MP बना शिक्षा नीति में बदलाव करने वाला देश का पहला राज्य, नई भाषा सीखेंगे बच्चे, शिक्षा की गुणवत्ता में होगा सुधार

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By Srashti BisenPublished On: April 1, 2025
Higher Education Policy

Higher Education Policy : मध्य प्रदेश सरकार ने उच्च शिक्षा नीति में एक बड़ा बदलाव करते हुए भारतीय भाषाओं को शिक्षा के मुख्य धारा में शामिल किया है। अब राज्य के कॉलेजों में हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत और उर्दू के अलावा, बंगाली, मराठी, तेलुगु, तमिल, गुजराती और पंजाबी जैसी भारतीय भाषाओं में भी शिक्षा दी जाएगी। इस पहल के तहत, छात्रों को अपनी मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिलेगा, जिससे उनकी भाषाई क्षमता और सांस्कृतिक जुड़ाव में वृद्धि होगी।

भोपाल में आयोजित एक विचार-विमर्श सत्र के दौरान, इस प्रस्ताव पर गहन चर्चा की गई। सत्र में राज्यपाल, मुख्यमंत्री, शिक्षाविदों और विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की मौजूदगी ने इस निर्णय को और भी महत्वपूर्ण बना दिया। इस चर्चा के दौरान उच्च शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार ने इस निर्णय को लेकर खुशी व्यक्त की और इसे ‘भारतीय भाषाओं के संरक्षण और संवर्धन’ की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया।

‘भाषाएं जोड़ती हैं, तोड़ती नहीं’

मंत्री परमार ने कहा, “भाषाएं जोड़ती हैं, तोड़ती नहीं। सभी भारतीय भाषाएं हमारी अपनी हैं।” उनका मानना है कि यह निर्णय राज्य के छात्रों को भाषाई विविधता का सामना कराते हुए उन्हें एक सांस्कृतिक समृद्धि की ओर मार्गदर्शन करेगा। इसके अलावा, इस कदम से राज्य के विश्वविद्यालयों में अब छात्रों को विभिन्न भारतीय भाषाओं का अध्ययन करने का अवसर मिलेगा, जो न केवल उनकी भाषाई जानकारी को बढ़ाएगा, बल्कि राज्य को भाषाई विविधता का केंद्र भी बनाएगा।

NEP 2020 के तहत मध्य प्रदेश का प्रमुख कदम

मध्य प्रदेश का यह निर्णय राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के लागू होने के बाद लिया गया है। उच्च शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार ने बताया कि मध्य प्रदेश इस बदलाव को सबसे पहले अपनाने वाला राज्य बन गया है। प्रदेश ने एनईपी 2020 के तहत इस बदलाव को लागू किया, जिससे यह कदम देशभर में चर्चा का विषय बन गया। इसके पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में इस नीति को लागू किया गया था।

शिक्षा की गुणवत्ता में होगा सुधार

मध्य प्रदेश के इस फैसले से न केवल शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा, बल्कि यह भारत की बहुभाषी संस्कृति को भी बढ़ावा देगा। राज्य ने इसे एक सांस्कृतिक समृद्धि के रूप में प्रस्तुत किया है, जो भारतीय भाषाओं के संरक्षण और बढ़ावा देने की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है।