राजकुमार केसवानी की कुछ कविताएं

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By Shivani RathorePublished On: May 21, 2021

पर क्या करूं ?


बचपन में
मेरे पास
सिर्फ़ बचपन था
और वह
सबको अच्छा लगता था

बुढ़ापे में अब
मेरे पास
रह गया है
सिर्फ़ बचपना
और वह
किसी को अच्छा नहीं लगता

आख़िर कैसे?

मेरा पता
लगभग हर साल बदल जाता है।
कभी ४६२००१
कभी ४५२००२
कभी ४०००१३
कभी ये
कभी वो
नहीं बदलता
तो बस ये बदलना

अच्छे भाई, समझा चुके हैं कई बार
मियां, ख़ुद को बदल लो
वरना ये पता बदलता ही रहेगा

घर
घर कभी खाली नहीं रहता
उसमें अक्सर होते हैं
घरवाले
और जब कभी
वे जाते हैं बाहर
वह भरा रहता है
उनके वापस आने की उम्मीदों से।