हेमंत शर्मा
इंदौर अब फिर उस दोराहे पर आ खड़ा हुआ है जहां से शुरुआत हुई थी। 15 मार्च जैसे हालात हैं। व्यापारियों ने राजनैतिक दबाव से अपने धंधे शुरू करवा लिए लेकिन उन शर्तों की धज्जियाँ उड़ा दीं जिसके कारण उन्हें व्यापार की इजाज़त मिली थी। शनिवार को मोबाइल बिक्री के सबसे बड़े बाज़ार नॉवल्टी मार्केट में सोशल डिस्टेंसिंग की जैसी दुर्गति व्यापारियों और जनता ने की है उसके बाद आप किसी को दोष नहीं दे पाएँगे।
पिछले कुछ दिनों से व्यापारियों को अनुमति का फ़ार्मूला मिल गया था। जो आपदा प्रबंधन समिति अब तक वैज्ञानिक सोच के आधार पर इन्हें अनुमति देने की सिफ़ारिश कर रही थी, वह राजनैतिक सदस्यों के हाथों में जा चुकी है और फ़ैसला, शहर की जनता के व्यापक हित के बजाय इस बात से हो रहा है कि अनुमति माँगने वालों की व्यक्तिगत राजनैतिक निष्ठा किसके साथ है?
व्यापारियों को भी पता है कि एक बार अनुमति मिल जाए फिर उसकी शर्तों क़ो पूरा करवाने की हिम्मत कौन करेगा? इस सबके बीच आपदा प्रबंधन समिति के प्रमुख डा. निशांत खरे जैसे संवेदनशील और ईमानदार लोग- जिन्होंने तीन महीने से प्रशासन के साथ दिन-रात मेहनत की, अल्पमत में नज़र आ रहे हैं। अप्रासंगिक तथा जनता द्वारा नकारे गए राजनैतिक चेहरे दबाव बनाकर समिति के अंदर और बाहर मनमाने फ़ैसले करवा रहे हैं।चुने हुए चेहरे चुप हैं। कुछ को कुछ भी नहीं पता। हाँ, लेकिन पूरा शहर जानता है कि व्यापार की अनुमति के लिए किस दरवाज़े को कितनी बजे खटखटाना है।शहर को कोरोना विस्फोट के मुहाने पर बैठाने का स्थानीय नेतृत्व का ये ‘योगदान’ असल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के उन अनथक प्रयासों के साथ भी विश्वासघात है जो पिछले कई महीनों से उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता बना हुआ है।
आपके-हमारे प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री और ज़िला प्रशासन ने कोरोना से लड़ने में बहुत मेहनत की है।अपने छोटे-छोटे राजनैतिक स्वार्थों के लिए उस पर पानी मत फेरिए।इस बार हालात बिगड़े तो ना तो प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री आपको माफ़ करेंगे और ना ही इंदौर की जनता…!