इंदौर, रमण रावल। आखिरकार भारत सरकार ने प्रतीक्षारत मसले को अमली जामा पहनाते हुए नागरिकता संशोधन कानून(सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट) लागू कर दिया। यह भारतीय जनता पार्टी का एक और साहसिक,देश की अस्मिता का परिचायक और पड़ोसी देश में रह रहे मूल भारतीय नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा व सम्मान से जुड़ा ऐसा ऐतिहासिक निर्णय है, जो उसी तरह से याद रखा जायेगा, ,जिस तरह से जम्मू-कश्मीर से 370 हटाने का फैसला।बहुत स्वाभाविक है कि चंद राजनीतिक दलों को यह भी कश्मीर मसले की तरह रास नहीं आयेगा और वे सियापा मचायेंगे,लेकिेन देश की जनता अब इनकी नौटंकी को समझ चुकी है।
देश नही है धर्मशाला
नागरिकता कानून में संशोधन पहली बार नहीं हुआ, ,बल्कि हकीकत तो यह है कि भाजपा सरकार ने इस देश को धर्मशाला समझने के बोध का खात्मा करने का साहस व जोखिम भरा फैसला लिया। दूसरा, विभाजन के बाद से 31 दिसंबर 2014 तक याने 67 साल से देश में रह रहे अवैध घुसपैठिये को भी देश का नागरिक बनाये रखने का बड़प्पन भरा फैसला लिया। बावजूद इसके कि धार्मिक आधार पर मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान बन जाने के बाद किसी मुस्लिम के भारत आने की तो तुक ही नहीं थी। जबकि भाजपा को कहीं से भी यह ख्याल होता कि देश को हिंदू राष्ट्र बनाना है तो वह इस फैसले को विभाजन के या संविधान निर्माण(1950)के समय से लागू करती। तब मुस्लिम वोटों की राजनीति करने वालों को होने वाली तकलीफ जायज समझी जा सकती थी,वह भी उनके नजरिये से। हाँ, इतना ज़रूर है कि अब जब भी राष्ट्रीय नागरिकता पंजीयन का काम शुरू होगा तब उसे 31 दिसंबर 2014 से पहले का कोई प्रमाण दिखाना होगा, जो इस देश के मुस्लिमों के पास मौजूद है ही। तब उन्हें डर किस बात का है ? यहीं एक सन्देश छुपा है कि डर उनमें है , जो विभाजन के बाद से ही बिना दस्तावेज के रह रहे हैं। क्या भला ऐसे लोग भारत के नागरिक होने के हकदार हैं?
असल नागरिकों को डर कहे का
इस कानून में देश में वैध तरीके से रह रहे किसी भी जाति के किसी भी व्यक्ति के खिलाफ राई-रत्ती भर कुछ नहीं है, उन्हें डर की लहरों पर बिना पतवार की नाव पर बिठाकर काले समंदर में उतार दिया गया है और खुद किनारों पर अट्टालिका के शिखर पर खड़े होकर बार-बार उन बेबस लोगों से कह रहे हैं-अरे अनाडिय़ों कहां चले जा रहे हो, आगे शार्क खड़ी है, तुम्हें गप्प करने के लिये। कानून की तमाम जटिलताओं को परे रखकर यदि इस कानून के बारे में व्याख्या की जाये तो बेहद सरल शब्दों में इतना भर है कि देश में नागरिकता कानून तो 1955 से मौजूद है, लेकिन उसमें अवैध रूप से रह रहे व्यक्ति को देश से निकाले जाने का प्रावधान नहीं था, जो कि इस सरकार ने कर दिया है। जबकि पहले उसे गिरफ्तार कर जेल में डालने व प्रकरण सालोसाल चलाने का प्रावधाान था। अब कोई संविधान विद्, कोई सुधारवादी, कोई धर्म निरपेक्ष, कोई अल्पसंख्यक हितैषी यह बताये कि इससे देश में सैकड़ों साल से रह रहे मुस्लिम सहित किसी भी व्यक्ति के खिलाफ क्या हो गया? मौजूदा नागरिकता कानून को संशोधित कर देश हित को मजबूत किया है, उसे पारदर्शी बनाया है। इसीलिये नये कानून का नाम नागरिकता संशोधन कानून है।
भ्रम फैलाते मौका परस्त दल
यह लोकतांत्रिक कहलाने वाले देश का अजीब दुर्भाग्य है कि वोट की राजनीति को धुरी बना चुके दल अस्तित्व समाप्ति के बिंदू तक अपने लगातार घटते आधार के चलते नागरिकता संशोधन कानून के बारे में अस्तित्वहीन भम्र फैलाकर देश को अराजकता के ऐसे गर्त की ओर धकेलना चाहते हैं, जहां से ऊपर आने में उसे फिर से दशकों लग जायेंगे। विरोध कर रहे राजनीतिक दल इतना तक सोचने को तैयार नहीं कि पड़ोसी दुश्मन देश पाकिस्तान उनके इस कदम से मजबूती महसूस करने लगता है और यह भी कि उस देश में भी नागरिकता कानून मौजूद है और राष्ट्रीय नागरिकता पंजीयन भी। ताज्जुब नहीं कि देश के खासकर दो राज्यों पश्चिम बंगाल व उत्तर प्रदेश में किसी भी वक्त खुराफात प्रारंभ हो जाये। लगता है, कुछ ताकतें उसी पल का इंतजार कर रही है, ताकि नफरत की आग में स्वार्थ के टिक्कड़ सेंक सकें।
