इंदौर। मष्तिष्क हमारे शरीर का सबसे अहम् हिस्सा है, जो सारे अंगों को नियंत्रित करता है, लेकिन खराब खानपान और बिगड़ती लाइफस्टाइल के कारण मष्तिष्क की बीमारियाँ भी तेजी से फ़ैल रही हैं। ब्रेन स्ट्रोक एक ऐसी समस्या है जिनकी चपेट में न केवल उम्रदराज लोग बल्कि युवा भी तेजी से आ रहे हैं। लैंसेट कमीशन की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में स्ट्रोक हर साल लगभग 13 लाख लोगों को प्रभावित करता है।
ब्रेन स्ट्रोक से 2050 तक हर साल एक करोड़ लोगों की मौत होने की आशंका है। अगर यह स्थिति न सुधरी तो आगामी 30 सालों में 50 प्रतिशत की वृद्धि और 2.3 लाख करोड़ डॉलर का खर्च आएगा। तेजी से बढ़ रहे मामलों को ध्यान में रखते हुए हर साल 29 अक्टूबर को स्ट्रोक डे मनाया जाता है ताकि स्ट्रोक को लेकर जागरूकता फैलाई जा सके। इस साल वर्ल्ड स्ट्रोक डे की थीम है ‘टुगेदर वी आर ग्रेटर देन स्ट्रोक’ हैं, ताकि लोगों यह बताया जा सके कि स्ट्रोक का उपचार संभव है और हम इसे हरा सकते हैं।
मेदांता सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के न्यूरो सर्जरी विभाग के सीनियर न्यूरो सर्जन (डायरेक्टर- इंस्टिट्यूट ऑफ़ न्यूरोसाइन्सेज़) व एचओडी डॉ. रजनीश कछारा ने बताया कि, “स्ट्रोक आने पर तुरंत इसके लक्षण दिखने लगते हैं। चेहरे का सुन्न होना, हाथ या पैर का अचानक सुन्न होना या कमजोरी होना स्ट्रोक के लक्षण हैं। हाथ से लेकर पैर तक का शरीर का एक हिस्सा लकवाग्रस्त होना, अचानक तेज सिर दर्द होना, बोलने में कठिनाई होना आवाज सही नहीं आना या मुंह का टेड़ा होना भी स्ट्रोक के ही लक्षण है।
एक रिसर्च के मुताबिक भारत में स्ट्रोक के 30 फीसदी मामलों का कारण हाई ब्लड प्रेशर है, जबकि 25.5 प्रतिशत मामलों की वजह वायु प्रदूषण है। हाई ब्लड प्रेशर से ब्लड क्लॉट हो सकते हैं और मस्तिष्क में रक्तस्राव के कारण स्ट्रोक की संभावना अधिक हो सकती है। स्ट्रोक से बचाव के लिए आवश्यक है कि हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज और कोलेस्ट्रॉल जैसी क्रॉनिक बीमारियों को कंट्रोल किया जाए।”
मेदांता सुपर स्पेशिलिटी के सीनियर न्युरोलोजिस्ट डॉ वरुण कटारिया का कहना हैं कि “लोगों को मिथ है कि ब्रेन स्ट्रोक के बाद आप ठीक नहीं हो सकते लेकिन ऐसा नहीं है। स्ट्रोक में समय का बेहद महत्त्व है, यदि गोल्डन ऑवर में व्यक्ति को उपचार मिल जाए तो स्थिति में सुधार लाया जा सकता है, लेकिन हर बीतते समय के साथ मरीज की स्थिति गंभीर होती चली जाती है। ब्रेन स्ट्रोक का उपचार मरीज की स्थिति पर निर्भर करता है, हॉस्पिटल में लाने के बाद सबसे पहले थ्रंबोलाइसिस किया जाता है जिसमें मरीज को क्लॉट बस्टर दिया जाता है जिससे क्लॉट घुल जाए और ख़तम हो जाए, अगर ब्रेन की आर्टरी में प्रॉब्लम है, तो उसे चौड़ा कर खोला जाता है। आज के समय में मेडिकल साइंस ने इतनी तरक्की कर ली है कि मॉडर्न और एडवांस ट्रीटमेंट, न्यूरो इंटरवेंशन, न्यूरो सर्जरी हैं या दवाएं मौजूद हैं।”
