महामहिम द्रौपदी मुर्मू – एक महान व्यक्तित्व, एक सरल इंसान

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आदरणीय द्रौपदी मुर्मू पहली आदिवासी महिला हैं। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू झारखंड के राज्यपाल के रूप में देश की पहली आदिवासी महिला राज्यपाल थी और अब देश के राष्ट्रपति के रूप में वे पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति हैं।

जीवन परिचय:

द्रौपदी मुर्मू का जन्म 20 जून, 1958 को ओडिशा के मयूरभंज जिले में बैदापोसी गांव में एक संताली आदिवासी परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम बिरंची नारायण टुडू था।आपके पिता गांव के मुखिया थे। सभी से सदभाव रखने वाली, सबकी मदद और हर जिम्मेदारी के लिए हमेशा तैयार रहने वाली द्रौपदी दीदी को समय की बर्बादी बचपन से पंसद नहीं है।इस संदर्भ में आपके बचपन का एक वाकया है।बात 1969 की है, जब आप सिर्फ 11 वर्ष की थी।

ओड़िशा के मयूरभंज जिले के उपरबेड़ा मिडिल इंग्लिश स्कूल में एक शिक्षक थे बासुदेव बेहरा। दादाजी का निधन होने के कारण उन्होंने मुंडन कराया था और टोपी पहनकर स्कूल आ रहे थे। एक दिन ब्लैकबोर्ड साफ करने के लिए डस्टर नहीं मिला तो उन्होंने टोपी से ही बोर्ड साफ करना शुरू कर दिया। यह देख सभी बच्चे हंसने लगे। लेकिन कक्षा में मौजूद द्रौपदी को यह ठीक न लगा।

घर जाकर उन्होंने पुराने कपड़ों से दो डस्टर तैयार किए और अगले दिन स्कूल लेकर आई। घर में किसी से इसका जिक्र तक नहीं किया। महज सातवीं कक्षा में इतनी संवेदनशीलता और जिम्मेदारी देश के भावी राष्ट्रपति में ही देखने मिल सकती है।जिम्मेदारी और सहयोग का भाव उनमें हमेशा से था। रमा देवी कन्या महाविद्यालय से 1979 में स्नातक के बाद वे अपनी दीदी डेल्हा सोरन और चार अन्य लड़कियों के साथ शेयरिंग में रहती थीं। कॉलेज की पढ़ाई करने के बाद परिवार की आर्थिक जरूरतें पूरी करने के लिए वे नौकरी करने लगीं। इस दौरान वे साथ रह रहीं लड़कियों के लिए खाना बनातीं, बाजार से उनकी जरूरत के सामान लातीं और ऑफिस भी जाती थीं।

द्रौपदी मुर्मू का विवाह श्याम चरण मुर्मू से 1980 में हुआ,जो एक बैंकर थे।जिससे उनके दो बेटे और एक बेटी इति मुर्मू है।जब उनके बड़े बेटे लक्ष्मण की अचानक मौत हो गई तो 25 साल के जवान बेटे को खोने का सदमा इतना गहरा था कि वे टूट सी गईं। उन्होंने खुद को एक कमरे तक सीमित कर लिया। उनकी स्थिति देख उनके पति और परिवार के अन्य सदस्य काफी चिंतित हो उठे।

आखिरकार इस अवस्था से निकलने के लिए उन्होंने ध्यान करना शुरू किया और नई जिम्मेदारियों के लिए खुद को तैयार किया। बाद में उनके छोटे बेटे का भी निधन हो गया और पति भी 2014 में छोड़कर पंचतत्व में विलीन हो गए। महज चार साल के अंदर एक के बाद एक लगातार तीन मौतों ने मुर्मू को बुरी तरह तोड़ दिया। वह अवसाद में चली गईं।

