राष्ट्रपति शासन का ऐसे हालातो में संवैधानिक प्रावधान है। लेकिन चूंकि अभी शपथ नही हुई है। लिहाजा इस मामले में एक बार कानून कायदे देखना चाहिए। नही तो शपथ करवाकर राष्ट्रपति शासन लगाने जैसे कड़े कदम मोदी जी को उठाना ही चाहिए। बगैर किसी की चिंता किये। कठोर कदम ही अब जरूरी है। बहुत हुआ सबका साथ विश्वास और साथ। ये डमरू देश की आजादी के बाद से बज रहा है। अपनी मूल छवि में मोदी जी को लौटना ही होगा। अन्यथा कोरोना के नाम से लाशों के ढेर की कीमत पर मोदी को सत्ता से बदेखल करने का षड्यंत्र शुरू हो गया है।
क्यो भारत से सटे किसी भी देश मे इस बीमारी की ऐसी भयावहता नही पसरी? नेपाल से लेकर श्रीलंका और भूटान से लेकर पाकिस्तान ओर बांग्लादेश तक मे वो मंजर नही, जो भारत के हर हिस्से में है? ओर अब तो गांव-देहात में भी ये संकट पसर रहा है। न इटली से लेकर अमेरिका के इस मामले में बुरे हाल है न कोरोना के जनक चीन में। भारत ही क्यो?? इस सवाल के जवाब तलाशे जाने चाहिए और कुछ न निकले तो भी चौकन्ना होना होगा।
सनातन धर्म ध्वजा भारत ही नही, फिर से विश्व का भी प्रतिनिधित्व करे… ये भारत विरोधी कभी नही चाह रहे-न चाहेंगे। चाहे लाशों के ढेर की कीमत पर ही सही…मोदी सरकार बेदखल हो/ये ही उनका ध्येय है। ओर इसमें वो अभी से सफलता देख रहे है। जिस देश मे आलू प्याज की कीमतें केंद्रीय सरकार तक की हार जीत तय कर देती है….वहां गांव गली मोहल्ले तक मे पसरा मातम का ये मंजर कैसे 2024 में सरकार के सामना नही करेगा?? ये सब चित्र तब पोस्टर बनेंगे जो आज हम सबको रुला रहे है। और यही सचाई भी है। ओर इससे सरकार ‘जो बीत गया सो छोड़ आगे की सुध ले’ की तर्ज पर महामारी के विरुद्ध भागीरथी प्रयास कर अपने को पाक साफ कर सकती है। वक्त है अभी 2024 में।
इस वक्त तो रुद्रावतार जरूरी है….मोदी जी।
लगाए बंगाल में राष्ट्रपति शासन। हवाले करे पूरे प्रान्त को केंद्रीय सुरक्षा बलों के हवाले। ओर खींचिए उन्हें उनके घरों से जो जीत के बाद हिंसा में लिप्त है। उधेड़ दीजिये चमड़ी उन लोगो की जो राजनीतिक बदले के नाम पर रक्तपात की नई शुरुआत कर रहे है। ये पंत प्रधान के नाते मोदी जी का कर्तव्य भी बनता है की वे ऐसी अराजकता के खिलाफ सख्ती से पेश आये। अन्यथा ये एक नई परिपाटी शुरू हो जाएगी कि चुनाव जीतते ही पराजित दल के प्रति रक्तरंजित खेल खेलना।
उदारवादी बनकर बंगाल सरकार के बूते इस मामले को मत छोड़िए मोदी जी। बीते 4 दिन की हिंसा में टीएमसी ओर वहां के स्थानीय प्रशासन की भूमिका में नजर ही आ गया है कि इस हिंसा को बंगाल और ममता के भरोसे नही छोड़ा जा सकता।
मत लेने दीजिये ममता को शपथ। रोक दीजिये 6 महीने के लिए सरकार का गठन। राज्यपाल ही तो आखिर न्योता देते है नई सरकार के गठन का। इस मामले में कोर्ट कचहरी होने दीजिए। लेकिन जीत की चर्बी तो उतार दीजिये। दीजिये ये सन्देश की आइंदा से किसी भी अन्य राज्य में ऐसा परिणाम आने के तुरंत बाद हुआ तो…जीतने के बाद भी सरकार बनाने के लाले पड़ जाएंगे।
अब होने दो…’खेला होबे’