हाल ही में शीतकालीन सत्र के 10वें दिन राज्यसभा में एक बार फिर नोटों की गड्डी मिलने से संसद में हलचल मच गई। यह गड्डी कांग्रेस के राज्यसभा सांसद अभिषेक मनु सिंघवी की सीट नंबर 222 के पास पाई गई। इस घटना ने सियासी माहौल को गरमा दिया, हालांकि सिंघवी ने इस मामले में अपना पल्ला झाड़ते हुए कहा कि वह कभी भी 500 रुपये से ज्यादा लेकर संसद नहीं जाते। राज्यसभा के सभापति ने पूरे मामले की जांच का आदेश दिया है। हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब संसद में नोटों को लेकर शोर मचा है। इससे पहले भी दो बड़े मौकों पर संसद नोटों के विवाद में फंसी है।
पहला कैश कांड: 1993 में राव सरकार के बचाव में नोटों का खेल
संसद में नोटों का सबसे पहला बड़ा मामला 1993 में सामने आया था। उस समय नरसिम्हा राव की सरकार सत्ता में थी, लेकिन उसे बहुमत हासिल नहीं था। बाबरी मस्जिद के गिरने के बाद राव सरकार के खिलाफ विपक्षी दलों में विरोध था और सरकार की कमजोरी उजागर हो रही थी। इसी बीच, बीजेपी ने अविश्वास प्रस्ताव पेश किया, जिसके दौरान तीन दिन तक बहस हुई और जब वोटिंग का समय आया, तो सभी चौंक गए। राव को 244 सांसदों का समर्थन था, लेकिन वोट 265 आए और सरकार बच गई।
झारखंड मुक्ति मोर्चा के सांसद सूरज मंडल ने 1996 में खुलासा किया कि राव सरकार को बचाने के लिए प्रत्येक सांसद को 40 लाख रुपये दिए गए थे। मंडल के अनुसार, यह पूरा मामला बूटा सिंह द्वारा रचा गया था, जो उस समय राव सरकार में एक महत्वपूर्ण मंत्री थे। इन पैसों का उपयोग जेएमएम के सांसदों ने ब्याज पर लगाया था। बाद में सीबीआई ने इस मामले में हलफनामा दाखिल किया, लेकिन सभी आरोपी बरी हो गए। दिल्ली हाईकोर्ट ने 2000 में इस मामले में सीबीआई को फटकार भी लगाई।
दूसरा कैश कांड: 2008 में BJP के सांसदों ने लहराए नोट
दूसरा नोटों का कांड 2008 में हुआ, जब भारत और अमेरिका के बीच न्यूक्लियर डील को लेकर सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया। इस दौरान, सीपीएम ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया, जिसके बाद बीजेपी ने भी अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया।
वोटिंग के समय बीजेपी के तीन सांसदों – अशोक अर्गल, फगन कुलस्ते, और महावीर भागौरा ने लोकसभा में नोट लहराए। इन सांसदों का आरोप था कि उन्हें समाजवादी पार्टी के नेता अमर सिंह ने पैसे दिए थे ताकि वह सरकार के पक्ष में वोट करें। इस आरोप को उस वक्त और बल मिला, जब समाजवादी पार्टी ने मनमोहन सरकार का समर्थन किया।
इस मामले ने काफी तूल पकड़ा, और अमर सिंह को जेल भी जाना पड़ा। हालांकि, बाद में इस मामले में उन पर कोई गंभीर कार्रवाई नहीं की गई। इस कांड के बाद सरकार के खिलाफ एक बड़ा मोर्चा खड़ा हो गया।