विपत्ति में किसी भी इंसान की जीने की इच्छा खत्म हो जाती है। जीवन से निराश मुर्मू ने आखिरकार राजनीति से दूर जाने का फैसला कर लिया। लेकिन इसी दौरान अपने शहर के प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय केंद्र की उनकी एक यात्रा ने उनके जीवन को भटकने से बचा लिया। वहाँ से संपर्क के बाद उन्होंने अपनी दिनचर्या में राजयोग और ध्यान का पालन करना शुरू किया, धीरे-धीरे उनमें मानसिक शांति के साथ साथ जीने की इच्छा भी वापस आने लगी।

ब्रह्माकुमारी संगठन से उनका गहरा जुड़ाव होने लगा, जिसने उन्हें उनके जीवन के उथल-पुथल भरे दौर से उबरने में काफी मदद की और उन्हें अपना शेष जीवन मानव जाति की सेवा में बिताने का रास्ता दिखाया। उन्होंने बाद के वर्षों में उन्होंने अपने जीवन में ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की अहमियत को बार-बार स्वीकार किया है।

राजनीतिक यात्रा:

राजनीति में आने की बात द्रौपदी जी के मन में दूर-दूर तक नहीं थी। वे चार साल तक ओड़िशा सरकार के सिंचाई विभाग में कनिष्ठ सहायक के रूप में काम कर रही थीं। लेकिन अचानक अपनी बड़े बेटे की मौत से दुखी होकर वह सबकुछ छोड़ कर भुवनेश्वर से वापस अपने परिवार के पास लौट गईं। कुछ समय बाद उन्होंने अपने रायरंगपुर शहर में श्री अरबिंदो स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया। स्कूल में वह बहुत लोकप्रिय शिक्षिका थीं। वह स्कूल के बच्चों से जितना प्यार करती थीं, उतना ही प्यार व सम्मान बच्चे भी उन्हें देते थे।मुर्मू का स्कूल, जहाँ वह पढ़ाती थीं, वह भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन जिला अध्यक्ष रवींद्र महंत के घर के ठीक बगल में था।

ऐसे में महंत के घर पर आने जाने-वाले लगभग सभी स्थानीय बीजेपी नेता मुर्मू को पहचानते थे। पार्टी के नेता राजकिशोर दास, जो एनएसी अध्यक्ष थे, उन्होंने सबसे पहले मुर्मू के एक साथी शिक्षक से उनके पास पार्टी में शामिल होने और चुनाव लड़ने का प्रस्ताव भेजा, लेकिन मुर्मू ने चुनाव लड़ने का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया। तब राजकिशोर दास और अन्य स्थानीय भाजपा नेताओं ने उनके पति से संपर्क किया और उन्हें मनाने की कोशिश की। आखिरकार वे मुर्मू को राजनीति में लाने में कामयाब हो गए।

द्रौपदी मुर्मू 1997 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हुईं और रायरंगपुर नगर पंचायत की पार्षद चुनी गईं। 2000 में, वह रायरंगपुर नगर पंचायत की अध्यक्ष बनीं और भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी रहीं। ओडिशा में भाजपा और बीजू जनता दल गठबंधन सरकार के दौरान द्रौपदी मुर्मू ने निम्नलिखित पदों पर कार्य किया।

संभाले गए पद और उनका कार्यकाल:

वाणिज्य एवं परिवहन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार)- 6 मार्च 2000 से 6 अगस्त 2000 तक
मत्स्य पालन और पशु संसाधन विकास मंत्री- 6 अगस्त 2002 से 16 मई 2004 तक
ओडिशा के पूर्व मंत्री- 2000 रायरंगपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक- (2004)विधायक के तौर पर भी उनके काम का डंका बजा. साल 2007 में उन्हें सर्वेश्रेष्ठ विधायक (Best MLA Award) के लिए नीलकंठ अवॉर्ड (Neelkanth Award) से सम्मानित किया गया, ये अवॉर्ड उन्हें ओडिशा विधानसभा की तरफ से मिला।