समझे सिलसिलेवार
सिलसिलेवार देखते हैं कि नागरिकता संशोधन कानून(सीएए) में क्या प्रावधान किये गये हैं और फिर खुद ही तय कर लें कि इसमें क्या गलत, क्या सही है? इसमें पहली और प्रमुख बात तो यह है कि 31 दिसंबर 2014 तक किसी भी जाति का व्यक्ति देश में आ गया है तो वह वैध दस्तावेज दिखाकर नागरिकता के लिये आवेदन कर सकता है। याने इस तारीख से पहले अवैध तरीके से भी घुसा हो, फिर भी वैध दस्तावेज याने किरायेदारी की भाड़ा चिट्ठी,निर्वाचन प्रमाण पत्र, आधार, बैंक पास बुक, राशन कार्ड आदि दिखाकर नागरिकता पा सकता है तो संताप किस बात का है? अब जिसके पास इनमें से कुछ भी नहीं हो, क्या वह इस देश में रहने का उत्तराधिकारी है? गरीब से गरीब ,अंतिम छोर के व्यक्ति के पास भी कोई एक दस्तावेज तो है ही, क्योंकि वह एक रुपये किलो गेहूं और दो रुपये किलो चावल ले रहा है और जरूरत पूर्ति के बाद उसे खुले बाजार में बेच भी रहा है।
14 के बाद आने वाले गैर मुस्लिम को इजाजत
यहां जो संशोधन किया गया है, वह यह कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश से 31 दिसंबर 2014 के बाद भी यदि हिंदू, सिख, बुद्धिस्ट, जैन, पारसी या ईसाई व्यक्ति आया है तो उसे भी नागरिकता दी जायेगी, लेकिन इस तारीख के बाद आये मुस्लिम को इसकी पात्रता नहीं रहेगी। इसमें क्या गलत है? मुस्लिमों को बसने के लिए तो दर्जनों देश हैं और न भी हो तो उसे भारत नागरिकता दें ही, ऐसी बाध्यता क्यों?
घुसपैठियों पर नकेल
संशोधन से कानून में जो बड़ा बदलाव लाया गया है, वह यह कि पहले से मौजूद नागरिकता कानून में ऐसे अवैध घुसपैठिये को पकडक़र जेल में डालने का प्रावधान था, जिसमें कुछ ही समय में वह जमानत पर बाहर आकर कहीं और जाकर रहना प्रारंभ कर देता था या कहीं न भी जाये तो छोटी अदालत से लेकर तो सर्वोच्च अदालत तक जाने में उसकी उम्र तो पूरी हो ही जाना थी। भाजपा सरकार ने कानून की इस अंधी गली को पूरी तरह से बंद कर दिया है। अब यह प्रवाधान कर दिया गया है कि ऐसे व्यक्ति देश से हकाल दिये जायेंगे। याने कोई मुस्लिम 31 दिसंबर 2014 के बाद अवैध तरीके से घुसा हो तो नागरिकता मांगने का हक ही नहीं रहेगा, उलटे उसे वापस उसके मुल्क भेज दिया जायेगा। चूंकि पाकिस्तान से अवैध रूप से आये मुस्लिम उत्तर प्रदेश में और बांग्लादेश से आये रोहिंग्या मुस्लिम पश्चिम बंगाल में बहुतायत से रह रहे हैं और कालांतर में वे जाहिरा तौर पर कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और तृणमुल कांग्रेस के मतदाता बन गये तो तकलीफ इन्हीं दलों को ज्यादा है।
ये भी समझे
1955 से जो नागरिकता कानून मौजूद है, उसके प्रावधान इस तरह हैं:-
** इसकी धारा 3 में कहा गया है कि जो व्यक्ति जन्म से या जिनके माता-पिता जन्म से भारत में रह रहे हो, वह व्यक्ति अब भारत में न भी रहता हो तो भी वह भारत का नागरिक है।
** धारा 4 के तहत वे लोग, जिनका जन्म भारत में नहीं हुआ है, किंतु वे यदि 26 जनवरी 1950 से 10 दिसंबर 1992 तक भारत आ गये हों तो वे भी नागरिकता के पात्र होंगे।
** धारा 5 में सिटीजनशिप बाय रजिस्ट्रेशन के तहत 6 जनवरी 2015 तक के पांच साल तक देश में जो रह रहे हों तो वे भी नागरिक होंगे।
इसमें कुछ शर्तें इस प्रकार हैं:
-2015 तक 7 साल पहले से साल में एक बार भारत आते रहे हों।
-जिसने भारतीय नागरिक से शादी की हो।
-ऐसे भारतीय जो विदेश में बस गये हों, उनकी संतान भारत में बसना चाहती हो।
-5 जनवरी 2014 से एक वर्ष तक लगातार भारत में रहा हो।
-ऐसा व्यक्ति जो 15 अगस्त1947 को भारतीय था,फिर बाहर चला गया हो और अब वापस आना चाहता हो।
-ओवरसीज भारतीय भी वापस आना चाहे तो नागरिकता दी जायेगी।
इस समूचे कानून में भाजपा सरकार ने दो महत्वपूर्ण बातें संशोधित की। पहली, 31 दिसंबर 2014के बाद अवैध घुसपैठिया यदि मुस्लिम है तो नागरिकता नहीं देंगे, लेकिन गैर मुस्लिम है तो देंगे। दूसरी, उस अवैध घुसपैठिये को जेल में नहीं रखेंग, बल्कि देश निकाला देंगे। क्या किसी मुल्क को इतना हक नहीं कि वह अपना नागरिकता कानून बनाये?
