Mahakumbh 2025: महाकुंभ 2025 का पहला स्नान 13 जनवरी को होगा और इसके साथ ही संगम की रेती पर 13 प्रमुख अखाड़ों के साधु-संतों का जमावड़ा हो चुका है। महाकुंभ का आयोजन हर बार अखाड़ों के महत्व और उनकी भूमिका को लेकर चर्चा का विषय होता है। अखाड़ों के बिना महाकुंभ अधूरा माना जाता है। इस बार जूना अखाड़े को विशेष स्थान मिला है, जिसमें हजारों नागा साधु महाकुंभ के पहले शाही स्नान में भाग लेंगे।
क्या है जूना अखाड़ा का इतिहास
जूना अखाड़ा हिंदू धर्म के सबसे पुराने और प्रमुख अखाड़ों में से एक है। यह वाराणसी में स्थित है और इसका इतिहास अत्यंत समृद्ध और विविध रहा है। जूना अखाड़ा अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद से मान्यता प्राप्त है, जो अखाड़ों के प्रशासन और संचालन का मुख्य निकाय है।
कितना बड़ा हैं जूना अखाड़ा
जूना अखाड़े में करीब साढ़े पांच लाख नागा साधु शामिल हैं, जिनमें से लगभग पांच हजार नए नागा संन्यासी इस महाकुंभ में दीक्षा लेंगे। इस बार शाही स्नान की धर्मध्वजा जूना अखाड़े को सौंपी गई है, जिसका मतलब है कि सबसे पहले जूना अखाड़े के संन्यासी राजसी रूप में स्नान के लिए संगम की ओर प्रस्थान करेंगे। इस अखाड़े में शिव संन्यासी संप्रदाय के सबसे बड़े सात अखाड़ों में शामिल किया जाता है, और यहां लाखों नागा साधु और महामंडलेश्वर संन्यासी हैं।
मुगलो के खिलाफ किया था संघर्ष
जूना अखाड़े के नागा साधुओं ने सनातन धर्म की रक्षा के लिए मुगलों से कई बार संघर्ष किया था। ये साधु मंदिरों और मठों की रक्षा के लिए युद्ध लड़ते थे। एक ऐतिहासिक घटना में, जूना अखाड़े के नागाओं ने अफगान शासक अहमद शाह अब्दाली को उसकी सेना के साथ आगे बढ़ने से रोक दिया। इसके अलावा, एक और प्रचलित कथा है कि मुगल बादशाह जहांगीर के खिलाफ भी जूना अखाड़े के साधुओं ने संघर्ष किया था, जहां एक साधु ने जहांगीर को कटारी भोंककर विरोध किया था।
जूना अखाड़े के नागा साधुओं ने जूनागढ़ के निजाम को भी युद्ध में हराया था। उनकी युद्ध कौशल और साहस ने न सिर्फ निजाम को घुटने टेकने पर मजबूर किया, बल्कि उन्हें संन्यासियों से संधि करने के लिए भी मजबूर कर दिया था। यह अखाड़े का पराक्रम दर्शाता है कि साधु और संन्यासी केवल धार्मिक कार्यों तक सीमित नहीं थे, बल्कि उन्होंने देश की रक्षा के लिए भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उत्तराखंड में जूना अखाड़े की स्थापना
जूना अखाड़े की स्थापना उत्तराखंड के कर्णप्रयाग में सन 1145 में हुई थी। इसे भैरव अखाड़े के नाम से भी जाना जाता है। इसका मुख्यालय वाराणसी में हनुमान घाट पर स्थित है। वर्तमान में इस अखाड़े के संरक्षक महंत हरि गिरी जी महाराज हैं और अध्यक्ष महंत प्रेम गिरी जी महाराज हैं। जूना अखाड़े के संन्यासियों का मुख्य कार्य जप, तप, साधना और धार्मिक प्रवचन देना है, जो धर्म के मार्ग को फैलाने का काम करते हैं।
जूना अखाड़े के देशभर में कई शाखाएं हैं, जिनमें हरिद्वार, उज्जैन, नासिक और अन्य प्रमुख स्थानों पर इसके केंद्र हैं। समय के साथ अखाड़े के सात भागों में विस्तार हुआ है। ‘जूना’ का अर्थ है ‘प्राचीन’, और इस अखाड़े की शाखाएं अब देशभर में फैली हुई हैं।
महाकुंभ के शाही स्नान के दौरान अखाड़ों का चयन एक विशेष समिति द्वारा किया जाता है। इस समिति में आपसी सामंजस्य से तय किया जाता है कि कौन सा अखाड़ा पहले स्नान करेगा। 13 जनवरी को होने वाले पहले शाही स्नान में जूना अखाड़ा अपने पूर्ण वैभव के साथ हिस्सा लेगा। स्वर्ण-चांदी के रथ, अस्त्र-शस्त्रों के साथ नागा साधु जब गंगा में स्नान करेंगे, तो यह दृश्य देखने के लिए लाखों भक्त एकत्रित होंगे।
भारत के प्रमुख अखाड़े
भारत में कुल 13 प्रमुख अखाड़े हैं, जिनमें जूना अखाड़ा, निरंजनी अखाड़ा, महानिर्वाणी अखाड़ा, अवाहन अखाड़ा, आनंद अखाड़ा, अटल अखाड़ा, पंचाग्नि अखाड़ा, नागपंथी गोरखनाथ अखाड़ा, वैष्णव अखाड़ा, उदासीन पंचायती बड़ा अखाड़ा, उदासीन नया अखाड़ा, निर्मल पंचायती अखाड़ा, और निर्मोही अखाड़ा शामिल हैं। इन सभी अखाड़ों का प्रमुख कार्य धार्मिक कार्यों का संचालन और साधना करना है।
महाकुंभ 2025 का आयोजन
महाकुंभ 2025 में जूना अखाड़ा की विशेष भूमिका होगी और यह अखाड़ा अपने संन्यासियों के साथ शाही स्नान में शामिल होगा। यह स्नान न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह दृश्य हर किसी को आकर्षित करने वाला होगा, जब नागा साधु स्वर्ण-चांदी के रथों पर चढ़कर गंगा स्नान करेंगे।