कीर्ति राणा
आज जब कोरोना काल की बढ़ती जा रही त्रासदी का कारण हर स्तर पर चल रही कथित लापरवाही को माना जा रहा है तब आमजन यह कहने से भी नहीं चूकते कि शहर में दमदार नेतृत्व का अभाव बड़ा कारण है।अपनी हेकड़ी और अधिकारियों को उनकी खामी पर सार्वजनिक रूप से फटकार लगाने वाले नेताओं की बात चलती है तो महेश जोशी, लक्ष्मण सिंह गौड़ से लेकर बंगाल चुनाव में व्यस्त कैलाश विजयवर्गीय का नाम लिया जाता है। उन जैसे जनप्रतिनिधि की जरूरत तो आज है शहर को। मैंने कई बार महेश भाई से कहा भी आप के संस्मरण पर ग्रंथ तैयार हो सकता है, उन्होंने हर बार हंस कर टाल दिया।
पिछले विधानसभा चुनाव में बेटे दीपक (पिटू) जोशी के लिए खूब दबाव बनाने के बाद भी जब भतीजे अश्विन जोशी का टिकट पक्का हो गया तो उन्होंने पूरी तरह इंदौरी राजनीति से खुद को मुक्त कर लिया। एक जमाना था जब सुरेश सेठ और महेश जोशी की कांग्रेस राजनीति में तूती बोलती थी। जब दिग्विजय मुख्यमंत्री बने तब तो इंदौर के शेडो सीएम के रूप में महेश जोशी की मर्जी बिना पत्ता नहीं खड़कता था।
तू तड़ाक वाली बातचीत दिग्विजय सिंह से
मैंने भी एयरपोर्ट पर तब कई बार ऐसे दृश्य देखे हैं जब महेश जोशी तू तड़ाक से ‘राजा’ को फटकार लगाते और दिग्विजय सिंह (राजा) अपने चिर परिचित ठहाके के साथ ‘महेश भाई’ के गुस्से की बर्फ पिघलाने में जुटे रहते।अर्जुन सिंह और मोतीलाल वोरा के मंत्रिमंडल में रहे जोशी कितने तिकड़मी थे इसका अंदाज इंदौर से जुड़े उस किस्से से लग सकता है जब विधानसभा चुनाव के लिए प्रत्याशियों की घोषणा होनी थी। दिल्ली वाली लिस्ट में क्षेत्र क्रमांक दो से पंकज संघवी के नाम की घोषणा हो गई, उनके समर्थकों ने पटाखें भी फोड़ दिए। यही लिस्ट जब मप्र कांग्रेस कार्यालय से घोषित की गई तो उसमें पंकज का नाम पेंसिल से कटा हुआ था और पंडित कृपाशंकर शुक्ला का नाम लिखा था। बाद में यह खुलासा हुआ कि लिस्ट घोषित किए जाने से ठीक पहले यह सूची देखने के लिए उन्होंने अपने पास मंगवा ली थी।
मुसीबत में साथ देने वालों की चिंता भी की
आज इंदौर में जितने भू माफिया पनपे हैं उनमें से अधिकांश का उदय उसी दौरान हुआ, यही नहीं वे अपने संबंधों को स्वीकारने के साथ ही मुसीबत में साथ देने के प्रसंग भी सुनाते रहते थे। महेश जोशी, बाबी के पिता इंदर (छाबड़ा) और प्राधिकरण के अध्यक्ष रहे कृपाशंकर शुक्ला इस तिकड़ी के किस्सों की कथा अनंत है लेकिन इस सब के बाद महेश जोशी सार्वजनिक जीवन में लोगों की परेशानियां तत्काल हल करवा सके तो शेडो सीएम वाले रुआब के साथ हेकड़पन ही था। करेला और नीम चढ़ा वाली कहावत उन जैसे जमीनी नेताओं पर फिट बैठती है।आज से एक सप्ताह पूर्व ही वह 82 वर्ष के हुए थे।पिछले कुछ समय से वे बीमार चल रहे थे, भोपाल व दिल्ली के अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था।उनका जन्म 2 अप्रैल 1939 को राजस्थान के बांसवाड़ा जिले के कुशलगढ़ में हुआ था।1962 में पहली बार पार्षद बने थे।प्रदेश के सभी वरिष्ठ नेताओं के साथ मंत्रिमंडल में सदस्य के रूप में उन्होंने काम किया।वर्षों तक वे 20 सूत्रीय क्रियान्वयन समिति के उपाध्यक्ष, युवक कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव रहे।मध्य प्रदेश की राजनीति के केंद्र बिंदु रहे।पचमढ़ी में संपन्न अभा कांग्रेस कमेटी के अधिवेशन की कमान उनके हाथ में रही।लंबे समय तक मध्य प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री भी रहे।
