गांव के गरीब किसान FPO के शिकंजे मे फंसे- उनका जमीन, मकान तक बिक सकता है

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हमारे पिछले अंक “सरकारी संस्थाओं द्वारा एफपीओ इक्विटी अनुदान का दुरुपयोग की अनदेखी” मे हमने यह बताया था की कैसे सरकारी संस्था जैसे नाबार्ड और एसएफ़एसी ने इक्विटि ग्रांट के नाम पर होने वाले धांधली से अपना मुह छिपा रखा है, और उनको इस बात से कोई मतलब नहीं है की एफ़पीओ मे क्या हो रहा है। मामला यदि सिर्फ कुछ लाख रुपए के दुरुपयोग तक ही सीमित होता तो ठीक था, लेकिन असली मुद्दा यह है की इस इक्विटि ग्रांट के चक्कर मे एफ़पीओ के बीओडी बहुत बड़ी मुसीबत मे फँसने वाले है।

इक्विटि ग्रांट के मामले परियोजना मार्गदर्शिका मे बिलकुल स्पष्ट निर्देश दिये गए है की एफ़पीओ को इक्विटि ग्रांट प्राप्त होने के 45 दिन के भीतर सभी अंशधारको को अतिरिक्त शेयर जारी करने है, और जारी किए गए अतिरिक्त शेयर की सूची एवं सीए का प्रमाण पत्र, नाबार्ड/ एसएफ़एसी को 45 दिन के भीतर प्रेषित करना है। मार्ग दर्शिका बिलकुल स्पष्ट है की 45 दिन के भीतर अतिरिक्त शेयर जारी कर इसकी सूचना न देने की स्थिति मे इक्विटि ग्रांट की पूरी राशि एफ़पीओ से वसूल कर लिया जाएगा।

इसके पीछे कारण यह है की कंपनी अधिनियम 2013 के खंड 56(4) के अनुसार सभी कंपनी को शेयर राशि प्राप्त होने के 60 दिन के भीतर अंश धारक को शेयर जारी कर शेयर सर्टिफिकेट जारी करना है। ऐसे न करने पर खंड 56(6) के अनुसार हर बीओडी एवं सीईओ पर रु 50000/ (पचास हजार) का अर्थ दंड लगेगा। इस साठ दिन के बाद 30 दिन के भीतर ऑनलाइन E-Form PAS-3 निर्धारित शुल्क के साथ जमा करना अनिवार्य है, और न करने पर प्रति दिन का रु1000/ का अर्थ दंड है (अधिकतम रु 1.0 लाख)।

एफ़पीओ ने 45 दिन के भीतर एसएफ़एसी/ नाबार्ड को अतिरिक्त शेयर जारी करने की सूचना ना दे पाना या दर्शाता है की अंशधारियों के अतिरिक्त शेयर एफ़पीओ द्वारा जारी किए ही नहीं गए है, और ऐसी स्थिति मे कंपनी अधिनियम 2013 के खंड 56 (6) के अनुसार एफ़पीओ के बीओडी पर जुर्माना प्रारम्भ हो गया है। अब इस इक्विटि ग्रांट का भविष्य मे कभी भी अतिरिक्त शेयर जारी करने का निर्णय भी ले लिया जाये, तो भी एफ़पीओ वो जारी कर आरओसी मे E-Form PAS-3 नहीं जमा कर पाएंगे।

कुल मिलाकर सरकार ने जो इक्विटि ग्रांट किसानो के नाम पर दिया वो किसानो को न मिलकर किसी बंदर बाँट मे बंट जाएगा। हमने एसएफ़एसी से आरटीआई लगाकर, मध्य प्रदेश के परिपेक्ष मे यह पूंछा की 10000 एफ़पीओ योजना मे कितने एफ़पीओ को इक्विटि ग्रांट दिया गया है, और उनमे से कितने एफ़पीओ ने 45 दिन के भीतर अतिरिक्त शेयर जारी करने की सूचना और प्रमाण पत्र एसएफ़एसी को दिये।

