हम बेबस है जेबें ख़ाली करते है और तमाशा देखते रहते है 

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By Mohit DevkarPublished On: April 6, 2021

वैश्य समाज बिखरा बिखरा सा है यह आवश्यक है की हम पहले उन्हें संगठित करे।


देवेन्द्र बंसल

सामाजिक स्तर पर हम एक नही है ।अनेक संस्थाए है सब कार्य कर रही है । लेकिन वैचारिक शक्ति का अभाव है । उन्हें सही दिशा देने वाला राष्ट्रीय स्तर का व्यक्तित्व कोई दिखाई नही देता ।आज करोड़ों में विशाल अग्रवाल समाज ही देश में ताक़त रखता है और अगर समस्त वैश्य समाज की ताक़त हो जाए तो शासन प्रशासन हिल जाना चाहिए ।वह आवाज़ ,वह ताक़त ,वह एकता ,वैसा व्यक्तित्व नही है।इस दिशा में प्रयास करने होगे।आज देश के प्रति जो भी मदद ,सहयोग अगर समाज कर रहा है तो ,राष्ट्रीय संगठन की आवाज़ पर नही हो रहा है ।इसमें कुछ प्रतिशत व्यक्तिगत अपना हित भी जुड़ा होता है ।

आज आवश्यक है की राजनैतिक क्षेत्र में भी हमारी दख़ल हो ।देश का व्यापार हमारे हाथो में है और व्यापारियों के हित की बात कौन रखे ।हमारे सांसद और राज्य सभा के सदस्य भी हो जो समाज हित देश हित व जन जन की बात करें। हमें राष्ट्रीय स्तर पर पहले मज़बूत होना होगा । इसके लिए पुरे देश में जन जाग्रति अभियान चलाना होगा ।एकता की आवाज़ उठानी होगी तब सरकारें व राजनेतिक पार्टीयाँ हमारी सुनेगी ।

हमारे समाज के लोगों को भी आगे बढ़ने के अवसर देने होगे ऐसी प्रतिभाओं को आगे लाना होगा । उन्हें प्रोत्साहित करना होगा । उनके लिए टिकट माँगना होगा ।आज वह अपने स्तर पर ही कोशिश करता है समाज का साथ पूरा नही होता है । ऐसे अनेक गुणी व्यक्तित्व को स्वार्थ हित छोड़कर समाज आगे लाए ।अनेक लोग है लेकिन जिनमे क्षमता है ,समाज को मालूम है ,लेकिन स्वार्थ हित में वे पीछे रह जाते है ।
हम बेबस है ,जेबें ख़ाली करते है ,और तमाशा देखते है । कर कुछ नही पाते क्यूँकि देश भर से आवाज़ नही उठती है जबकि अन्य समाज थोड़े होकर भी हमसे आगे है ।