कोरोना काल में इंसानियत तो बेच खाई, आपदा में अवसर तलाशते मौकापरस्त लोग

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By Akanksha JainPublished On: April 10, 2021

हम अपने आप को भारतीय कहते हैं और इस बात पर गर्व भी करते हैं, लेकिन जब भी किसी कसौटी पर परखा जाता है तो हमसे ज्यादा निकृष्ट और मौकापरस्त लोग बहुत कम ही मिलते हैं। किसी भी चीज का सौदा करने से कभी नहीं चूकते। कोई ईमान कोई धर्म नहीं। आज हम एक तरह के कठिन दौर से गुज़र रहे हैं। इस संदर्भ में मुझे एक पुरानी घटना याद आ रही है।


ये उन दिनों की बात है जब सांप्रदायिक दंगों की वजह से कई दिनों का सख्त कर्फ्यू लगा हुआ था। खाने पीने की वस्तुओं और खास तौर पर बच्चों के पीने और यहाँ तक कि चाय के लिये भी दूध के लाले पड़ गए थे। २-३ दिन बाद कर्फ्यू में २ घंटे की छूट दी गई, ताकि लोग जरूरत की चीजें खरीद सकें। मोहल्लों में दूधवाले तुरंत पहुँचे और लोग दूध खरीदने के लिये टूट पड़े। इससे पहले कि कर्फ्यू की ढील समाप्त हो, आनन-फानन में जिसे जिस भाव में जितना दूध मिल सका ले कर घर आया।

भाव भी डेढ़ से दो गुना था। उस दिन की दो घटनाएं जिनका मैं गवाह था, एक मेरे मोहल्ले में और दूसरी मेरे खास मित्र के मोहल्ले में हुई थी। उसमें एक जगह दूध के स्थान पर छाछ और दूसरी जगह दूध के स्थान पर चूने का पानी निकला था।
ये कैसे दुष्ट और बेगैरत लोग होंगे जो ऐसे समय भी धोखा देने से पीछे नहीं हट रहे थे? आज हमारे देश में कोरोना की दूसरी और भयानक लहर चल रही है। लोग त्राहि-त्राहि कर रहे हैं।

जान के लाले पड़े हैं। लोग मर रहे हैं। इस बीमारी में अब तक सबसे कारगर साबित हुई दवा “रेमडीसिविर” बाज़ार से गायब हो गई है। अभी तक जब मरीज़ कम थे तो यह आसानी से १२०० रुपए प्रति इंजेक्शन में भी उपलब्ध थी। अब जब इसकी मांग एकदम से बढ़ी तो इसकी कमी होना स्वाभाविक था, लेकिन यह दवा आज अधिक दाम पर उपलब्ध हो रही है। इसका साफ अर्थ यही है कि लोगों ने इस दवा को दबा लिया है। इस दवा के एक इंजेक्शन के लिये १०,०००, १५,००० और यहाँ तक कि ४५,००० रुपए तक लोगों ने लिये हैं।

ये कौन लोग हैं, जिनकी आत्मा मर चुकी है? इनको ईश्वर से कोई डर नहीं? इनका क्या हश्र होगा इसका कोई अनुमान ही नहीं है?
ऐसी परिस्थितियों में ही इंसान का चरित्र समझ में आता है। किसी की मजबूरी का आखिर कोई कितना फायदा उठा सकता है? और तो और इसके बाद वह अपनी व्यापार-कुशलता पर खुद फूला नहीं समाता।

कई देशों जैसे जापान में ऐसी विषम परिस्थितियों में लोग लागत से भी कम क़ीमत पर जीवन रक्षक वस्तुएं उपलब्ध कराते हैं।
हम पता नहीं किस दिशा में बढ़ रहे हैं और कितना गिरने वाले हैं? हम इतने असंवेदनशील कैसे हो सकते हैं? इतिहास गवाह है कि जब देश पर संकट आया तो लोगों ने अपना सर्वस्व लुटा दिया।

आश्चर्य तो इस बात पर होता कि ये सारी करतूतें जो जग जाहिर हैं, क्या प्रशासन और पुलिस से छुपी रह सकती हैं?
“डॉ. अनुराग श्रीवास्तव”