Mahakumbh 2025 : महाकुंभ मेला, जो हिंदू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक और आध्यात्मिक आयोजनों में से एक है, 2025 में प्रयागराज में शुरू होने जा रहा है। यह मेला हर 12 वर्ष में आयोजित होता है और इसमें लाखों श्रद्धालु आते हैं। प्रयागराज के त्रिवेणी संगम में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदियों का संगम होता है, जिसे पवित्र माना जाता है। यहां स्नान करने से जीवन के पापों से मुक्ति मिलने का विश्वास है।
शाही स्नान का पहला मुहूर्त
महाकुंभ के पहले शाही स्नान का शुभ मुहूर्त 13 जनवरी 2025 को पौष पूर्णिमा के दिन है। इस दिन का महत्व बहुत अधिक है क्योंकि यह अवसर विशेष रूप से श्रद्धालुओं के लिए पवित्र होता है। वैदिक पंचांग के अनुसार, पौष माह की पूर्णिमा तिथि सुबह 5:03 बजे शुरू होगी और 14 जनवरी को रात 3:56 बजे समाप्त होगी।
शुभ मुहूर्त
- ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 5:27 बजे से 6:21 बजे तक
- विजय मुहूर्त: दोपहर 2:15 बजे से 2:57 बजे तक
- गोधूलि मुहूर्त: शाम 5:42 बजे से 6:09 बजे तक
- निशिता मुहूर्त: रात 12:03 बजे से 12:57 बजे तक
महाकुंभ 2025 में अन्य शाही स्नान की तिथियां
प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान कई महत्वपूर्ण शाही स्नान होंगे। इन तिथियों पर लाखों श्रद्धालु त्रिवेणी संगम में स्नान करने आएंगे:
- 14 जनवरी 2025: मकर संक्रांति के दिन दूसरा शाही स्नान
- 29 जनवरी 2025: मौनी अमावस्या के दिन तीसरा शाही स्नान
- 3 फरवरी 2025: बसंत पंचमी के दिन चौथा शाही स्नान
- 12 फरवरी 2025: माघ पूर्णिमा के दिन पांचवा शाही स्नान
- 26 फरवरी 2025: महाशिवरात्रि के दिन आखिरी शाही स्नान
शाही स्नान के विशेष नियम
महाकुंभ में शाही स्नान के दौरान कुछ विशेष धार्मिक नियमों का पालन किया जाता है। सबसे पहले, नागा साधु स्नान करते हैं, जिन्हें धार्मिक मान्यता के अनुसार पहले स्नान करने का विशेषाधिकार प्राप्त है। इसके बाद, गृहस्थ जीवन जीने वाले लोग स्नान करते हैं। स्नान करने के दौरान पांच डुबकी लगाना अनिवार्य है, क्योंकि इससे स्नान का सही रूप माना जाता है। इसके अलावा, स्नान करते समय साबुन या शैंपू का उपयोग न करने की सलाह दी जाती है, क्योंकि यह पवित्र जल को अशुद्ध कर सकता है।
दर्शन के महत्व
महाकुंभ के शाही स्नान के बाद, श्रद्धालुओं को बड़े हनुमान और नागवासुकि के मंदिरों के दर्शन करना चाहिए। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इन मंदिरों के दर्शन के बिना महाकुंभ यात्रा अधूरी मानी जाती है, और इससे पुण्य की प्राप्ति नहीं होती।