा और लगभग 10 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला एक विशाल प्राचीन टीला स्थित है। स्थानीय ग्रामीण लंबे समय से इसकी खुदाई करते आ रहे थे, हालांकि टीले के एक हिस्से पर मंदिर निर्माण के कारण कुछ भाग अब भी सुरक्षित बचा हुआ है। इसकी जानकारी मिलने पर डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के इतिहास विभागाध्यक्ष प्रो. बी.डी. शुक्ला अपनी शोध टीम के साथ मौके पर पहुंचे और स्थल का सर्वेक्षण किया।

सर्वे के दौरान उन्हें कच्ची और पक्की ईंटों से बनी पुरानी दीवारें दिखाई दीं। साथ ही, मृदभांड (मिट्टी के बर्तन), अनाज भंडारण कोठार, प्राचीन ईंटें, खिलौने, मूर्तियों के टुकड़े और हड्डियां भी टीले में दबे मिले।

सभी प्राप्त अवशेषों को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के विदिशा स्थित रिसर्च सेंटर भेजा गया, जहां जांच में यह सामग्री हड़प्पा काल, प्रथम शताब्दी, कुषाण और गुप्त काल से संबंधित पाई गई।

कुषाण काल की मजबूती का नमूना, 8.2 किलो वजनी ईंट

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टीले की खुदाई में एक मजबूत पक्की दीवार का भी पता चला है, जिसे 8.2 किलोग्राम वजनी ईंटों से बनाया गया था। इन ईंटों की मोटाई लगभग 2.5 से 3 इंच, चौड़ाई 9 इंच और लंबाई 14 इंच मापी गई है। पुरातत्व विशेषज्ञों की जांच के अनुसार, ये ईंटें पहली शताब्दी की हैं और इन्हीं से बनी दीवार अब भी संरक्षित अवस्था में दिखाई दे रही है।

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इतिहास एवं संस्कृति विभाग के अध्यक्ष प्रो. बृजेश्वर दत्त शुक्ला ने बताया कि किरथुआ खेड़ा के निवासी छात्र रवीश कुमार यादव से सूचना मिलने के बाद वे शिक्षकों की टीम के साथ स्थल का निरीक्षण करने पहुंचे। खुदाई के दौरान टीले में कच्ची और पक्की ईंटों से बनी दीवारें, मिट्टी के बर्तन, मृदभांड और कुछ हड्डियाँ दिखाई दीं।

इन अवशेषों को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के रिसर्च सेंटर में जांच के लिए भेजा गया, जहां प्रारंभिक परीक्षण में इन्हें लगभग 4000 वर्ष पुराना बताया गया। फिलहाल कुछ अन्य वस्तुओं की जांच जारी है और शोध कार्य भी प्रगति पर है।

प्रो. शुक्ला के अनुसार, इन अवशेषों में महाभारतकालीन सभ्यता के संकेत मिलने की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता।

कई प्रकार की हड्डियाँ आईं सामने

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निरीक्षण के दौरान टीले में जगह-जगह हड्डियाँ दिखाई दीं, जिनमें से लगभग 10 से 12 को सावधानीपूर्वक एकत्र किया गया। इनमें से कई हड्डियाँ काफी क्षतिग्रस्त स्थिति में थीं। जांच के बाद विशेषज्ञों ने इन्हें ईसा पूर्व 1000 वर्ष पुराना माना है। प्रारंभिक परीक्षणों से यह भी स्पष्ट हुआ है कि ये हड्डियाँ संभवतः पशुओं की थीं।

लाल-काली मिट्टी के बर्तनों की खोज

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टीले से लाल और काली मिट्टी के साथ-साथ लाल-काली मिश्रित मिट्टी से बने घड़े, सुराही, सकोरा, धूसर रंग के मृदभांड, चाक से निर्मित घड़े, टेराकोटा के बने खिलौने, मूर्तियों के टूटे हुए टुकड़े, मनके, धातु के सिक्के, तांबे की चूड़ियां और अन्य कई प्रकार के अवशेष प्राप्त हुए हैं। टेराकोटा की मूर्तियों में पुरुष एवं महिला की आकृतियां और खिलौने भी शामिल हैं।