भारत के हर राजनेता के लिए महात्मा गांधी एक रोल मॉडल हैं यदि कुछ सिरफिरों को छोड़ दें तो हर राजनेता गांधी के विचारों पर अमल कर खुद को गौरवान्वित महसूस करना चाहता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी महात्मा के अनुयायी हैं।बात जब धर्म, जाति, वर्ग, लिंग या रंगभेद की ही हो, गांधी का भेदभाव को जड़-मूल से ख़त्म करने के विचार पर अमल लगातार जारी है। देश नहीं दुनिया गांधी के इस विचार की क़ायल है। बात मद्य निषेध एवं नशामुक्ति की हो तब भी गांधी अनुकरणीय हैं। मोदी का गुजरात इसका जीता जागता प्रमाण है। हालाँकि मध्यप्रदेश इस मामले में गांधी का अनुकरण नहीं कर पा रहा है। पर गांधी के विचार से सरकारें असहमत भी नहीं हैं। वर्तमान में गांधी का सबसे महत्वपूर्ण विचार स्वदेशी का है। बंग भंग के विरोध में शुरू हुए स्वदेशी आंदोलन ने मानो अंग्रेज़ों को करारा तमाचा मारा था कि उसके बाद महात्मा के नेतृत्व में कांग्रेस के कदम लगातार बढ़ते रहे और अंग्रेज़ बंग भंग की तरह हिंदुस्तान पाकिस्तान बँटवारा कर देश से रफ़ा दफ़ा हो गए। आज महात्मा पर गर्व करने वाले मोदी अगर स्वदेशी के नारे के साथ एक कदम आगे बढ़ाते हैं भले ही सरकार नहीं तो संगठन के स्तर पर ही चीनी सामान के बहिष्कार का दम भरते हैं तब भी चीन को आर्थिक झटका देकर उसकी आर्थिक कमर को लचक तो दी ही जा सकती है।
संगठन की बात इसलिए क्योंकि देश के ज़्यादातर राज्यों में भाजपा या भाजपा समर्थित सरकारें हैं। जिन में नहीं हैं उनमें सरकार बनाने की कोशिश जारी है। भाजपा विश्व का सबसे बड़ा राजनीतिक दल है। भाजपा कार्यकर्ता फ़िलहाल चीनी सामानों की होली जलाते, चीन के राष्ट्रपति और चीन का पुतला फूँकते पूरे देश में देखे जा सकते हैं। ऐसे में संगठन के ज़रिए चीनी सामानों के बहिष्कार की राह पर चलना आसान है। यदि मोदी शाह का इशारा हो जाए तो … कैडर बेस पार्टी यह लक्ष्य हासिल कर सकती है।फिर कांग्रेस भी कम से कम इस नेक क़दम का विरोध नहीं कर सकेगी, इसका दावा किया जा सकता है क्योंकि ऐसा विरोध किसी भी दल को राजनैतिक नक़्शे से बाहर की राह दिखा सकता है। तो दावा यह भी है कि चीन के ख़िलाफ़ स्वदेशी का उत्साह जन-जन की भागीदारी सुनिश्चित करेगा।चाहे नेता हो, नौकरशाह हो, कर्मचारी हो, अधिकारी हो, किसान हो, मज़दूर हो, व्यापारी हो या भिखारी या महिला हो, पुरुष हो या किन्नर। मध्यप्रदेश के एक जिला कलेक्टर ने स्वदेशी अभियान की डिजिटल हस्ताक्षर कर सहमति दी है यानि राष्ट्रप्रेम और तार्किक कसौटी पर चीन के ख़िलाफ़ स्वदेशी के क़दम से ख़ास से आम तक कोई मुँह नहीं मोड़ पाएगा।यह एक कदम चीन को चीनी कम होने का ज़ोर का झटका साबित हो सकता है। जिसके बाद एशिया में चीनी ड्रैगन का मुँह उसके बिल की तरफ़ कर विश्व में खुलकर भारत की पताका फहराई जा सकती है। जरूरत है महात्मा का अनुसरण कर मोदी के एक कदम बढ़ाने की, जो सीमा के बाहर बैठे चीनी शत्रु के ख़िलाफ़ उठाना इतना आसान भी नहीं है कि मोदी मन की बात की तरह बातों-बातों में ही वाहवाही लूट लें।
देश को खाई में धकेलेगा फ़ील गुड
