देवेन्द्र बंसल
आज देश फिर महामारी के संकट के दौर से गुज़र रहा है ।महाराष्ट्र ,दिल्ली ,छतीसगढ़ मध्यप्रदेश में स्थिति चिंताजनक होती जा रही है। घरों में क़ैद रहकर कब तक ज़िंदगी गुजरेगी ।उन रोते बिलखते पारिवरो के आँसू कौन पोंछेगा ? जो साल भर से घर बैठे है ,जो नई नोकरी की तलाश में है , क्यूँकि उन्हें नोकरी से हटा दिया गया है ,बड़ी विकट स्थिति है ।
उन उम्मीदों का क्या ?जो इसी आशा में थे ,अब परिवार की गाड़ी पटरी पर आ जाएगी ।मध्यवर्गीय व गरीब परिवार कैसे गुज़र बसर करेगा ।अनेको टेक्स ,ईएम आई ,घर के लोन ,गाड़ियों के लोन ,किसीको मकान का रेंट ,क्रेडिट कार्ड का पेमंट ,डिसल ,पेट्रोल ,घरखर्चा ,बिजली , लिज़ ,बच्चों की ट्यूशन फ़ीस ,गोडाऊन ,आफ़िस रेंट ,ज़िन्दगी बचाने के लिए अस्पताल के बड़े बड़े बिल ,बैंक के बे मतलब के चार्जेस ,पेनल्टी ,कोई क़र्ज़ लेके बैठा है ,इन सब को कौन नियंत्रित करेगा ,विचार क्या कोई क़रेगा ? क्यूँ न यह सब एक साल के लिए रोक दिए जाए ।
क्या करे ? सारा बजट ही गड़बड़ हो गया ।करे क्या आम आदमी ,ग़म के आँसू पी के बैठा है । जो चल रहे चल रहे है अच्छी बात है ,जो परेशान है उनको भी महसूस करे । क्या व्यापारियों को पेकेज मिलेगा ,उनके अकाउंट में पैसे आयगे।व्यापारी तो हमेशा पिटता रहता है ,हिसाबों में उलझा रहता है , व्यापार उद्योग फिर बंद हो रहे है ,तो फिर से कुछ राज्यों से लोग वापस घर को ,अपना सामान पारिवार को ले जाने लगे है । पहले जैसी स्थिति ना बने, ट्रेने बंद ना हो जाए ,पैदल ना चलना पड़े ,इसीलिए लोग निकल रहे है ,फिर से घरों की तरफ़ जा रहे है ।
किस तरह मुश्किलों में ,बगेर व्यापार नौकरी के ,साल निकाला ,इसी उम्मीद में थे की अब स्कूल चलेगा ,बस चलेगी ,कोचिंग चलेगी ,जिम चलेगा ,वेडिंग होगी ,इवेंट चलेगा ,होटल रेस्टारेंट चलेंगे , उस ममतामयी माँ से पूछो जो नन्हे मुन्नो में ज़िंदगी तलाश रही है ।स्कूल की ख़ुशियाँ बाँटना चाहती है ,ख़ुशी से घर का हिसाब रखना चाहती है ।सब्ज़ीयाँ धो धोकर वह परेशान है ।हमारी तो बोलने की बहुत आदत है ,कब तक मुँह बन्दकर बैठे रहेंगे ,ना पार्टियाँ है ,ना किटी है ,ना मौज मस्ती है ,ज़िंदगी नीरस सी हो गई है। एक दूसरे के घर में चेहरे देख देख मायूस से ग़म में डूबे है ,उम्मीद के बादलों की और टकटकी लगाए है।आशा की किरण अब आएगी अब आएगी ।बस परिवार एक दूसरे की हिम्मत से परिवार टिका है ।
है जगत के पालनहार,
तनहा स्तब्ध यह ,मन हो गया है,
मधुरिम नेह से ,मन मुदित कर दे ,
तेरे भाव पुष्प की ,हृदय बेला से ,
वसुधा को सुरभित कर,स्मित मन कर दे।