दो हज़ार चौबीस की मेरी पहली किताब मिस्टर मीडिया हाथ में है। इसे भारत में पत्रकारिता के तमाम अवतारों की मौजूदा भूमिका का समीक्षात्मक अध्ययन भी आप मान सकते हैं । क़रीब तीन दशक तक एशिया के सबसे बड़े प्रकाशन संस्थान नेशनल बुक ट्रस्ट के संपादक रहे पंकज चतुर्वेदी इसके सूत्रधार हैं। पंकज ने सेवानिवृत होने के बाद अपना प्रकाशन संस्थान प्रवासी प्रेम पब्लिकेशंस प्रारंभ किया है। मिस्टर मीडिया इसी संस्थान की प्रस्तुति है । कह सकता हूं कि मुद्रण का स्तर अंतरराष्ट्रीय है और एक नवोदित संस्था के लिए यह गर्व की बात हो सकती है।
अभिव्यक्ति की संवैधानिक आज़ादी मिस्टर मीडिया के सारे स्तंभों का केंद्र बिंदु रही है ।इसलिए मेरा प्रयास रहा कि जहाँ भी पत्रकारिता की गाड़ी पटरी से उतरती दिखाई दे,वहाँ कलम की चाबुक चलाई जाए । इसमें प्रिंट,रेडियो,टीवी,सोशल और डिजिटल पत्रकारिता के सभी रूपों को शामिल किया गया है । जहां भी केंद्र या राज्य सरकारों ने स्वतंत्र पत्रकारिता को छेड़ने का साहस किया,वह मेरी कलम के दायरे में आया । कई बार इसके सकारात्मक परिणाम भी मिले ।सुखद यह है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने भी अनेक बार पटरी से उतरती पत्रकारिता को चेताया ,जिन पर मैं पहले ही आग़ाह कर चुका था।
लेकिन सिर्फ़ सरकारों के आक्रमण पर ही यह किताब क़रारा प्रहार नहीं करती ,बल्कि पत्रकारिता में अभिव्यक्ति के नाम पर हो रहे दुरूपयोग को भी रोकने का प्रयास करती है। बीते दस वर्षों में भारतीय पत्रकारिता को सत्ताधीशों ने दो हिस्सों में बाँट दिया है। एक तो वह वर्ग है ,जो उसकी ख़ुशामद करता है। इसे आजकल गोदी मीडिया भी कहने लगे हैं। पत्रकारिता में अब यह एक कलंकित और अभिशप्त शब्द मान लिया गया है। दूसरा वर्ग है ,जो इस गोदी मीडिया को आड़े हाथों लेता है। याने यह वर्ग केंद्र सरकार और इसके दूसरे इंजन वाली सरकारों पर हमला बोलता है। विडंबना है कि ऐसे में संतुलित और निष्पक्ष मीडिया का तीसरा वर्ग कहीं विलुप्त हो गया है। उसके लिए कोई संभावना नहीं बची है। वह या तो सरकार के पाले में खड़ा हो जाए अथवा दूसरे विरोधी खेमे में। बताने की ज़रुरत नहीं कि इन स्थितियों में संतुलित और निष्पक्ष पत्रकारिता करने वालों ने दूसरे पाले में जाना उचित समझा है।महान संपादक राजेंद्र माथुर यही मानते थे कि सौ फ़ीसदी निष्पक्षता कुछ नहीं होती। यदि किसी संपादक अथवा पत्रकार के सामने यह धर्म संकट आ जाए तो उसे बेझिझक अवाम के साथ खड़ा हो जाना चाहिए। यही सच्ची पत्रकारिता है। इस किताब में गोदी मीडिया के चरित्र पर प्रहार किया गया है।
प्रसंग के तौर पर बता दूँ कि इस पुस्तक का आखिऱी लेख प्रखर पत्रकार दया शंकर मिश्र की एक पुस्तक पर केंद्रित है। यह पुस्तक राहुल गांधी पर केंद्रित है।मैनेजमेंट ने इस पर दया शंकर मिश्र से उनकी नौकरी छीन ली। जिस पोर्टल पर मैं मिस्टर मीडिया कॉलम लिख रहा था ,वह इसे प्रकाशित करने का साहस नहीं दिखा सका और मैंने अपना स्तंभ ही बंद कर दिया।अब यह स्तंभ एक अंतर्राष्ट्रीय न्यूज़ पोर्टल -न्यूज़ व्यूज़ डॉट कॉम पर चल रहा है। हर सप्ताह लाखों लोग इसे पढ़ते हैं। एशिया में पत्रकारिता की समीक्षा करने वाला यह सबसे अधिक समय तक चलने वाला स्तंभ है।
इस किताब में चुनिंदा 160 आलेख हैं। पत्रकारिता के छात्रों,जन संचार प्राध्यापकों,मीडिया शिक्षण पाठ्यक्रम चलाने वाले विश्वविद्यालयों ,अख़बारों, टीवी चैनलों ,रेडियो स्टेशनों,सरकारी प्रचार माध्यमों, जनसंपर्क विभागों में काम करने वाले लोगों के लिए यकीनन यह पुस्तक अत्यंत उपयोगी और शोधपरक साबित होगी। इस शताब्दी के पत्रकारिता के महानायकों से जुड़े संस्मरण भी इसमें आपको पढ़ने के लिए मिल सकते हैं। इनमें महात्मा गांधी,बनारसी दास चतुर्वेदी, राजेंद्र माथुर,सुरेंद्र प्रताप सिंह,प्रभाष जोशी और विनोद दुआ से लेकर नौजवान पत्रकार संजय शर्मा (फोर पी एम) तक के बारे में आप पढ़ सकते हैं। इसके अलावा समाज के बौद्धिक और कलम के महारथियों के लिए भी शायद यह उपयोगी होगी।