क्या कृषि एक धंधा है या उद्योग और इंडस्ट्री?

Suruchi
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हरी सिंह सोलंकी

मेरे विचार से कृषि धंदा या बिजनेस ही नहीं बल्कि एक पूरा का पूरा उद्योग है क्योंकि धंधे में सिर्फ सामान को खरीदा और बेचा जाता है जबकि उद्योग में सामान को बनाया जाता है । कृषि में भी किसान भाई बीज बोकर फसले तैयार कर रहे हैं और शायद इसीलिए पिछड़ रहे हैं क्योंकि वह धंधा ही कर रहे है जिसमें निरंतर बोने से लगाकर कटाई ,गहाई और मंडी ले जाने तक खर्च करते हैं। उद्योग में भी इसी तरह से कार्य होता है जहां पर कच्चा पदार्थ का उपयोग करके कुछ प्रोडक्ट उत्पाद बनाए जाते हैं और जो भी खर्चे ,प्रोसेस की जाती है उसको जोड़ कर उसमें अपना कुछ लाभ जोड़कर उद्योगपति स्वयं अपने उत्पाद का मूल्य निर्धारित करता है।

अगर कोई उद्योगपति मान लीजिए ट्रैक्टर बनाता है या कार बनाता है या अन्य कोई प्रोडक्ट बनाता है और अगर वह मंडी में ले जाकर खड़ा कर दें और हमसे कहे कि आप बोली लगाइए और इसका मूल्य निर्धारित कीजिए तो आप बताइए क्या उद्योग 1 या 2 वर्ष भी चल पाएगा बिल्कुल भी नहीं क्योंकि उसका मूल्य निर्धारण हम लोग नहीं कर सकते उसका सही मूल्य निर्धारण उस उद्योगपति को ही करना होगा। अब कृषि में यह समस्या आ रही है कि किसान भाई जो उत्पाद पैदा कर रहे हैं वह सभी एक जैसे ही हैं उनमें ना कोई ब्रांडिंग है ना कोई प्रोसेसिंग की गई है यानी अभी वह धंधे के लेवल पर ही है लेकिन अगर उन्हें उद्योग के लेवल पर जाना है तो अपने उत्पाद को प्रोसेस और वैल्यू एडिशन करना होगा अर्थात आनाज का दलिया सूजी आटा या आम का अचार या दूध का प्रोडक्ट हो तो उसका अन्य कोई उत्पाद बनाना होगा।

उसकी ब्रांडिंग करनी होगी ब्रांडिंग से तात्पर्य है कि अपने स्वयं का नाम अपने स्वयं के कृषि फार्म के नाम से कुछ पैकिंग कुछ ब्रांड बनाकर गांव के नाम से ब्रांड बनाये और उस पर जो खर्चा है उनको जोड़ना होगा फिर अपना मूल्य निर्धारित करना पड़ेगा और फिर आपको कोई मंडी जाने की आवश्यकता नहीं है स्वयं उसकी मार्केटिंग करनी होगी और आजकल मार्केटिंग कोई मुश्किल कार्य नहीं है आपके हाथ में जो एंड्राइड मोबाइल है सारा का सारा मार्केट उसके ऊपर निर्भर है अच्छी क्वालिटी का प्रोडक्ट बनायै है और धीरे-धीरे अपने कस्टमर ढूंढें चार-पांच वर्ष के अंदर आपका उद्योग खड़ा हो जाएगा ।

फिर कृषि एक धंधा नहीं एक उद्योग बन जाएगा और अगर फायदा पाना है तो यही रास्ता अपनाना ही पड़ेगा। आज की चर्चा का मुख्य विषय भी यही है कि कृषि को लाभ का धंधा और कृषि को उद्योग की तरह किसान भाई स्वयं समझें और उसे धीरे-धीरे उद्योग बनाने के लिए इस दिशा में कदम उठाएं कुछ उत्पाद प्रोसेसिंग करें बाकी माल अभी मंडी में ही भेजें जब तक आपका एक ब्रांड तैयार ना हो जाए। इस परिवर्तन के लिए किसान भाइयों को प्रशिक्षण की आवश्यकता भी हो सकती हैं या किसान भाई अन्य राज्यों में या आपके आसपास इस तरह से कोई भी कार्य अलग तरीके से कर रहे हो और फायदा कमा रहे हैं ।

उदाहरण के लिए जैसे प्याज के बीज की रोपनी तैयार करके भी कुछ किसान भाई अच्छे दाम पर बेचते हैं साथ ही कुछ किसान भाई गाय और भैंस की अच्छी नस्लें तैयार करके भी अन्य किसानों को बेच रहे हैं और कुछ किसान भाई अच्छी क्वालिटी का बीज तैयार करते हैं उसको अच्छे से तैयार करते हैं और अच्छे दामों पर अपने घर से ही बेच कर मुनाफा कमाते हैं यह सब कार्य भी एक लघु उद्योग कुटीर उद्योग की श्रेणी में आता है। भारत सरकार और सभी राज्य सरकारें भी निरंतर किसान भाइयों को फायदा पहुंचाने के लिए कई तरह की योजनाएं और सब्सिडी भी दे रही इसलिए कृषि में अभी जो परिदृश्य है।

वह बहुत ही पॉजिटिव और आशा जनक है अतः इसे समझना चाहिए और क्योंकि कृषि में खर्च बहुत ज्यादा बढ़ गए हैं उन्हें कम करने की कोशिश तो हम कर सकते हैं लेकिन पूरी तरह से खर्च को समाप्त नहीं किया जा सकता है इससे बचने का एक ही तरीका है कि अपना जो उत्पाद है उसमें गुणवत्ता लाएं उसकी ब्रांडिंग करें और उसको अधिक मूल्य पर बेचे, यह चैलेंज है कौन अपने उत्पाद को कितने अधिक मूल्य पर बेच पाता है ।

जब आपके उत्पाद में वह क्षमता होगी जब आप में वहकला मार्केटिंग की आ जाएगी निश्चित रूप से आपको अपने उत्पाद का अधिक से अधिक मूल्य प्राप्त होगा अब तो वह समय आ गया है कि आप ना सिर्फ अपने देश में बल्कि विदेशों तक भी अपने उत्पाद को भेज सकते हैं और कई किसान संगठन एपीओ और सहकारी समितियां बनाकर भी अपने उत्पादों को और स्वयं के ब्रांड बनाकर भी विदेशों तक भी सप्लाई कर रहे हैं इसलिए इस तरह की जानकारी