बीस सूत्री समिति के राज्य उपाध्यक्ष के रूप में भी उनका जलवा बरकरार रहा।पान-गुटखा, तिरछी नेपाली टोपी, कुर्ता-पाजामा-जैकेट वाला पहनावा यह पहचान रही। खास मित्रों की बात करें तो वीडी ज्ञानी, शांति (दादा) प्रिय डोसी, आरडी जैन आदि के नाम तो आएंगे ही।
गली से लेकर गांव तक कार्यकर्ताओं से सीधे संवाद वाले नेता महेश जोशी और दिग्विजय सिंह
मप्र में भाजपा को पंद्रह साल बाद बेदखल करने में सफलता मिली तो यह वैसा ही था जैसे दिग्विजय सिंह पर फेविकोल से भी अधिक मजबूती से चिपके ‘बंठाढार’ शब्द के शिल्पकार अनिल माधव दवे की प्रचार रणनीति रही जिसने उमा भारती को सीएम की कुर्सी तक पहुंचाया।ठीक उसी तरह गांधी शताब्दी समारोह की कांग्रेस समिति के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में तहसील से लेकर गांव-गांव ली गई बैठक और सम्मेलन वाली महेश जोशी की रणनीति रही जिसने दिग्विजय सिंह, कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रचार अभियान के लिए जमीन तैयार की।
मप्र के आम कांग्रेस कार्यकर्ताओं से महेश जोशी और दिग्विजय सिंह का जितना सीधा जुड़ाव रहा उतना कमलनाथ और सिंधिया का नहीं है।
कमलनाथ से जोशी की उतनी नहीं पटी जितना मीठा दिग्विजय सिंह और कमलनाथ में है। एक तो यह कारण, दूसरा बेटे को टिकट नहीं मिल पाना इस टीस ने दोस्ती की राह में मनभेद के कांटे बिछा दिए और यही वजह रही कि जोशी को जीवन के उत्तरार्द्ध में सिंधिया की ज्योति अच्छी लगने लगी थी।
जिस लोकस्वामी की शुरुआत की उसी में काका-भतीजे के किस्से खूब छपे
जब तक वे भोपाल में रहे उनका बंगला परिचितों-कार्यकर्ताओं के लिए खुला था। प्रदेश भर के उनके परिचित आश्वस्त रहते थे रुकने और भोजन की व्यवस्था तो बंगले पर हो ही जाएगी।महेश भाई की तरह जिला कांग्रेस के अध्यक्ष रहे रामचंद्र अग्रवाल के निवास पर भी चाय उकलती ही रहती थी, बिना चाय-पानी पिए कोई जा ही नहीं सकता था।
कुछ सालों से तो जोशी कुशलगढ़ में ही रच-बस गए थे, वैसे भी राजस्थान के सीएम अशोक गेहलोत से भी उनके संबंध बेहतर थे। कांग्रेस की राजनीति में संगठन के विभिन्न पदों पर रहे महेश भाई की संगठन क्षमता के राजीव गांधी भी कायल रहे।
यह भी वजह रही कि जब वे रैली के रूप में 14 अप्रैल को बाबा साहब अम्बेडकर की जन्मस्थली पर पुष्पांजलि अर्पित करने गए थे तो लौटते में रात ढाई बजे के करीब प्रेस काम्प्लेक्स में सांध्य दैनिक लोक स्वामी का लोकार्पण करने पहुंचे थे।संयोग देखिए कि जब यह अखबार जीतू सोनी ने खरीद लिया तब चुनावी साल में महेश जोशी से लेकर अश्विन जोशी के खिलाफ खूब भंडाफोड़ किया।
अंतिम संस्कार 10 अप्रैल को इंदौर में होगा
मीडिया समन्वयक नरेन्द्र सलूजा के मुताबिक
वरिष्ठ कांग्रेस नेता महेश जोशी की पार्थिव देह कल 10 अप्रैल शनिवार को सुबह 11 बजे उनके ओल्ड पलासिया स्थित निवास पर भोपाल से लाई जाएगी। उनकी अंतिम यात्रा उनके निवास ई-1 ओल्ड पलासिया से दोपहर 1 बजे निकलकर रामबाग मुक्तिधाम पहुँचेगी।