Supreme Court ने एक अहम और ऐतिहासिक फैसले में यह स्पष्ट किया है कि सरकार किसी भी व्यक्ति या समुदाय की निजी संपत्ति तब तक जब्त नहीं कर सकती जब तक उसमें सार्वजनिक हित शामिल न हो। इस फैसले में कोर्ट ने यह भी कहा कि राज्य केवल उन संसाधनों पर दावा कर सकता है, जो सार्वजनिक हित में हों और जो समाज के समग्र लाभ के लिए उपयोगी हों।
मुख्य न्यायाधीश ने सुनाया बहुमत का फैसला
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की बेंच ने मंगलवार को अपना फैसला सुनाया। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली इस बेंच ने यह निर्णय दिया कि निजी संपत्ति पर राज्य का दावा केवल तब तक वैध है जब वह समाज और सार्वजनिक हित के लिए हो। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि राज्य का यह अधिकार निजी संपत्ति के स्वामित्व को खत्म करने के रूप में नहीं हो सकता।
न्यायमूर्ति अय्यर के फैसले को खारिज किया
सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर के 1978 के एक महत्वपूर्ण फैसले को भी खारिज कर दिया। न्यायमूर्ति अय्यर के फैसले में कहा गया था कि राज्य किसी भी निजी संपत्ति को जब्त कर सकता है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अब यह स्पष्ट किया कि पुराने समाजवादी विचारधारा से प्रेरित ऐसे फैसले अब लागू नहीं हो सकते।
1978 के फैसले को पलटते हुए नया दृष्टिकोण
सुप्रीम कोर्ट ने 1978 के बाद समाजवादी मॉडल पर आधारित निर्णयों को पलटते हुए यह फैसला सुनाया कि राज्य केवल उन निजी संपत्तियों को जब्त कर सकता है, जो समाज के भले के लिए आवश्यक हों। कोर्ट ने यह भी कहा कि राज्य की भूमिका आर्थिक नीति बनाने में नहीं है, बल्कि उसकी जिम्मेदारी यह सुनिश्चित करना है कि आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना हो।
आर्थिक नीति और लोकतंत्र का फर्क
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस चंद्रचूड़ ने इस फैसले में यह भी कहा कि अदालत का कार्य यह निर्धारित करना नहीं है कि देश की आर्थिक नीति कैसी होनी चाहिए, बल्कि यह सुनिश्चित करना है कि आर्थिक लोकतंत्र का पालन किया जाए, जहां हर व्यक्ति को अपनी संपत्ति के स्वामित्व का अधिकार हो।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि राज्य द्वारा किसी भी व्यक्ति की निजी संपत्ति का जब्तीकरण केवल तभी किया जा सकता है, जब वह सार्वजनिक हित में हो और समाज के भले के लिए जरूरी हो। इस फैसले ने पुराने समाजवादी विचारों को चुनौती दी है और निजी संपत्ति के अधिकारों को प्राथमिकता दी है।