रमण रावल
कितनी विचित्र बात है ना कि एक अदद कोरोना दिसंबर 2019 में चीन से चला और इटली,स्पेन,ब्रिटेन,अमेरिका,
रूस,यूरोप होते हुए मार्च तक एशिया में दाखिल हो गया, लेकिन दुनिया के 195 देशों से एक भी ऐसा सयाना नहीं निकला, जो इसे अपने यहां घुसने न दे। हैरत की बात है ये। 21वीं सदी आते-आते मनुष्य ने खुद को सुपर पॉवर मान लिया है। इतने आश्चर्यजनक आविष्कार और इतनी तरक्की के बाद ये मुगालता गलत तो नहीं है, फिर भी पिद्दू से कोरोना वायरस ने उसकी सारी हवा निकाल दी और बता दिया कि प्यारे, एक तुम ही नहीं हो जहां मेें। मत भूलो कि हर सेर को सवा सेर मिलता ही है। कोरोना तो सवा सौ सेर साबित हुआ । जिसका सीधा-सा आशय यह है कि मनुष्य सुपर ह्यूमन तो हो सकता है सुपर पॉवर कतई नहीं। वह तो कोई और ही है। कुछ भी नाम दे दो उसे-सुपर पॉवर,कुदरत,भगवान,अदृश्य शक्ति या और भी कुछ।
आप देखिये कि 195 देशों के राष्ट्राध्यक्ष,प्रधानमंत्री, सांसद,विधायक,अफसरान,विपक्ष के दिग्गज नेता, माइक्रोसॉफ्ट,गूगल,फेसबुक(जो आधुनिक दुनिया के स्वयंभू प्रभु हैं),ऑडी,फरारी,मर्सीडिज,लिम्बोर्गिनी वगैरह,वगैरह नामचीन कार कंपनियां,बिल गेट्स,वॉरेन बफेट,लक्ष्मी मित्तल,मुकेश अंबानी,अडाणी से लेकर तो सुंदर पिचई,डोनॉल्ड ट्रम्प,बॉरिस जॉनसन,पुतिन,नरेंद्र मोदी,संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी इमका-ढीमका संस्थायें,लाखों-करोड़ों वैज्ञानिक,चिकित्सक,शोधकर्ता,अध्यापक-प्राध्यापक,सीए,वकील,खिलाड़ी,अनाड़ी,कबाड़ी जो भी आप कह लें,उसके किसी के भी दिमाग में इत्ती-सी बात नहीं आई कि कोरोना वायरस परस्पर संपर्क से फैलता है तो हम अपने देश की सीमायें सील कर दें। लोगों की,परिवहन के साधनों की आवाजाही रोक देें। दुनिया भर की सबसे बड़ी पंचायत यूएनओ भी जैसे अफीम खाकर सोया पड़ा हो। गैर जरूरी तमाम मसलों में दुनिया को ज्ञान देने वाला यूएनओ तो सर्वाधिक अनुपयोगी साबित हुआ । सोशल मीडिया के तमाम ज्ञानचंद जो दिन – रात हर मसले से जुड़े एक से एक नायब नुस्खे बताते हैं , स्वास्थ्य ,सेहत ,कला,विज्ञानं,राजनीति,अर्थनीति आदि -इत्यादि पर ज्ञान गंगा उड़ेलते हैं उनमें से भी किसी के भेजे में यह बात नहीं आई कि कोरोना से दूर रहो , दुरुस्त रहो का फार्मूला आगे बढ़ाते।
आखिर यह कैसे हो गया कि दिसंबर में चीन से चलकर यूरोप में अपना जलवा दिखा चुके कोरोना के बारे में तमाम जानकारियां सामने आने के बावजूद एक माई का लाल इस बात को नहीं पकड़ पाया कि इस वायरस की गति-प्रगति रोकने का शर्तिया इलाज है,इसे किसी के संपर्क में आने से रोकना । यह देश-दर-देश, शहर-दर-शहर,मनुष्य-दर-मनुष्य फैल रहा है तो इसे वहीं रोक दें, जहां यह खड़ा है। करने को तो चीन भी यह कर सकता था, लेकिन जमाने का सयाना चीन भी करना तो ठीक सोच ही नहीं पाया और कोरोना के उद्गम स्थल वुहान से समाप्ति की घोषणा के बावजूद वहां फिर से फैल गया।