ऐसे में सवाल यह उठता है कि केंद्र की भाजपा सरकार ने ऐसा क्या कर दिया, जिससे इन कथित उदारवादियों को यह लगने लगा कि इससे देश के मुस्लिमों के सामने नागरिकता का संकट आ जायेगा? वे क्यों इस समुदाय के मन में यह जहर भरने में लगे हैं कि भाजपा और उसकी आड़ में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की दिशा में ले जा रहे हैं। ऐसे तमाम लोग भावनात्मक पहलुओं से खिलवाड़ कर केवल नफरत के पत्ते फेंट रहे हैं, ,ताकि उनका बौद्धिक व राजनीतिक वर्चस्व बना रहे। वे जानते हैं, जब तक वे अल्प संख्यकों को भडक़ाते रहेंगे,, तब तक उनका अस्तित्व कायम रहेगा। उन्हें देश, शांति, अहिंसा, परस्पर सौहार्द से कतई लेना-देना नहीं है। हैरत और अफसोस इस बात का है कि मुस्लिम समुदाय के भीतर ऐसा नेतृत्व ही नहीं है, जो स्वतंत्र सोच रखता हो व समाज को सही दिशादर्शन दे सके। चंद कठमुल्ला, कट्टर प्रवृत्ति के लोग धर्म की वर्जनाओं की आड़ लेकर पूरे समय हर मसले पर समाज को गुमराह कर अपना उल्लू सीधा करते रहते हैं। वैसे मुस्लिमों के अल्प संख्यक होने पर भी अब बात होना चाहिये, क्योंकि जो समुदाय 140 करोड़ की आबादी में 30 करोड़ हो वह अल्पसंख्यक कैसे ?
सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट विजय आसुदानी ने इस बारे में कहा कि सीएए में धारा 2 में संशोधन कर यह व्यवस्था दी गई है कि इन तीन देशों( पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश) से आये गैर मुस्लिम 31 दिसंबर 2014 तक भारत आ गये हैं तो इन्हें जन्म से ही भारतीय माना जायेगा, भले ही इनका जन्म फिर उन तीन देशों में हुआ हो। पहले धारा 6 के तहत ये प्रावधान था कि कोई भी व्यक्ति जो गैर कानूनी तरीके से नहीं आया था, वह 180 दिन भारत में रह लिया हो, वह नागरिकता के लिये आवेदन कर सकता था। अब संशोधन के बाद 31 दिसंबर 2014 के बाद यदि कोई मुस्लिम व्यक्ति आया है तो उसे अवैध घुसपैठिया मानते हुए नागरिकता की पात्रता नहीं होगी,उसे उसके मुल्क वापस जाना पड़ेगा।
CAA Notified:
सीएए में धारा 2 में संशोधन कर यह व्यवस्था दी गई है कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश से आये गैर मुस्लिम 31 दिसंबर 2014 तक भारत आ गये हैं तो इन्हें जन्म से ही भारतीय माना जायेगा, भले ही इनका जन्म फिर उन देशों में हुआ हो। पहले धारा 6 के तहत ये प्रावधान था कि कोई भी व्यक्ति जो गैर कानूनी तरीके से नहीं आया था, वह 180 दिन भारत में रह लिया हो, वह नागरिकता के लिये आवेदन कर सकता था। अब संशोधन के बाद 31 दिसंबर 2014 के बाद यदि कोई मुस्लिम व्यक्ति आया है तो उसे अवैध घुसपैठिया मानते हुए नागरिकता की पात्रता नहीं होगी,उसे उसके मुल्क वापस जाना पड़ेगा। वरिष्ठ पत्रकार रमण रावल का विश्लेषण