मेदांता सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल की न्यूरोरेडियो इंटरवेंशनल कंसलटेंट डॉ. स्वाति चिंचुरे ने बताया की – ब्रेन स्ट्रोक के ठीक होने की संभावना उस समय पर निर्भर करती है जिसमें रोगी को उपचार दिया गया था। स्ट्रोक मस्तिष्क में रक्त प्रवाह करने वाली नसों में ब्लॉकेज होने के कारण होता है। कुछ मस्तिष्क की कोशिकाएं तो तुरंत ही मर जाती हैं पर कुछ मस्तिष्क के हिस्से को वक्त पर नस को खोलने से पुनर्जीवित किया जा सकता है। यदि अगले कुछ घंटों में रक्त का प्रवाह अगर ठीक हो गया तो मरीज को लकवे से बचाया जा सकता है।
जब बहुत बड़ी मात्रा में रक्तवाहिका अवरोधित हो जाती है या मरीज 4 घंटे के बाद अस्पताल में पहुंचता है तो ऐसे मरीजों का न्यूरोइंटरवेंशन तकनीक द्वारा इलाज किया जा सकता है। न्यूरोइंटरवेंशन या एंडोवेस्कूलार विधि में पैरों की रक्त की नली से गर्दन और दिमाग की एंजियोग्राफी की जाती है। अगर थक्का बहुत बड़ा है तो स्टेंट की मदद से उसे हटाया जाता है। इस खास इलाज को थ्रोम्बेक्टोमी (Thrombectomy) बोलते हैं और यह मस्तिष्क अटैक/स्ट्रोक के 8 घंटे बाद तक किया जा सकता है। इस इलाज के बाद नस के खोले जाने से दिमाग में रक्त का प्रवाह पहले जैसा हो जाता है और मरीज को पहले जैसी सामान्य स्थिति में लौट आने में मदद मिलती है।
मेदांता सुपर स्पेशिलिटी के न्युरोलोजिस्ट डॉ योगेन्द्र कुमार वर्मा के अनुसार, “ब्रेन स्ट्रोक मुख्यतः दो प्रकार के होते है, पहला इस्किमिक ब्रेन स्ट्रोक और दूसरा हेमोरेजिक ब्रेन स्ट्रोक होता है। दिमाग तक खून पहुंचाने वाली नसें जब किसी कारण से ब्लॉक हो जाती है, तो इस स्थिति को इस्किमिक ब्रेन स्ट्रोक कहा जाता है, वहीं हेमोरेजिक ब्रेन स्ट्रोक या ब्रेन हैमरेज तब होता है जब दिमाग की नसें फट जाती है। देश में 85 प्रतिशत लोग इस्किमिक ब्रेन स्ट्रोक का शिकार होते हैं।
इस्किमिक ब्रेन स्ट्रोक के कई कारण हो सकते हैं लेकिन डायबिटीज, हाइपरटेंशन, स्मोकिंग, खान-पान और लिपिड कोलेस्ट्रॉल का बढ़ा हुआ लेवल इसके मुख्य कारण हैं। इस्किमिक ब्रेन स्ट्रोक के कारण ब्लड वेसेल्स पतला हो जाता है और उसके अंदर चर्बी जम जाती है। जब दिमाग तक खून ठीक से नहीं पहुँच पाता है तो एट्रील फिब्रीलेशन की दिक्कत शुरू हो जाती है, जिसकी वजह से हार्ट में छोटी- छोटी गांठे बन जाती हैं और बाद यह गांठें ब्रेन में पहुँच जाती है एवं ब्रेन की ब्लड वेसेल्स ब्लॉक हो जाते हैं।”