कैलाश विजयवर्गीय
भारत-चीन के बीच जारी ताजा विवाद को लेकर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी जिस तरह से बयान दे रहे हैं, उससे पहले की कांग्रेसी सरकारों और विशेषकर पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की चीन नीति की धज्जियां उड़ाई जा रही हैँ। चीन और पाकिस्तान से विवाद हो या युद्ध भारत की जनता ने हमेशा सरकार के साथ एकजुटता जताई है। 1962 में चीन के आक्रमण के बाद तत्कालीन विपक्ष ने सरकार पर हमले नहीं बोले थे, बल्कि देश की रक्षा के लिए पूरी तरह समर्थन किया था। तब भी विपक्ष की तरफ से हमले चीन पर बोले गए थे, केंद्र सरकार पर नहीं। चीन के भारत पर आक्रमण के समय जनसंघ के सांसद अटल बिहारी वाजपेयी तो चीन के नई दिल्ली में शाँति पथ स्थित दूतावास में भेड़ों के एक झुंड को लेकर घुस गए थे। इस बार जून महीने के प्रारम्भ से चीन से जारी विवाद के दौरान राहुल गांधी चीन का पक्ष लेते रहे। एक तरफ देश में चीनी वस्तुओं के बहिष्कार का माहौल तैयार हो रहा है और राहुल गांधी सरकार, सेना और सीमा पर आधारभूत ढांचों की कमी को लेकर चीनी मीडिया में हीरो बनने की कोशिश कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने “’मन की बात’’ कार्यक्रम में लद्दाख में सीमा पर चीन के हमलावर होने पर ललकार भर दी है। मोदी ने कड़ी चेतावनी देते हुए कहा कि ‘भारत मित्रता निभाना भी जानता है, तो आंख में आंख डालकर देखना और उचित जवाब देना भी जानता है। लद्दाख में आंख उठाकर देखने वालों को करारा जवाब देने के साथ उन्होंने भरोसा दिलाया कि चुनौतियों से भरा यही साल देश के लिए नए कीर्तिमान बनाने वाला साबित होगा। मोदी सरकार की दृढ़ता और साहस के कारण के ही चीन को पीछे हटना पड़ा। चीन जो भी मक्कारी करे पर भारत के कारण उसे बड़ा आर्थिक झटका लगने वाला है। कई स्थानों पर चीन को आर्थिक झटके लगने शुरु भी हो गए हैं।
राजनीतिक हाशिये पर पहुंच चुकी कांग्रेस की हार से निराश राहुल गांधी ने पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया तो मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने वाले मिलिंद देवड़ा को भी उनका यह रवैया अच्छा नहीं लगा है। चीन को लेकर राहुल की बयानबाजी पर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार ने उन्हें नसीहत दी थी। मिलिंद देवड़ा ने राहुल गांधी की तरफ इशारा करते हुए ट्वीट किया था कि यह बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब चीन के अतिक्रमण के खिलाफ हमारी राष्ट्रीय आवाज एक होनी चाहिए, उस समय हम राजनीतिक कीचड़बाजी में व्यस्त हैं। जब हमें चीनी घुसपैठ के खिलाफ एकजुट होकर उसका समाधान ढूंढना चाहिए, तो हम अपने मतभेदों को उजागर करने में लगे हैं। राहुल गांधी को समझ में आना चाहिए कि देश और उनकी पार्टी के लोग क्या चाहते हैं। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह भी राहुल को करारा दे चुके हैं। एक दिन पहले राहुल ने ट्वीट किया था कि राष्ट्रीय सुरक्षा पर कब बात होगी। एक तरफ देश कोरोना की महामारी से जूझ रहा है। मोदी सरकार कोरोना से लड़ाई में कई मोर्चों पर काम कर रही हैं। राहुल को जवाब दिया अमित शाह ने कि संसद में चीन के मुद्दे पर दो-दो हाथ करने को तैयार हैं। अमित शाह ने यह चुनौती दिल्ली को कोरोना महामारी से बचाने के उपायों पर जूझते हुए दी। जाहिर है कि गृहमंत्री ने कह ही दिया है कि 1962 से अभी तक चीन ने कब-कब भारत पर जमीन पर कब्जा किया है, से कांग्रेस की पिछली सरकारों की छीछालेदारी तय है। नई पीढ़ी को भी पता चलेगा कि किस तरह नेहरू ने तिब्बत चीन को दिया और हमारी जमीन पर उसका कब्जा होने दिया। इससे पहले सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक के दौरान भी राहुल गांधी ने पाकिस्तान को खुश करने वाले बयान दिए थे। चीन से विवाद शुरु होते ही राहुल गांधी अपने बयानों को लेकर घिरने लगे थे। सशस्त्रों बलों के सेवानिवृत्त अधिकारियों राहुल गांधी के बयान की कड़ी निंदा की। लेफ्टिनेंट जनरल नितिन कोहली, लेफ्टिनेंट जनरल आरएन सिंह और मेजर जनरल एम श्रीवास्तव समेत नौ सेना अधिकारियों ने नेहरू काल की गलतियों की तरफ ध्यान दिलाया था। सेना के जाबांज अफसरों ने राहुल गांधी के बयान के राष्ट्रीय हितों के खिलाफ बताया था। एक तरफ मोदी सरकार सीमा पर सड़क बनाने और सेनाओँ के लिए संसाधन बढ़ाने का प्रयास कर रही है। ऐसे में राष्ट्रविरोधी बयानों से आने वाले दिनों में कांग्रेस की फजीहत और तेज होने वाली है।
लेखक भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव हैं और राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक तथा धार्मिक विषयों पर बेबाक टिप्पणी के जाने जाते हैं।