कुछ तो शर्म करो नौजवानों…..नशा कभी शान नहीं होता इसको मानों….नाईट में पब कल्चर और रेव पार्टी जारी है….इस उम्र में सुरा और सुन्दरी की लिप्सा एक बीमारी है….इज्जत पर आई तो मूंह ढँकते रह गए…वहाँ तो खूब डूबे और नशे के आगोश में बह गए….तुम्हारे माता – पिता को तो पता ही नहीं होगा कि तुम किस मुकाम पर हो…इतनी रात को भी घर नहीं आये तो क्या पता जाम के जाम पर हो….दोष तो परिजनों का भी भरपूर है….कभी पता तो लगाते की ये कहाँ नशे में चूर है…सारे संभ्रांत परिवारों की लाज को छुपाते रहे…प्रचारित न हो जाये इसलिए इसके फैलने की आग को बुझाते रहे।
पुलिस ने भी लगभग सभी को छोड़ दिया…युवक युवतियों का चुपचाप घरों की तरफ मुख मोड़ दिया….मौके पर परिजनों को बुलाते…लड़कियों के भी माँ बाप को माजरा बताते…किसके साथ कौन कौन था इस रहस्य पर से पर्दा उठाते….तब इस सजा पर युवा अगली बार ऐसी हरकत नहीं कर पाते…सौ में से एक दो ही ऐसी पार्टियां पकड़ में आती है…कई बार तो धूम मस्ती के साथ ये पूर्ण हो जाती है….तभी तो इतनी संख्या में युवजन जुटे…उनको पता था कि पहले कभी वो इस तरह नही लुटे…इस बार मौके पर पकड़ा गए तो छूट जाएंगे…जूते कभी पड़े नहीं जो वो बुरी तरह से टूट जाएंगे…उनको लगातार मिलने वाला यही हौसला उनकी ताकत है…तभी तो हर जोड़े के साथ पहुँच जाती वहां नजाकत है…सबक सिखाना बहुत जरूरी है।
हम जानते हैं प्रशासन की भी कुछ मजबूरी है…मगर जब तक सख्ती नहीं होगी इन घटनाओं के अंजाम पर…कुछ दिन रुकेगी फिर चालू हो जाएगी ऐसी पार्टी देकर पैगाम पर…बाकायदा पेमेंट करके टिकिट लेकर आये होंगे…आयोजकों ने भी लगातार इस तरह खूब कमाए होंगे…तभी तो नियोजित रूप से ये कारोबार फल फूल रहा है…नौजवानों का हुजूम अपनी बेइज्जती भूल रहा है…बात महज संस्कार की नहीं बढ़ते अपराधों के संरक्षण की है…नशे के सौदागरों द्वारा कई जिंदगियों के भक्षण की है…पहले वो लत लगाते हैं फिर पैसा नहीं तो लात लगाते हैं…जहाँ युवाओं का हुजूम दिखता है वहाँ उनके एजेंट आते और जाते हैं…मुफ्त में नशा वितरण से सिलसिला शुरू होता है…फिर वही नशा उन लघुओं का गुरु होता है…करियर तो सायकिल के कैरियर की तरह पीछे ही रह जाता है।
युवाओं को ज़िंदगी के इसी नशे में खूब मजा आता है…हुक्मरानों से भी ये अरदास दिल के दरवाजे से दस्तक के रूप में है…यही पीढ़ी भविष्य है देश का जरा चिंता तो करो वो किस स्वरूप में है…तुमको तो अहातों और कम्पोजिट के फैसलों से ही फुर्सत नहीं…कहाँ जा रहा है समाज इससे पीछे मुड़कर देखो तो सही…पब पर परोसगारी कोई नई नहीं है…बुरी आदत व्यापार की गई नहीं है….तुम दिखावटी डंडा तो कभी कभार चलाते हो…जब आग लग जाती है तब उसको केरोसीन से बुझाते हो…तुमको सब पता है कि कहाँ कहाँ , क्या क्या हो रहा है…तुम्हारा शरीर जाग्रत हैं आंखे चौकन्नी पर अरमान सो रहा है…खेल सारा माया का है जो स्थाई नहीं होती…पाप की कमाई कभी कमाई नहीं होती…दूसरों की औलादों में भी अपनी औलाद की शक्ल देखो…किस कदर बिगड़ जाती है उनकी अक्ल देखो…युवा जो देश का मेरुद्दण्ड है वो अपाहिज हो रहा है…पदों की पदवियां भुलाकर पब की अट्टालिकाओं में काबिज हो रहा है…थोड़ा इस पर भी गौर फरमाइए सरकार…नहीं तो पूरी की पूरी पीढ़ी ही हो जाएगी बेकार।