बिहार की सियासत पर जैसे-जैसे चुनाव का माहौल गहराता जा रहा है, वैसे-वैसे बाहरी राज्यों के दिग्गज नेता भी सक्रिय होते नजर आने लगे हैं। इस बार मध्य प्रदेश खास तौर पर फोकस में है, क्योंकि यहां के ओबीसी चेहरों को चुनावी समीकरण साधने के लिए बड़ा हथियार माना जा रहा है। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों ने प्रचार अभियान की जिम्मेदारी अपने भरोसेमंद नेताओं को सौंपने का निर्णय लिया है।
भाजपा का मास्टरप्लान – मोहन यादव और शिवराज होंगे स्टार प्रचारक
भाजपा ने बिहार में यादव वोट बैंक को साधने के लिए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव को सबसे बड़ा चेहरा बनाने की योजना बनाई है। यूपी और बिहार की राजनीति में यादव समाज का दबदबा हमेशा से रहा है। ऐसे में भाजपा, लालू प्रसाद यादव और उनके परिवार की पकड़ को चुनौती देने के लिए मोहन यादव को सामने ला रही है। मोहन यादव इससे पहले भी महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड और दिल्ली जैसे राज्यों में भाजपा के लिए चुनावी प्रचार कर चुके हैं और वहां उन्होंने संगठन को मजबूती दी थी।
इसके अलावा भाजपा ने अपने सबसे अनुभवी नेता और केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान को भी बिहार में प्रचार अभियान की जिम्मेदारी सौंपी है। किसान हितैषी और संवेदनशील छवि के लिए पहचाने जाने वाले शिवराज, बिहार के मखाना किसानों और गरीब तबके के बीच पहले से लोकप्रिय हैं। उनकी किसान-हित की नीतियां और सहज व्यवहार भाजपा के लिए बड़ा सहारा साबित हो सकते हैं।
कांग्रेस का ओबीसी कार्ड – यादव और पटेल नेता होंगे मोर्चे पर
दूसरी ओर कांग्रेस भी ओबीसी मतदाताओं को साधने में कोई कमी नहीं छोड़ना चाहती। पार्टी ने मध्य प्रदेश कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव और उनके भाई सचिन यादव को बिहार चुनाव प्रचार में अहम जिम्मेदारी देने का फैसला किया है। दोनों भाई प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर यादव समुदाय में प्रभाव रखते हैं।
इसके अलावा राज्यसभा सांसद अशोक सिंह (यादव), पूर्व मंत्री कमलेश्वर पटेल, वरिष्ठ नेता सत्यनारायण पटेल और दिनेश गुर्जर को भी चुनावी मैदान में उतारा जाएगा। कांग्रेस की योजना बिहार के ओबीसी बहुल इलाकों पर फोकस करने की है। इन नेताओं को राहुल गांधी की “वोट अधिकार यात्रा” से जोड़ा जाएगा, ताकि स्थानीय स्तर पर मतदाताओं से सीधा संवाद स्थापित किया जा सके।
ओबीसी समीकरण पर टिकी दोनों दलों की रणनीति
कुल मिलाकर देखा जाए तो बिहार चुनाव में इस बार मध्य प्रदेश के ओबीसी चेहरे निर्णायक भूमिका निभाते नजर आएंगे। भाजपा जहां मोहन यादव और शिवराज सिंह चौहान जैसे नेताओं पर दांव लगा रही है, वहीं कांग्रेस ने यादव-पटेल फैक्टर को साधने की रणनीति बनाई है। स्पष्ट है कि चुनावी मैदान में ओबीसी समीकरण ही दोनों पार्टियों की सबसे बड़ी प्राथमिकता है और एमपी के नेता इस बार बिहार की राजनीति में अहम किरदार निभाने जा रहे हैं।