सोचने को विवश हूं कि जिस कोरोना के होने की और तेजी से फैलने की सूचना अमेरिका से अंतरिक्ष तक पलक झपकते फैल गई, वहां इसे रोकने की आसान-सी हिकमत क्यों नहीं फैली, क्यों नहीं सूझी ? माना तो यह जाता है कि धरती तल पर सबसे बुद्धिमान प्राणी मनुष्य है और यह सही भी है, तो फिर इस वक्त अचानक सांप क्यों सूंघ गया? यूरोप,अमेरिका,ब्रिटेन,रूस में पूरे समय किसी न किसी मसले पर शोध, चिंतन,मनन चलता रहता है। इलेक्ट्रॉनिक्स,इलेेक्ट्रिकल्स,मॉडर्न टक्नोलॉजी,नित नई डिवाइसेस,वाहन,मानव जीवन के लिये उपयोगी उपभोक्ता वस्तुओं की बेशुमार श्रृंखला, स्वास्थ्य,दैनंदिन जरूरत की चीजों की बढ़ती तादाद,ऐश्वर्य के साधन,अंतरिक्ष में सितारों की खोज,उन पर जीवन होने न होने के दावे,चांद,मंगल और सूर्य के रहस्यों को उजागर करना और न जाने क्या-क्या होने लगा है। दिमाग चकराता है और फिर सोचना ही बंद कर देता है कि जो होना होगा,होता रहेगा। ऐसे वक्त कहीं से निकलकर कोरोना आता है, दबे पांव किंतु तेज जाल। समूची मानव जाति को चपेट में ले लेता है। दुनिया का कोई गांव,शहर, व्यक्ति शायद ही बचा हो, जिसे यह पता न हो कि कोरोना नाम का कीड़ा,विषाणु संसार को आतंकित करने के लिये बढ़ा चला आ रहा है।
कितने कमाल की बात है कि अबूझ पहेलियों वाले संसार में एक बार फिर मनुष्य बेहद बौना साबित हुआ। संसार के बिरले रहस्यों को सुलझा लेने वाला मनुष्य एक वायरस को निष्प्रभावी नहीं कर पाया ,इसे फैलने से रोक नहीं पाया। भले ही कल हम कोरोना पर विजय पा लें, जो कि पायेंगे ही। तब भी यह सवाल तो अनुत्तरित ही रहेगा कि हमें किंचित भी भान क्यों नही हुआ कि इसे ऐसे रोक लेें? मुझे लगता है,मनुष्य को अब इतराना छोड़ देना चाहिये कि वह सब कर सकता है। वह सब करके भी कुछ नहीं कर सकता,यदि प्रकृति अपनी वाली पर आ जाये। इससे पहले भी अनेक आपदायें आईं और हमने उनका मुकाबला किया, आगे बढ़ गये। टाइफाइड,फ्लू,प्लेग,मलेरिया,सॉर्स,एड्स,कैंसर,पोलियो,अस्थमा और भी न जाने क्या-क्या बीमारियां आई और हमने उनके साथ जंग की, कभी जीते,कभी हारे, लेकिन आगे बढ़ते गये। इस कमबख्त कोरोना ने तो कदम ही नहीं सबकी सांसें रोक दी, दिल की धडक़नें बढ़ा दीं, शरीर में सुरसुरी पैदा कर दी, दिमाग को भिन्नाभोट कर दिया। राजा और रंक सबको एक पंक्ति में खड़ा कर दिया।
इन दिनों कुछ जुमले तो वाकई बेमिसाल चले। जैसे,कोरोना समाजवादी है, सबसे एकसमान व्यवहार करता है। यह भी कि इस समय सबसे अमीर वह नहीं है जिसके पास बेशुमार दौलत है, बल्कि वह है जो स्वस्थ है, जिसे कोरोना नहीं हुआ । सही है, आपके पास पैसा है तो इलाज करा लेेंगे, लेकिन आप बचेंगे ही यह गारंटी नहीं है। मनुष्य जो 1990 के बाद से वैश्वीकरण और औद्योगिक क्रांति, तकनीक के चमत्कृत कर देने वाले उपकरणों के अम्बार लगाकर लगातार इतरा रहा था,उसके गाल पर कुदरत ने ऐसा झन्नाटेदार थप्पड़ मारा कि तबियत झक हो गई है। इस वायरस ने दिखा दिया कि हे मनुष्य,तू भले ही राकेट बनाकर चांद,मंगल पर पहुंच जाये, बेतार के तार से जंगल से महल तक, आसमान से पाताल तक कहीं भी बैठकर आपस में बात कर ले, एक-दूसरे की शक्ल देख ले, जेब में एक धेला लिये बिना करोड़ों की खरीदारी कर ले, पलक झपकते एक से दूसरे देश पहुंच जाए ,अपने चेहरे को निखार ले, अपनी उम्र बढ़ा ले, अपने बुढ़ापे को छुपा ले, खोई जवानी लौटा ले,अपनी ही तरह का प्राणी क्लोन कर ले, लेकिन इतना जान ले, मैं अपनी वाली पर जब आऊंगा तो तू क्षण के सौवें हिस्से में सब भूल कर दुबक जायेगा। तूझे मेरे दंश से कोई नहीं बचा पायेगा। तो क्या प्रलय ऐसे ही किसी तरीके से आयेगा?