आज वैश्वीकरण के दौर में भी कम से कम चीन के मामले में भी स्वदेशी की नीति पर अमल उतना ही ज़रूरी हो गया है जितना अंग्रेज़ों को भारत से भगाने के लिए ज़रूरी हो गया था। तब महात्मा को पूरे देश ने बागडोर सौंपी थी। अब देश की बागडोर मोदी के हाथ में है और चीन ने गलवान घाटी में फ़न फुफकार कर भारत को 1962 युद्ध सहित विदेश नीति में भारत को हर मोर्चे पर मात देने, आर्थिक सामरिक मोर्चों पर खुद को बेहतर साबित करने की याद दिला दी है। मोदी शाह अक्साई चिन का गौरव छीनने का मन बना रहे थे पर चीन ने गलवान सहित पाकिस्तान नेपाल में भारत के ख़िलाफ़ ज़हर घोलकर एक बार फिर एशिया और विश्व में भारत को अपने मुक़ाबले दोयम दर्जे का साबित करने की कुचेष्टा खुलेआम की है।चीन पर भरोसा करना यानि खुद को अंधेरे में रखना तय है। हिंदी चीनी भाई-भाई की तर्ज़ पर मोदी ने भी वुहान से महाबलेश्वर तक चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग से गलबहियां कर गलवान पहुँचते अब यह सबक़ सीख लिया होगा। बात चाहे जी-7 की हो या फिर संयुक्त राष्ट्र में स्थायी सदस्यता की, चीन ने गलवान में यही जताने की कोशिश की है कि एशिया में ड्रैगन ही राज करेगा।चीन ने एक कदम पीछे हटकर दो कदम आगे बढ़ने की कुटिलता भी कूट-कूट कर भरी है। सो गलवान के गड्ढों के भर जाने से भी फ़ील गुड करना यानि खुद को खाई में गिराना ही है क्योंकि इतिहास गवाह है।
स्वदेशी से वोकल फ़ॉर लोकल तक
प्रधानमंत्री ने स्वदेशी को नए ब्रांड वोकल फ़ॉर लोकल में तब्दील कर मार्केट में पेश किया है।पर मूल ब्रांड स्वदेशी का इतिहास बहुत पुराना है।अंग्रेजों की गुलामी से भारत को आजाद कराने के लिए बंग भंग के विरोध में 1906 में महात्मा गांधी ने स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत की।स्वदेशी आंदोलन आजादी तक चला और इसे काफी बल मिला। यह महात्मा गांधी का सबसे सफल आंदोलन था।इसका मुख्य उद्देश्य अपने देश की वस्तु अपनाना और दूसरे देश की वस्तु का बहिष्कार करना था।
यद्यपि स्वदेशी का यह विचार बंग-भंग से बहुत पुराना है। भारत में स्वदेशी का पहले-पहल नारा बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय ने 1872 ई. में ही विज्ञानसभा का प्रस्ताव रखते हुए दिया था। उन्होंने कहा था-“जो विज्ञान स्वदेशी होने पर हमारा दास होता, वह विदेशी होने के कारण हमारा प्रभु बन बैठा है, हम लोग दिन ब दिन साधनहीन होते जा रहे हैं।
यह बात आज चीनी आयात पर सौ फ़ीसदी साबित हो रही है। हमारे देश में चीनी आयात चीन को निर्यात की तुलना में चार गुना है।यानि कि चीन हमसे रोज़गार छीन रहा है और हमारे पैसे से ही हमको मात दे रहा है।चीन की निर्ममता और दुष्टता का उदाहरण मध्यप्रदेश का बालाघाट ज़िला है जहाँ चीनी कंपनी ने भारतीयों को बाहर का रास्ता दिखा दिया है और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने माँग की है कि उद्योगों में स्थानीय लोगों को 70 फ़ीसदी रोज़गार देने के उनके प्रावधान को लागू किया जाए।खैर मोदी जी को सुझाव देना सूरज को दीपक दिखाने जैसा है पर कभी-कभी सुझाव रूपी दीपक भी सफलता रूपी आसमान की राह बन जाते हैं। महात्मा की दिखाई राहें आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं कि मोदी भी अमल करेंगे तो भी देश को नई दिशा ही मिलेगी।