भोपाल मे बसे एक पूर्व बैंकर और एफपीओ विशेषज्ञ शाजी जॉन, जो एक दशक से अधिक समय से एफपीओ क्षेत्र में सक्रिय रूप से कार्यरत हैं, ने कुछ समाधान विकसित किए हैं, जो विफल हो रहे एफपीओ क्षेत्र को पुनर्जीवित करने में सहायक हो सकते हैं। उन्होंने कुछ वरिष्ठ ग्रामीण विकास पेशेवरों की एक टीम के साथ मिलकर स्मार्ट एफपीओ की अवधारणा विकसित की है, जिसके द्वारा 6 महीने के भीतर एक एफपीओ को टिकाऊ और लाभप्रद बनाया जा सकता है।
वह इस अवधारणा को आगे बढ़ाना चाहते थे और उन्होंने नाबार्ड, एसएफएसी, कृषि मंत्रलाय, राज्य के कृषि विभाग, आईसीएआर, विश्वविद्यालयों से भागीदारी करने के लिए संपर्क किया, लेकिन उन्हें कड़े विरोध, उपहास और अपमान का सामना करना पड़ा। इन उच्च पदस्थ अधिकारियों के अहंकार और उदासीनता के आगे झुकने के बजाय, शाजी जॉन ने कानूनी रास्ता अपनाया और SFAC और NABARD को लगभग 1200 RTI भेजीं। RTI के जवाबों के आधार पर, उन्होंने कई विश्लेषण रिपोर्ट तैयार की हैं, जो योजना के उचित कार्यान्वयन में SFAC और नाबार्ड की विफलताओं को उजागर करती हैं।
SFAC और NABARD का अविवेकपूर्ण रवैया निश्चित रूप से चिंताजनक है क्योंकि यह उत्कृष्ट सरकारी योजनाओं की विफलता का मुख्य कारण है। इस संदर्भ में, शाजी जॉन ने MD SFAC, अपर सचिव DA&FW, अध्यक्ष NABARD, CGM NABARD भोपाल, निदेशक विपणन, DA&FW, APC, MP सरकार, टीम लीडर NPMA को एक मेल भेजा है, जिसका हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत किया जा रहा है।:-
महोदय/ महोदया
हम आपके ध्यान में लाना चाहते हैं कि अधोहस्ताक्षरकर्ता ने आपके पास “असफल हो रहे एफ़पीओ सैक्टर के लिए कुछ समाधान” प्रस्तावित करने के लिए संपर्क किया था। प्रस्तावित समाधानो के प्रति संबन्धित अधिकारियों की उदासीनता को देखते हुए, हमने एफ़पीओ क्षेत्र की वर्तमान स्थिति की जानकारी एकत्र करने के लिए एक RTI अभियान शुरू किया था, और अब तक SFAC और NABARD को लगभग 1200 RTI भेज चुके हैं।
हमारा इरादा नेक है क्योंकि हम यह 10000 एफ़पीओ गठन योजना को बेपटरी होने से बचाने के लिए कर रहे है। हम किसी भी सरकारी संस्थान या अधिकारी के विरोधी नहीं है, और हमारे मन मे किसी भी सरकारी अधिकारी के प्रति कोई दुर्भावना नहीं है।
10000 एफपीओ योजना के क्रियान्वयन में खामियों को दूर किया जाना चाहिए, और इसकी शुरुआत सरकार द्वारा प्रवर्तित एफपीओ इको-सिस्टम में पारदर्शिता लाने से होगी। इस उद्देश्य के लिए अधोहस्ताक्षरकर्ता, आम जनता, विशेष रूप से ग्रामीण समुदाय के लिए आरटीआई प्रतिक्रियाओं का विश्लेषण प्रेस नोट के रूप में प्रकाशित कर रहे हैं।
1- गाँव के गरीब किसान एफ़पीओ के शिकंजे मे फंसे- उनका जमीन, मकान तक बिक सकता है!
2- दस हजार तो ठीक से बन नहीं सका, अब पचास हजार बनाने की तैयारी मे।
3- विदेशी संस्था को देश के 10000 एफ़पीओ योजना का कमान सौंपना कितना तार्किक?
4- आरटीआई द्वारा प्राप्त जानकारी अनुसार मंडला जिले मे एसएफ़एसी द्वारा बनाए गए सभी एफ़पीओ अवैध
5- एसएफ़एसी को ही नहीं मालूम की उन्होने एनपीएमए को कब और कितना भुगतान किया।
6- जिन्होने बर्बाद किया, अब उनही को जांच का जिम्मा?
