राज-काज – क्यों सीन से गायब है मोदी – शाह की जोड़ी?….

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* दिनेश निगम ‘त्यागी’

कोरोना के भीषणतम संकट की इस घड़ी में केंद्र सरकार सीन से गायब है। पिछले साल कोरोना ने दिसंबर, जनवरी में दस्तक दे दी थी। तब केंद्र ने मप्र में कांग्रेस सरकार गिरने का इंतजार किया था। इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सामने आए थे। लोगों से 21 दिन का समय मांग कर देश भर में लॉकडाउन की घोषणा की थी। वालेंटियर की हौसला आफजाई के लिए घंटी, घंटे, शंख, थालियां बजवाई और टार्च, मोमबत्तियां जलवाई थीं। राहत की घोषणा की थी। इस बार हर रोज लाखों लोग संक्रमित हो रहे हैं, काल के गाल में समा रहे हैं, फिर भी नरेंद्र मोदी – अमित शाह को जोड़ी सीन से गायब है। आखिर क्यों?

सवाल उठ रहे हैं कि क्या पश्चिम बंगाल चुनाव का इंतजार हो रहा है? प्रधानमंत्री ने देर से ही सही लेकिन कुंभ को खत्म करने की अपील कर डाली लेकिन पश्चिम बंगाल में रैलियां, सभाएं लगातार जारी हैं। देश में और कितनी मौतों का इंतजार किया जा रहा है? धारणा बन रही है कि पश्चिम बंगाल चुनाव निबटते ही मोदी – शाह की जोड़ी सक्रिय होगी। कहा जाएगा कि ‘जान है तो जहांन है’। कोरोना से लड़ने की घोषणा होगी। मतलब केंद्र को सिर्फ चुनाव और सत्ता से मतलब है, लोगों की जिंदगियों की उसे कोई चिंता नहीं। नरेंद्र मोदी को लोगों के अंदर बन रही इस धारणा को तोड़ना होगा। यह न किया गया तो बहुत देर हो जाएगी, तब इसका खामियाजा देश और लोगों के साथ केंद्र के सत्ताधीशों को भी भुगतना पड़ेगा।

शिवराज के ये प्रयास तो प्रशंसा के काबिल….
प्रारंभ में भले लापरवाही हुई हो। स्वास्थ्य आग्रह और जागरूकता के नाम पर सड़कों में रोड शो जैसे नाटक हुए हों, लेकिन अब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कोरोना संकट से निबटने में पूरी ताकत झोंके हुए हैं। लीक से हटकर किए गए उनके कुछ कार्य प्रशंसा के काबिल हैं। जैसे, पश्चिम बंगाल में किसी नेता ने कोइ रैली, रोड शो कैंसिल नहीं किया लेकिन शिवराज ने दमोह में प्रचार अभियान के अंतिम दिन रोड शो में जाना रद्द कर दिया। अब राहुल गांधी ने कहा है कि वे पश्चिम बंगाल में कोई रैली नहीं करेंगे। हालांकि कुछ नेता राहुल के निर्णय का मजाक उड़ाकर हल्केपन का उदाहरण पेश कर रहे हैं।

इधर शिवराज ने आक्सीजन और रेमडेसिविर इंजेक्शन पहले हवाई जहाज से मंगवाए, फिर सरकारी प्लेन और हेलीकाप्टर से उन्हें प्रभावित जिलो में भिजवाने को व्यवस्था को। उज्जैन के अस्पताल में भर्ती एक लड़की ने वीडियो जारी कर मुख्यमंत्री से इंजेक्शन उपलब्ध कराने की अपील की, उस पर संज्ञान लेकर इंजेक्शन की व्यवस्था कराई। तात्पर्य यह कि आलोचाना अपनी जगह है लेकिन मुख्यमंत्री लोगों को यह ढाढस बंधाने की कोशिश में हैं कि सरकार उनके साथ है। आक्सीजन, इंजेक्शन और बेड आदि की कमी नहीं होने दी जाएगी। प्रदेश में इंदौर, उज्जैन सहित कुछ जिलों के कलेक्टर कोरोना से निबटने में अच्छा काम करते नजर आ रहे हैं लेकिन कुछ तमाशबीन की भूमिका में भी हैं। सरकार को ऐसे कलेक्टरों को बिना देरी चलता करना चाहिए।

अचानक लॉकडाउन ‘समाधान या मुसीबत’….
सरकार और जिला क्राइसेस कमेटियों द्वारा लॉकडाउन लगाने के तरीके पर सवाल उठ रहे हैं। सवाल यह कि भोपाल सहित कुछ जिलों में जिस तरह लॉकडाउन की घोषणा की गई, उससे कोरोना समस्या के समाधान में मदद मिली या यह और बड़ी मुसीबत बन गया। भोपाल में अचानक रात में घोषणा कर सुबह से 9 दिन के लॉकडाउन की घोषणा कर दी गई। लोगों को रोजमर्रा का सामान खरीदने का समय तक नहीं दिया गया। नतीजा, लॉकडाउन की खबर फैलते ही बाजार में लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। दुकानों में मारामारी मच गई। सड़कों में जाम के हालात बन गए।