एसएफ़एसी ने जो जानकारी दिया, उसके अनुसार म.प्र. मे 63 एफ़पीओ (2021-22 के 49 एफ़पीओ और 2022-23 के 14 एफ़पीओ)) को इक्विटि ग्रांट प्रदान किया गया, और इनमे से एक भी एफ़पीओ ने अतिरिक्त शेयर जारी करने की सूचना/ प्रमाण पत्र पेश नहीं किया है। खास बात तो यह है की इन 63 एफ़पीओ मे से किसी एक को भी एसएफ़एसी ने इक्विटि ग्रांट के वसूली की नोटिस जारी नहीं किया है। स्थिति की गंभीरता को समझे – सरकार ने इक्विटि ग्रांट जारी किया किसानो को अतिरिक्त शेयर जारी करने के लिए, जो की एफ़पीओ ने नहीं किया, जो की इक्विटि ग्रांट का स्पष्ट दुरुपयोग है। इस बात को संज्ञान मे लेते हुए एसएफ़एसी के पास अब दो विकल्प है..

1- एफ़पीओ से इक्विटि ग्रांट की पूरी राशि वसूली जाये।
2- एफ़पीओ को दिये गए इक्विटि ग्रांट के अंशधारियों को तुरंत अतिरिक्त शेयर जारी करने के निर्देश दे।

अब पहले विकल्प मे इक्विटि ग्रांट की वसूली किस से करोगे? एफ़पीओ ने तो मिला हुआ इक्विटि ग्रांट खर्च कर दिया। तलवार तो अब बीओडी पर ही गिरेगी और एसएफ़एसी को कानूनी रूप से बीओडी के खिलाफ वसूली नोटिस जारी करना पड़ेगा। दूसरे विकल्प की बात हम पहले कर चुके है की इतना समय गुजर जाने के बाद शेयर जारी करोगे तो इसमे अर्थ दंड/ जुर्माने की बात आएगी जो की बीओडी को ही भुगतना है।

हमने हमारे आरटीआई मे यह भी पूंछा था की 45 दिन मे एफ़पीओ से अतिरिक्त शेयर की सूची/ प्रमाण पत्र न प्राप्त होने की स्थिति मे क्या एसएफ़एसी ने एफ़पीओ को या सीबीबीओ को कोई अनुस्मारक दिया, जिसका जवाब ना मे मिला। तो क्या एसएफ़एसी के अधिकारियों को यह पता नहीं था, की एफ़पीओ से शेयर जारी करने की सूची / प्रमाण पत्र न प्राप्त होना, भविष्य मे उस एफ़पीओ को बहुत बड़ी मुसीबत मे डाल सकती है।

जब मार्ग दर्शिका बिलकुल स्पष्ट है की 45 दिन मे शेयर जारी ना करने की स्थिति मे एफ़पीओ से इक्विटि ग्रांट वसूला जाना है, तो यह काम एसएफ़एसी ने क्यों नहीं किया। एसएफ़एसी के अधिकारियों द्वारा इक्विटि ग्रांट की वसूली ना करना क्या कुछ भ्रष्टाचार की ओर इशारा करती है? एक सवाल और बनता है – एफ़पीओ को इक्विटि ग्रांट प्राप्त करने मे सहायता करने पर सीबीबीओ/ एनजीओ को एसएफ़एसी से पाँच लाख मिलता है।

यदि एफ़पीओ से इक्विटि ग्रांट की वसूली होती है, तो क्या सीबीबीओ से वसूली नहीं होनी चाहिए। बहरहाल एक बात तो स्पष्ट है की एसएफ़एसी और नाबार्ड जैसे संस्थाओं ने इस 10000 एफ़पीओ के योजना का तो बंटाधार किया, लेकिन साथ मे बेचारे किसानो (बीओडी) को कानूनी उलझनो मे फंसा दिया। ऐसे एफ़पीओ मे जो बीओडी समझदार होगा, वो बीओडी के पद से इस्तीफा देकर आने वाले मुसीबतों से अपना पल्ला झाड लेगा।