7- आरटीआई द्वारा प्राप्त जानकारी अनुसार मंडला जिले मे एसएफ़एसी द्वारा बनाए गए सभी एफ़पीओ अवैध
8- एसएफएसी, नाबार्ड, और कृषि विभाग के उच्च अधिकारियों को एफपीओ की जरूरतों के प्रति संवेदनशील और उन्मुख बनाए जाने की जरूरत।
9- बामौर एफ़पीओ- एसएफ़एसी के नकारेपन से किसानो के लाखों रुपए डूबे।
10- एफ़पीओ को जागृत कर उन्हे उनके अधिकार जानने के लिए एफ़पीओ के लिए आरटीआई प्रशिक्षण का पहला ऑनलाइन वेबिनार।
11- कृषि महाविद्यालय इंदौर के पूर्व छात्रों ने बनाया एक एफ़पीओ विशेषज्ञों का कॉन्सोर्शियम।
12- केन्द्रीय कृषि मंत्री से 10000 एफ़पीओ योजना मे हो रहे घोटाले के जांच की मांग।
13- नाबार्ड ने देश के संविधान एवं कानून का मज़ाक बनाकर लाखों किसानों का भविष्य अंधेरे मे डाला।
14- : एफ़पीओ को दिये गए इक्विटि ग्रांट के दुरुपयोग के मामलो मे वसूली हेतु जनहित याचिका।
15- माननीय केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराजजी से 10000 एफ़पीओ बनाने के योजना मे कम से कम एक मॉडल एफ़पीओ बनाने के आग्रह करने बेस्ट केयर टीम का पहल।
16- एफपीओ विशेषज्ञ द्वारा नाबार्ड को ‘जैसे को तैसा’।
17- एफ़पीओ को जागृत कर उन्हे उनके अधिकार जानने के लिए एफ़पीओ के लिए आरटीआई प्रशिक्षण अभियान प्रारम्भ।
18- केंद्र सरकार के 10000 एफ़पीओ परियोजना के मध्य अवधि मूल्यांकन का क्या हुआ?
19- एफ़पीओ को जागृत कर उन्हे उनके अधिकार जानने के लिए एफ़पीओ के लिए आरटीआई प्रशिक्षण का पहला ऑनलाइन वेबिनार।
अधोहस्ताक्षरकर्ता यह दोहराना चाहेंगे कि हम सरकारी एजेंसियों के साथ टकराव के रास्ते पर नहीं हैं, बल्कि एफपीओ क्षेत्र को पुनर्जीवित करने और कायाकल्प करने के लिए सरकारी एजेंसियों के साथ समन्वय करना चाहते हैं। लेकिन कुछ अधिकारियों के अहंकार और हठधर्मिता ने हमें कगार पर धकेल दिया है। हमने बस इतना ही मांगा था कि हमें बेस्ट केयर इंटरवेंशन के अपने पैकेज को प्रदर्शित करने का मौका मिले, जिसमें स्मार्ट एफपीओ अवधारणा और स्मार्ट एफपीओ प्रशिक्षण मॉड्यूल शामिल है। हमने यह भी सुझाव दिया था कि हम बालाघाट जिले में अपने बेस्ट केयर इंटरवेंशन का प्रदर्शन कर सकते हैं।
आप अधिकारियों से हमारी सिर्फ इतनी अपेक्षा थी कि हमारे प्रस्ताव को डीएमसी बालाघाट को आवश्यक कार्रवाई के लिए प्रेषित कर देते। एसएफ़एसी के निदेशक से इस संबंध मे बात किया तो उन्होने बताया की एसएफ़एसी के निदेशक को जिले के कलेक्टर से बात करने का अधिकार नहीं हैऔर उच्च अधिकारियों से बात करने की कोशिश करें तो किसी को फुर्सत भी नहीं है और रुचि भी नहीं है। हम स्मार्ट एफपीओ अवधारणा और बेस्ट केयर इंटरवेंशन की प्रस्तुति देने के लिए भी तैयार थे और किसी भी प्रश्न के लिए भी तैयार थे लेकिन किसी को भी इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है और हर कोई व्यस्त है।
हमें खेद है कि अधोहस्ताक्षरकर्ता की एफ़पीओ सक्रियता से आपको असुविधा होगी, लेकिन अगर एसएफएसी, नाबार्ड और DA&FW अधिकारी अपने वर्तमान प्रक्षेपवक्र में आगे बढ़ते रहे तो मामला अगले स्तर पर जाने की संभावना है। हमारे टीम के कानूनी विशेषज्ञों ने , सुप्रीम कोर्ट में दायर करने हेतु जनहित याचिका का मसौदा तैयार करने का काम शुरू कर दिया है। हम एफपीओ क्षेत्र को पुनर्जीवित करने और फिर से ऊर्जावान बनाने के लिए समाधान समझाने/प्रस्तुत करने/प्रदर्शन करने का मौका देने के अपने पहले के अनुरोध पर कायम हैं।