हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियां होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही देवशयनी एकादशी कहा जाता है। कहीं-कहीं इस तिथि को ‘पद्मनाभा’ भी कहते हैं। सूर्य के मिथुन राशि में आने पर ये एकादशी आती है।
इसी दिन से चातुर्मास का आरंभ माना जाता है। इस दिन से भगवान श्री हरि विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं और फिर लगभग चार माह बाद तुला राशि में सूर्य के जाने पर उन्हें उठाया जाता है। उस दिन को देवोत्थानी एकादशी कहा जाता है। इस बीच के अंतराल को ही चातुर्मास कहा गया है। देवशयनी एकादशी व्रत 20 जुलाई को रखा जाएगा और इस बार देवशयनी एकादशी के दिन दो शुभ योग बन रहे हैं।
हिन्दू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ शुक्ल एकादशी को देवशयनी एकादशी, विष्णु-शयनी एकादशी, आषाढ़ी एकादशी और हरिशयनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन से चातुर्मास की भी शुरूआत हो जाएगी, जिसमें कई प्रकार के मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, देवशयनी एकादशी का व्रत सब व्रतों में उत्तम है।
इस व्रत से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और जो मनुष्य इस व्रत को नहीं करते वे नरकगामी होते हैं। इस व्रत के करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं। हालांकि व्रती को उसका व्रत का फल तभी मिलता है जब वह देवशयनी एकादशी व्रत को विधि-विधान से कर व्रत का श्रवण या पाठ करता है। यह है एकादशी व्रत का मुहूर्त, व्रत नियम और व्रत कथा के बारे में…..
देवशयनी एकादशी मुहूर्त
एकादशी तिथि प्रारम्भ – रात 09:59 बजे से (जुलाई 19, 2021)
एकादशी तिथि समाप्त – शाम 07:17 बजे (जुलाई 20, 2021)
एकादशी व्रत पारण- सुबह 05:36 बजे से 08:21 बजे तक (जुलाई 21, 2021)
इस साल देवशयनी एकादशी के दिन शुक्ल और ब्रह्म योग बन रहा है। ज्योतिष शास्त्र में इन योग को खास शुभ योगों में गिना जाता है। इस दौरान किए गए कार्यों में सफलता प्राप्त होती है। इन योग में किए गए कार्य से मान सम्मान की प्राप्ति होती है।