इससे कोरोना की चैन टूटने में तो मदद नहीं मिली, अलबत्ता, अचानक उमड़ी इस भीड़ ने संक्रमण और फैला दिया। लिहाजा, लॉकडाउन के दौरान मरीजों की तादाद कम होने की बजाय लगातार बढ़ती गई। ग्वालियर में भी 13 अप्रैल को लॉकडाउन का निर्णय लिया गया लेकिन एक दिन छोड़कर 15 अप्रैल से। इससे लोगों को जरूरी सामान खरीदने के लिए एक दिन का समय मिल गया। सरकार को लॉकडाउन जैसे निर्णय लेने से पहले सभी पहलुओं पर विचार करना चाहिए। कोरोना की पहली लहर में केंद्र द्वारा अचानक लॉकडाउन लगाने का नतीजा देश देख और भोग चुका है। इससे सबक की जरूरत है।

विशाल पटेल जैसी दरियादिली की जरूरत….
कोरोना महामारी के इस दौर में दो दिन पहले भोपाल की सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर की गुमशुदगी के पोस्टर लग गए। भोपाल कोरोना संक्रमण में इंदौर से आगे निकल गया लेकिन प्रज्ञा ठाकुर का अता पता नहीं। स्वास्थ्य मंत्री प्रभुराम चौधरी कई दिन तक सीन से नदारद नजर आए। मुख्यमंत्री के साथ बैठकों में चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग हर समय दिखे लेकिन चौधरी नहीं। विपक्ष ने घेरना शुरू किया तब वे कुछ करते दिखाई पड़े। विधायकों में भोपाल में सबसे ज्यादा सक्रिय कांग्रेस के पीसी शर्मा और इंदौर में संजय शुक्ला नजर आए। पीसी ने अपनी निधि से सबसे पहले 10 लाख रुपए देने की घोषणा की।

इसके बाद रामेश्वर शर्मा ने 25 लाख रुपए देने का एलान आया। विवेक तन्खा ने कोविड अस्पताल के लिए एक करोड़ देने की घोषणा की तो इंदौर में विशाल पटेल ने दो करोड़ के साथ परिवार की ओर से भी 50 लाख रुपए देने की घोषणा कर डाली। पटेल ने प्रेस क्लब को भी डेढ़ लाख दे दिए। मालिनी गौड़ सहित भाजपा के कुछ विधायकों ने भी मदद के लिए हाथ आगे बढ़ाए। सवाल यह है कि क्या सभी सांसद और विधायक विशाल पटेल जैसी दरियादिली नहीं दिखा सकते? यदि ये एक-एक करोड़ ही दे दें तो 259 करोड़ की राशि एकत्र हो जाएगी, जो कम नहीं है।

शायद अपनों की नसीहत कुछ अच्छा करा दे….
भाजपा विधायक और पूर्व मंत्री अजय विश्नोई ने सवाल उठाया कि महाराष्ट्र में कोरोना संक्रमितों की संख्या मप्र से कई गुना ज्यादा है, बावजूद इसके यहां महाराष्ट्र की तुलना में आक्सीजन ज्यादा कैसे खर्च हो गई? इशारा साफ था, व्यवस्था में कहीं कोई बड़ी गड़बड़ है। तो क्या विश्नोई के सवाल को सिर्फ इसलिए खारिज कर दिया जाना चाहिए कि वे सत्तापक्ष में रहकर अपनी ही सरकार को आइना दिखाने का काम करते रहते हैं, या कोरोना संकट के इस दौर में उनकी बात पर गौर कर समाधान के प्रयास होना चाहिए। यह सच है कि विश्नोई बीच-बीच में अपनी ही सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठाते रहते हैं।

कोरोना संकट के इस दौर में भी वे सरकार की मंशा पर कई बार प्रश्न खड़े कर चुके हैं। विश्नोई बोले और विपक्ष चुप रहे ये कैसे संभव है? इसलिए विश्नोई ने जब भी अपनी सरकार की नीयत पर सवाल उठाया, कांग्रेस ने प्रदेश सरकार को कटघरे में खड़ा करने में देर नहीं की। सिर्फ विश्नोई ही नहीं इंदौर के उमेश शर्मा जैसे कुछ और नेता भी हैं जो यदा कदा अपनी सरकार को लेकर सच बोलने का माद्दा दिखाते रहते हैं। हालांकि पार्टी अनुशासन के दायरे में रहकर। माना जा रहा है कि सत्तापक्ष में ऐसे नेताओं की भी जरूरत है, क्योंकि सरकार विपक्ष की बातों को तो गंभीरता से लेती नहीं, शायद अपनों की नसीहत से ही कुछ अच्छा हो जाए।