कोरोना कुछ के लिए विपदा कुछ के लिए अवसर और ईश्वर!

Shivani Rathore
Published on:

-राजकुमार जैन

इस कोरोना काल में हम सब आवश्यक वस्तुओं, जीवनरक्षक दवाइयों, चिकित्सकीय सुविधाओं की कमी से जूझ रहे हैं और इनकी कमी को स्पष्ट रूप से महसूस कर रहे हैं ।

अधिकांश आवश्यक वस्तुए बाजार आए गायब हैं, क्यों हो रहा है ऐसा ?
हमारे गांवों, शहरों में गोबर एक बहुतायत से उपलब्ध बहुत सस्ती वस्तु है लेकिन अभी यह खबर आये कि गोबर के पानी से मरीज को नहलाना एक कारगर इलाज है तो हम सब गोबर इकट्ठा करने में लग जाएंगे और्वसारी गौशालाओं का गोबर भी कम पड़ जायेगा और हम गोबर की जमाखोरी और कालाबाज़ारी शुरू कर देंगे और गोबर के भाव आसमान छूने लगेंगे ।

आज देश के हालात देखिए ……
हर वो वस्तु जो कोरोना के इलाज में कारगर बताई गई है वो बाजार से गायब हो रही है। भाप लेने की मशीन से लेकर संतरा तक बाज़ार से गायब है। साधारण निम्बू जो के सुगमता से उपलब्ध होता था उसे ढूंढ़वाना पड़ रहा है।

जीवनदायी इंजेक्शन और ऑक्सीजन तो बहुत बड़ी बात है कपूर, निम्बू, संतरा जैसी छोटी-छोटी चीज़ों के लिए भी हम लोगों ने हाहाकार मचा दिया है। हम सब वही भारतवासी हैं जो साथ मिलकर देशभक्ति के नारे लगाते है, जो सैनिकों की शहीदी पर आंसू बहाते है ।

लेकिन असल में हमें अपने देश और देशवासियों से कितना प्रेम है ? एक तरफ चंद लोग सांसो के लिए मर रहे हैं और दूसरी तरफ हम आवश्यक वस्तुओं की बेवजह जमाखोरी करने में अपने संसाधनों को खपा रहे हैं।

इन हालात के लिए हम दोष व्यापारियों को दे रहे हैं कि वो कालाबाजारी कर कृत्रिम कमी पैदा कर रहे हैं, हम सरकार को भी दोष दे रहे हैं कि वो व्यवस्था नहीं सम्हाल पा रही है, जरूरतमंदों को जरूरत का सामान उपलब्ध नहीं करा पा रही है ।

वस्तुतः चीजें गायब नहीं हो रही है…
व्यापारी भी कालाबाजारी भी नहीं कर रहे हैं…
सरकार भी नकारा नहीं है …

वस्तुतः हमारा व्यवहार मानव जैसा ना होकर भेड़ और पशु जैसा होता जा रहा है।

प्रत्येक घर जमाखोरी का अड्डा बन चुका है, हर परिवार ने अपने संसाधनों अनुसार उपलब्ध वस्तुओं का संग्रहण शुरू कर दिया है, जिसको जैसा बन पड़ा उसने वो जुगाड़ कर खरीद लिया है, आपके पास ₹ 1000 हैं तो आपने उतने का स्टॉक कर लिया है, आपके पास ₹ 1 करोड़ है तो आपने उस अनुसार जमाखोरी कर ली है, संसाधन अलग अलग है लेकिन नीयत दोनों की एक समान है।

मेरा यकीन मानिए एक्पायरी डेट निकल जाने के बाद अति आवश्यक जीवनरक्षक दवाइयां आपको मोहल्ले के कूड़ेदान में नजर आयेगी । और यह सब क्यों हो रहा है क्योंकि हम सिर्फ और सिर्फ अपने बारे में सोचते है, हमारा मानवता पर भरोसा उठ चुका है ।

प्रश्न यह है कि मानवता किसमें होती है ? उत्तर है मानवों में ।

अब यदि हमारा मानवता से भरोसा खत्म हो गया है तो यह मतलब निकाला जा सकता है कि हम मानव रहे ही नहीं हैं, हम कुछ और ही बन गए हैं । मुझे बताइए कि यदि सिर्फ आवश्यकता अनुसार ही माल खरीदा जाएगा तो कालाबाजारी क्योंकर होगी ?

यदि धन और संसाधनों का संग्रहण करने से हम जीवन बचा सकते तो माइकल जैक्सन आज भी हमारे बीच होते, किसी धनी या साधनसम्पन्न व्यक्ति की मृत्यु कोरोना से नहीं हुई होती और साथ ही किसी गरीब निसहाय व्यक्ति की जिंदगी ना बचाई जा सकती लेकिन हमें देखा है कि कई अति धनवान, सक्षम और साधनसम्पन्न व्यक्तियों को जो दुनिया के बेहतरीन सात सितारा अस्पतालों और सबसे उम्दा डॉक्टरों की सुरक्षा घेरे में थे उनको भी भगवान ने अपने पास बुला लिया है और दूसरी तरफ हमारे तथाकथित नकारा सरकारी अस्पतालों ने ही कई गरीब, निःसहाय, साधन संसाधन विहीन लोगों के प्राण बचाये हैं ।

क्या हम यह कह सकते हैं कि इस क्राइसिस के जन्मदाता हम ही है और हमें ही अपने कर्मों का फल भोगना है, सिर्फ दूसरों पर दोषारोपण कर देने से कुछ हासिल नहीं होगा, क्योंकि यह किसी व्यक्ति या वर्ग विशेष की समस्या नहीं है यह हमारी पूरी कौम की समस्या है जिसको बदलना किसी भी सरकार के लिए नामुमकिन है ।

और सौ बात की एक बात हम यदि ईश्वर और उसके विधान को मानते हैं और यह भी मानते हैं कि ईश्वर की मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता और प्रारब्ध पर भी हम सम्पूर्ण यकीन रखते हैं तो फिर जो हो रहा है वो सब सही ही हो रहा है ना !

तो हम क्या करें ?

हमारे पूज्य ग्रन्थों में लिखा है अपना कर्म करते रहो और निरपेक्ष रहो ।

कर्म की महत्ता हम मनुष्यों से बेहतर और कौन जानता है ।

तो दोषारोपण या विलाप करने की बजाय अपने कर्मों पर नजर डालें और प्रयत्न करें कि वो सही हों।

हम यह मानते हैं कि सर्वव्यापी परमपिता की नजर सब पर, सब जगह और सब समय है फिर भी हम गलत कर्म करने से बाज नहीं आते यानी हम ईश्वर से भी नहीं डरते ।