द्रौपदी मुर्मू ने 18 मई 2015 को झारखंड के राज्यपाल के रूप में शपथ ली और झारखंड की पहली महिला राज्यपाल बनीं। वह ओडिशा की पहली महिला आदिवासी नेता थीं जिन्हें भारतीय राज्य का राज्यपाल नियुक्त किया गया था। द्रौपदी मुर्मू ने 2017 में झारखंड की राज्यपाल के रूप में छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम, 1908 और संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम, 1949 में संशोधन की मांग करने वाले झारखंड विधानसभा द्वारा अनुमोदित विधेयक को मंजूरी देने से इनकार कर दिया था।

इस विधेयक में आदिवासियों को अपनी भूमि के व्यावसायिक उपयोग का अधिकार देने का प्रयास किया गया है, साथ ही यह भी सुनिश्चित किया गया है कि भूमि के स्वामित्व में कोई परिवर्तन न हो। द्रौपदी मुर्मू ने 25 जुलाई, 2022 को भारत के 15वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली। उन्हें संसद के सेंट्रल हॉल में भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने शपथ दिलाई। भारत के निवर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और द्रौपदी मुर्मू शपथ ग्रहण शुरू होने से कुछ समय पहले एक औपचारिक जुलूस के साथ संसद पहुंचे।

अपने संबोधन में भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भारत के पहले आदिवासी राष्ट्रपति के रूप में उन्हें चुनने के लिए सांसदों और विधायकों को धन्यवाद दिया। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के राष्ट्रपति के रूप में अपने पहले संबोधन में उन्होंने कहा, “मैं देश की पहली राष्ट्रपति हूं जिसका जन्म स्वतंत्र भारत में हुआ है। हमें उन उम्मीदों को पूरा करने के लिए अपने प्रयासों को तेज़ करना होगा जो हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने स्वतंत्र भारत के नागरिकों से की थीं।”

भारत की राष्ट्रपति के रूप में, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने देश की व्यापक रूप से यात्राएं की हैं। उन्होंने विश्व स्तर पर भारत की पहुँच और प्रभाव को बढ़ाने के लिए विदेश की यात्राएं भी की हैं। उन्होंने 2022 में यूनाइटेड किंगडम का दौरा किया, और 2023 में सूरीनाम और सर्बिया की राजकीय यात्रा की। राष्ट्रपति, द्रौपदी मुर्मु सूरीनाम का सर्वोच्च सम्मान “ग्रैंड ऑर्डर ऑफ द चेन ऑफ द येलो स्टार” प्राप्त करने वाली पहली भारतीय हैं।

उन्होंने इस सम्मान को भारतीय-सूरीनाम समुदाय की क्रमिक पीढ़ियों को समर्पित किया है। आपके कार्यकाल में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 25000 से अधिक लोगों से सीधे मुलाक़ात की, जो कि एक रिकॉर्ड है. जनता के लिए द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन में आने को आसान बना दिया है. द्रौपदी मुर्मू के प्रयासों का परिणाम रहा कि पिछले एक साल में 90,000 लोगों ने राष्ट्रपति भवन का दौरा किया।

द्रौपदी मुर्मु, ओडिशा के आदिवासी सामाजिक-शैक्षिक और सांस्कृतिक क्षेत्र के अनेक संगठनों से जुड़ी रहीं। आपकी स्वाध्याय में विशेष रूचि है और अध्यात्म में गहरी आस्था है।आपका आध्यात्मिक ज्ञान बहुत उच्च है। आपके आध्यात्मिक विचारों को सोशल मीडिया जैसे यू ट्यूब पर सरस ही सुना जा सकता है। एक सामान्य से घर में जन्म लेकर, शीर्ष तक का कठिन सफर आपके महान व्यक्तित्व को व्यक्त करता है। हम आपको देश के सर्वोच्च पद पर पाकर गौरवान्वित है और आपको और आपके जीवन को सादर नमन करते हैं।

रुचिता तुषार नीमा
लेखिका, साहित्यकार, सामाजिक कार्यकर्ता
(इंदौर)